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नवरात्र विशेष: यहां अश्रुधार से बनी थी झील, शिव-सती के वियोग का साक्षी है ये मंदिर

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Published : Sep 29, 2019, 7:35 AM IST

शारदीय नवरात्र के पहले दिन जानिए, नैनीताल के नैना देवी मंदिर के बारे में. इस मंदिर के पीछे जुड़ी है शिव-सती के प्रेम और वियोग की कहानी.

नैना देवी मंदिर, नैनीताल

देहरादूनः आज से शारदीय नवरात्र शुरू हो गए हैं. हिंदू धर्म में नवरात्र के नौ दिन बेहद पवित्र बताए गए हैं. हम आपको इन नौ दिनों में प्रदेश के नौ खास देवी मंदिरों के स्थापना के पीछे की पौराणिक कथा बताएंगे. आज सबसे पहले बात करते हैं, नैनीताल के नैना देवी मंदिर की.

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नैनीताल जिले में स्थित नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है. 1880 में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था. बाद में इसे दोबारा बनाया गया. यहां देवी सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है. मंदिर में दो नेत्र हैं, जिन्हें नैना देवी का प्रतीक माना जाता है. नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत जा रहे थे. उस वक्त देवी सती के नयन धरती पर गिरे थे, यही स्थान नैना देवी मंदिर कहलाया.

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प्रदेश ही नहीं पूरे विश्वभर में से लोग हर साल नैना देवी मंदिर पहुंचते हैं. माना जाता है कि मंदिर में सच्चे दिल से मांगी गई दुआ को नैना देवी अवश्य पूरा करती है. ये स्थान पर्यटन स्थल के रुप में भी जाना जाता है.

पौराणिक कथा
ये हम सभी जानते हैं कि हिमालय के राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह शिव से हुआ था. लेकिन, शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे. परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सके. इसलिए उन्होंने न चाहते हुए भी अपनी पुत्री सती का विवाह शिव से करा दिया.

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एक बार दक्ष प्रजापति ने हिमालय के पवित्र स्थान(इसे आज हरिद्वार के नाम भी जाना जाता है) महायज्ञ आयोजित किया. इस यज्ञ में सभी देवताओं को बुलावा गया, लेकिन शिव और सती को निमन्त्रण नहीं दिया गया. हालांकि, पिता की लाडली सती को लगा कि पिता उन्हें बुलाना भूल गए. हठ करके सती पिता दक्ष के भव्य यज्ञ में सम्मिलित होने पहुंची.

जब सती यज्ञ स्थल पहुंची तो उसे आभास हुआ कि उसके पति शिव और उसके लिए कोई भी स्थान नहीं है, ऐसे में उन्हें आभास हुआ कि पिता उनकी और शिव की उपस्थिति यज्ञ में नहीं चाहते थे. जब दक्ष प्रजापति की नजर सती पर पड़ी तो उन्होंने सती का तिरस्कार किया. गुस्से से आग बबूला सती ने यज्ञ में ही खुद को भस्म करने का फैसला लिया और यज्ञ स्थल पर ही अग्नि में समाधि ले ली और अपने प्राण त्याग दिए.

सती की मौत से यज्ञ स्थल पर खलबली मच गई. जब शिव को सती की मौत का पता लगा तो वे बेहद क्रोधित हुए, उन्होंने अपने गणों को दक्ष प्रजापति की हत्या करने का आदेश दिया. शिव गणों ने यज्ञ स्थल में दक्ष प्रजापति और उनकी सेना का सर्वनाश कर दिया. देवी-देवताओं की प्रार्थना पर महादेव ने दक्ष को जीवनदान दे दिया.

पढ़ेंः 29 सितंबर से शुरू होगा शारदीय नवरात्र, जानिए कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा. उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया. कहा जाता है कि शिव के इस हाल को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. ऐसी स्थिति में धरती पर सती के अंग जहां-जहां गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए. कहा जाता है कि नैनीताल में सती के नयन गिरे थे. नयनों की अश्रुधार ने यहां पर ताल का रूप ले लिया, तबसे यहां पर शिव पत्नी सती की पूजा नैनादेवी के रूप में की जाती है.

