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रुद्रप्रयाग: कांग्रेस-आप में देवस्थानम बोर्ड भंग को लेकर श्रेय लेने की लगी होड़

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Published : Dec 3, 2021, 10:52 AM IST

देवस्थानम बोर्ड भंग
देवस्थानम बोर्ड भंग

देवस्थानम बोर्ड भंग हो गया तो इसका श्रेय लेने के लिए सभी अपने अपने दावे करने लगे हैं, चूंकि निकट भविष्य में विधान सभा चुनाव सिर पर हैं. तो भाजपा, कांग्रेस और आप इसे अपनी जीत करार देने में पीछे नहीं हैं.

रुद्रप्रयाग: आखिरकार चारधाम तीर्थ पुरोहितों एवं हक हकूकधारियों के लम्बे आंदोलन के बाद प्रदेश की धामी सरकार ने पूरा नफा नुकसान का जायजा लेकर चारधाम देवस्थानम् बोर्ड एक्ट को भंग करने की घोषणा कर दी है. यह सफलता तीर्थ पुरोहितों एवं हक हकूकधारियों को लम्बे आंदोलन से नहीं मिला, नंगे बदन तीर्थ परिक्रमा करके नहीं, सिर के बल उल्टे चलकर भी नहीं मिली. यहां तक कि प्रधानमंत्री को खून से खत लिखने पर भी नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री के केदारनाथ दौरे से दो दिन पूर्व देवस्थानम बोर्ड को बनाने वाले पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के केदारनाथ में तीर्थ पुरोहितों द्वारा किए गये विरोध ने दिलाया. ऐसे में अब राजनैतिक दल देवस्थानम बोर्ड भंग होने का श्रेय लेने में जुटे हैं.

बता दें कि पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के केदारनाथ में तीर्थ पुरोहितों द्वारा इस विरोध ने चुनावी साल में भाजपा को नुकसान की आशंका ने घेरा, वहीं प्रदेश सरकार में प्रधानमंत्री के दौरे को निष्कटंक बनाने के लिए भी छटपटाहट दिखाई दी. आनन-फानन में सरकार ने मंत्रियों को वार्ता के लिए केदारनाथ भेजा तथा स्वयं मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने केदारनाथ पहुंचकर तीर्थ पुरोहितों से वार्ता की और आश्वासन दिया कि उनकी मांग पर विचार किया जायेगा.

अब प्रदेश सरकार के सामने तीन रास्ते थे. या तो वह त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा पूर्व में लिए गये कई फैसलों को स्थगित करने जैसा इसे भी स्थगित कर दें या इसमें कई प्रावधानों को हटाकर नये प्रावधानों को जोड़कर संशोधित कर दिया जाय अथवा बोर्ड को ही भंग कर दे. मगर बोर्ड को भंग करने का साहस प्रदेश सरकार नहीं जुटा पाई. हालांकि, सरकार ने देवस्थानम बोर्ड को लेकर एक कमेटी का गठन कर दिया, जिसने भी केवल संशोधन की बात कही. इसी बीच केन्द्र सरकार ने भी चार राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुए तीनों कृषि बिलों को वापस ले लिया तो धामी सरकार ने देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का साहस दिखाया.

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दरअसल, देवस्थानम बोर्ड का सबसे अधिक असर केदारनाथ विधानसभा पर ही पड़ रहा था और तीर्थ पुरोहितों एवं हक हकूकधारियों का आन्दोलन भी सबसे अधिक केदारनाथ में ही चल रहा था. ऊपर से 2017 में मोदी की प्रचंड आंधी में भी भाजपा यह सीट नहीं जीत पाई थी. ऐसे में तीर्थ पुरोहितों का आन्दोलन 2022 के चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता था. ऐसे में मजबूरन सरकार ने अपनी ही पूर्ववर्ती सरकार के फैसले को बदलते हुए बोर्ड को भंग करने का निर्णय लिया.

अब जब देवस्थानम बोर्ड भंग हो गया तो इसका श्रेय लेने के लिए सभी अपने अपने दावे करने लगे हैं, चूंकि निकट भविष्य में विधान सभा चुनाव सिर पर हैं. तो भाजपा, कांग्रेस और आप इसे अपनी जीत करार देने में पीछे नहीं हैं. भाजपा इसे सरकार का दूरदर्शी एवं व्यापक जनहित में लिया गया फैसला बता रही है तो कांग्रेस इसे उनकी बढ़त को देखते हुए चुनावों से डरकर यह फैसला लिया है. जबकि, आप इसे तीर्थ पुरोहितों तथा उनके संघर्ष की जीत बता रही है. ऐसे में अब यह तो आने वाला समय बतायेगा कि देवस्थानम बोर्ड को भंग करने से किसको जीत मिलती है, मगर तब तक सब अपने सर पर सेहरा बांधने का मनसूबे लिए हुए हैं.

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वहीं, केदारनाथ विधायक मनोज रावत का कहना है कि कांग्रेस पार्टी ने पहले ही दिन इस एक्ट का विरोध विधान सभा में कर दिया था. मैं स्वयं विधानसभा में इसके लिए प्राइवेट बिल लाया. कांग्रेस का मानना था कि हक हकूकधारियों से बिना चर्चा के पास किए जा रहे इस बिल को व्यापक चर्चा के लिए प्रवर समिति में भेजा जाय, मगर केन्द्र से लेकर राज्य तक भाजपा की सरकारें अपने अहंकार के चलते पहले अलोकतांत्रिक तरीकों से कानून पास करवा रही है और फिर वापस ले रही हैय यह तीर्थ पुरोहितों, हक हकूकधारियों एवं कांग्रेस पार्टी द्वारा सड़क से विधान सभा तक किए गये संघर्ष की जीत है.

उधर, भाजपा नेत्री और पूर्व विधायक शैलारानी रावत का कहना है कि देवस्थानम बोर्ड को भंग कर युवा मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने साबित किया है वे जन-जन के नेता हैं. उन्हें हर तबके की चिन्ता है, उन्होंने तीर्थ पुरोहितों एवं हक हकूकधारियों के व्यापक हित को देखते हुए बोर्ड को भंग करने का दूरदर्शी एवं स्वागत योग्य कदम उठाकर भाजपा के नारे सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास को सही साबित किया है.

वहीं, आप पार्टी के नेता सुमंत तिवारी का कहना है कि यह तीर्थ पुरोहितों के संघर्ष की जीत है. आम आदमी पार्टी ने ग्राम सभा से लेकर प्रान्त स्तर तक इस आन्दोलन में तीर्थ पुरोहितों का साथ निभाया है. वे स्वयं तीर्थ पुरोहित समाज से ताल्लुक रखते हैं. इसलिए उनके हर संघर्ष में वे कदम से कदम मिला कर साथ चले हैं.

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