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कुमाऊं में खतडवा लोकपर्व की धूम, पशुधन और अच्छी फसल की गई कामना

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Published : Sep 16, 2020, 10:37 PM IST

Updated : Oct 18, 2020, 7:27 PM IST

उत्तराखंड में कई तरह के तीज-त्योहार मनाए जाते हैं. जिसमें खतडवा लोकपर्व भी शामिल है. जिसे शरद ऋतु आगमन के प्रतीक और पशुधन के रूप में मनाया जाता है.

khataduwa festival
खतडवा लोकउत्सव

हल्द्वानी/रामनगरः कुमाऊं की पारंपरिक लोक उत्सव खतडवा पूरे धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. इस दौरान खतडवा जलाकर लोगों ने खीरा-ककड़ी का प्रसाद वितरण किया और लोक पर्व की बधाई दी. वहीं, हल्द्वानी, रामनगर समेत ग्रामीण इलाकों में भी खतडवा जलाई गई. साथ ही पशुधन और अच्छी फसल की कामना की गई.

उत्तराखंड में पहले से ही कृषि और पशुपालन आजीविका का मुख्य साधन रहा है. भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां कई तरह की समस्याएं देखी जाती है, उपजाऊ जमीन होने के बावजूद कृषि और पशुपालन ही जीवन व्यापार का मुख्य साधन है. ऐसे में इस दिन खतडवा जलाकर उत्तम कृषि और पशुधन की कामना की जाती है. इस मौके पर खीरा-ककड़ी समेत कई प्रसाद एक-दूसरे को खिलाकर शरद ऋतु आगमन की तैयारी किया जाता है. साथ ही वर्षा ऋतु को विदाई दी जाती है.

कुमाऊं में खतडवा लोकपर्व की धूम.

मवेशियों की जाती है पूजा
इतना ही नहीं खतडवा का मशाल जलाकर पशुओं के बीमारियों के दूर करने की कामना की जाती है. जबकि, इस दिन पशुओं की पूजा भी की जाती है और मवेशियों की साफ-सफाई के अलावा उनके गौशालाओं को भी साफ किया जाता है. शाम के समय नवयुवक खतडवा जलाकर उसके उपर से छलांग लगाते हैं और उन्नत कृषि और उन्नत पशुपालकों के लिए बधाई देते हैं.

खतडवा लोकपर्व.

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ठंड का आगाज का प्रतीक खतडवा त्योहार
रामनगर में असोज मास की कन्या सक्रांति के मौके पर कुमाऊनी लोगों ने बड़े उल्लास से खतडवा त्योहार मनाया. ऐसी मान्यता है कि आज से ठंड की दस्तक हो जाती है. पहले लोग आज ही के दिन से खतड़े (गद्दे) निकालते थे और ठंड शुरू हो जाती थी. वहीं, प्रकाश पंत और भारती देवी ने बताया कि असोज का महीना शुरू हो गया है. आज से पहाड़ों पर गद्दे निकल जाते हैं. भारती देवी कहती हैं कि घास से पुतला तैयार किया जाता है, फिर उसे जलाया जाता है.

khataduwa festival
खतडवा लोकपर्व.

उस पुतले के ऊपर से बच्चे-बड़े सभी कूदते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस पुतले के ऊपर से कूदने से सारी बीमारियां दूर हो जाती है. भादो मास के अंतिम दिन गाय की गौशाला को साफ किया जाता है. उसमें हरी नर्म घास बिछाई जाती है और पशुओं को पकवान इत्यादि खिलाए जाते हैं. प्रारंभ से ही कुमाऊं, गढ़वाल और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में यह त्योहार मनाया जाता है.

Last Updated :Oct 18, 2020, 7:27 PM IST
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