( ईटीवी भारत इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा की तथ्यता को प्रमाणित नहीं करता है.)

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नैनों से निकली अश्रुधार ने बना डाली थी झील, शिव-सती के प्रेम और वियोग की कहानी बताता है ये मंदिर

देहरादूनः आज से शारदीय नवरात्र शुरू हो गए हैं. हिंदू धर्म में नवरात्र के नौ दिन बेहद पवित्र बताए गए हैं. हम आपको इन नौ दिनों में प्रदेश के नौ खास देवी मंदिरों के स्थापना के पीछे की पौराणिक कथा बताएंगे. आज सबसे पहले बात करते हैं, नैनीताल के नैना देवी मंदिर की.

नैनीताल जिले में स्थित नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है. 1880 में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था. बाद में इसे दोबारा बनाया गया. यहां देवी सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है. मंदिर में दो नेत्र हैं,  जिन्हें नैना देवी का प्रतीक माना जाता है. नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत जा रहे थे. उस वक्त देवी सती के नयन धरती पर गिरे थे, यही स्थान नैना देवी मंदिर कहलाया.

प्रदेश ही नहीं पूरे विश्वभर में से लोग हर साल नैना देवी मंदिर पहुंचते हैं. माना जाता है कि मंदिर में सच्चे दिल से मांगी गई दुआ को नैना देवी अवश्य पूरा करती है. ये स्थान पर्यटन स्थल के रुप में भी जाना जाता है.

पौराणिक कथा

ये हम सभी जानते हैं कि हिमालय के राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह शिव से हुआ था. लेकिन, शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे. परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सके. इसलिए उन्होंने न चाहते हुए भी अपनी पुत्री सती का विवाह शिव से करा दिया. 

एक बार दक्ष प्रजापति ने हिमालय के पवित्र स्थान(इसे आज हरिद्वार के नाम भी जाना जाता है) महायज्ञ आयोजित किया. इस यज्ञ में सभी देवताओं को बुलावा गया, लेकिन शिव और सती को निमन्त्रण नहीं दिया गया. हालांकि पिता की लाडली सती को लगा कि पिता उन्हें बुलाना भूल गए. हठ करके सती पिता दक्ष के भव्य यज्ञ में सम्मिलित होने पहुंची. 

जब सती यज्ञ स्थल पहुंची तो उसे आभास हुआ कि उसके पति शिव और उसके लिए कोई भी स्थान नहीं है, ऐसे में उन्हे आभास हुआ कि पिता उनकी और शिव की उपस्थिति यज्ञ में नहीं चाहते थे. जब दक्ष प्रजापति की नजर सती पर पड़ी तो उन्होंने सती का तिरस्कार किया. गुस्से से आगबबूला सती ने यज्ञ में ही खुद को भस्म करने का फैसला लिया और यज्ञ स्थल पर ही अग्नि में समाधि ले ली और अपने प्राण त्याग दिए.

सती की मौत से यज्ञ स्थल पर खलबली मच गई. जब शिव को सती की मौत का पता लगा तो वे बेहद क्रोधित हुए, उन्होंने अपने गणों को दक्ष प्रजापति की हत्या करने का आदेश दिया. शिव गणों ने यज्ञ स्थल में दक्ष प्रजापति और उनकी सेना का सर्वनाश कर दिया. देवी-देवताओं की प्रार्थना पर महादेव ने दक्ष को जीवनदान दे दिया.

सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा. उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया. कहा जाता है कि शिव के इस हाल को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. ऐसी स्थिति में धरती पर सती के अंग जहां-जहां गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए.

कहा जाता है कि नैनीताल में सती के नयन गिरे थे. नयनों की अश्रुधार ने यहां पर ताल का रूप ले लिया, तबसे यहां पर शिव पत्नी सती की पूजा नैनादेवी के रूप में की जाती है. 


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