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आधुनिकता की दौड़ में धूमिल हो रही मेलों की परंपरा, जानिए कारण

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Published : Jul 7, 2022, 3:26 PM IST

आधुनिकता के दौरान में मेलों का महत्व लगभग खत्म सा हो गया है. बच्चे और मेलों में जाने की जिद नहीं बल्कि मोबाइल और लैपटॉल पर समय बिताना पसंद करते हैं. ऐसे में अब हरिद्वार में लगने वाले मेलों की संख्या कम हो गई है. हालांकि, ऋषिकुल मैदान में इन दिनों मेला लगा है लेकिन मेले का आयोजक मेले में लोगों के कम संख्या में पहुंचने से काफी निराश हैं.

Haridwar mahitsav
हरिद्वार मेला

हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार के ऋषिकुल मैदान में इन दिनों विशाल मेला लगा हुआ है. एक जुलाई से शुरू होकर यह मेला 28 जुलाई तक यानी करीब एक महीने तक चलेगा. यह मेला दिल्ली की देव इवेंट ऑर्गेनाइजर कंपनी की ओर से लगाया गया है. हालांकि, अब इन मेलों को देखने उतनी संख्या में दर्शक नहीं पहुंच रहे हैं जबकि, मेले में बड़े-बड़े एम्यूजमेंट पार्क की तर्ज पर अत्याधुनिक तकनीक के झूले लगाए गए हैं.

हरिद्वार महोत्सव में यह है खास: हरिद्वार के मशहूर ऋषिकुल मैदान में आयोजित हो रहे हरिद्वार महोत्सव को और आकर्षक बनाने के लिए आयोजकों ने यहां पर ओपन स्टेज कंपटीशन, हनुमान कथा आयोजन, डांसिंग, सिंगिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया है ताकि घरों में रहने वाले बच्चों की प्रतिभा और निखर सकें.

मेला आयोजकों को मिल रही निराशा.

सुरक्षा पर रहता है ध्यान: आयोजकों का दावा है कि उनके यहां लगाए गए झूले पूरी तरह से सुरक्षित हैं. झूलों को शुरू करने से पहले उनकी रोजाना गहनता से चेकिंग की जाती है, इनकी चेकिंग के लिए अलग से एक पूरी टीम बनाई गई है. वहीं, जांच पूरी होने और अधिकारी के संतुष्ट होने के बाद ही झूलों को जनता के लिए खोला जाता है.

विलुप्त हो रहे मेले: धर्मनगरी हरिद्वार में कुंभ और अर्ध कुंभ के दौरान कई तरह के मेलों का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. बड़े-बड़े मंचों से लोग अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन साल 2016 के बाद पड़ने वाले 2021 के कुंभ में कोरोना के चलते यह आयोजन नजर नहीं आए. हरिद्वार में अब आलम ये है है कि बीते 15 साल से समय-समय पर होने वाले महोत्सव और मेले गायब से हो गए हैं, जो कभी कभार मेले आयोजित होते भी हैं. उनमें ना तो वैसी भीड़ ही नजर आती है और ना ही अब आयोजक इनमें ज्यादा रुचि दिखाते हैं. सदियों से चले आ रहे यह मेले अब लगभग विलुप्ति की कगार पर आ गए हैं.
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मेला आयोजक निराश: करीब डेढ़ दशक पहले तक हरिद्वार के कई इलाकों में अलग-अलग तरह के मेले और महोत्सव का आयोजन होता रहता था, जिसमें न केवल स्थानीय बल्कि आसपास के शहरों से भी लोग शिरकत करने पहुंचते थे लेकिन बीते डेढ़ दशक से हरिद्वार में इस तरह के आयोजन अब कम हो गए हैं. इतना ही नहीं जो आयोजन होते भी हैं. उसमें भी उम्मीद से काफी कम संख्या में लोग पहुंचते हैं, जिस कारण आयोजक काफी निराश हैं.

haridwar
मॉल-मल्टीप्लेक्स धूमिल हुए मेले

मोबाइल युग बना दुश्मन: करीब डेढ़ दशक पहले तक हरिद्वार में समय-समय पर ऐसे आयोजन कई कई दिनों तक चलते थे, जिनमें न केवल हरिद्वार की जनता बल्कि आसपास के शहरों से भी लोग मनोरंजन करने पहुंचते थे लेकिन जैसे-जैसे मोबाइल का दौर आया लोगों की रुचि भी इनसे हट गई.

मॉल-मल्टीप्लेक्स धूमिल हुए मेले: डेढ़ दशक पहले तक लोग अपने शहरों में लगने वाले मेलों का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते थे. जब मेलों का आयोजन होता था तो वहां लोग भारी संख्या में पहुंचते थे लेकिन आज मेलों की जगह शायद मॉल और मल्टीप्लेक्स ने ली है. बड़े-बड़े मल्टीप्लेक्स और मॉल परिसर में ही कई तरह के मनोरंजन के साधन मौजूद हैं, जिसके कारण लोगों अब मेलों-ठेलों की ओर कम रुख करते हैं.

आधुनिक तकनीक भी नहीं कर पा रही आकर्षित: समय बदलने के साथ मेलों में आधुनिक तकनीक का प्रयोग भी उतनी संख्या में दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहा है, जितनी उम्मीद आयोजकों को इस तकनीक का इस्तेमाल करते समय थी, जिस तरह बड़े-बड़े एम्यूजमेंट पार्क में अत्याधुनिक तकनीक के झूले लगाए जा रहे हैं. उसी की तर्ज पर मेलों में भी झूले लगते हैं लेकिन इसके बाद भी आयोजक दर्शकों को उतनी संख्या में आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं, जितनी उन्हें उम्मीद रहती है.

अभी भी जीवित रखी हुई है मेलों की परंपरा: दिल्ली की देव इवेंट ऑर्गेनाइजर कंपनी बीते 30 सालों से मेलों में झूले लगाने का काम करती आ रही है. वहीं, मेले के ऑर्गनाइजर अलोक कुमार करीब 14 साल से देश के विभिन्न क्षेत्रों में मेलों का आयोजन करते हैं. आज भी देश के अलग-अलग राज्यों में यह कंपनी समय-समय पर मेलों का आयोजन कर इस परंपरा को जीवित रखे हुए है.

लंबे समय बाद हो रहा हरिद्वार महोत्सव: बीते कुछ सालों में हरिद्वार में आयोजित होने वाले मेलों में लगातार लोगों की घटती संख्या से आयोजक काफी निराश हैं. इनके आयोजनों में नुकसान होने के कारण अब लगभग अधिकतर आयोजक ऐसे आयोजनों से किनारा कर चुके हैं. जहां हरिद्वार में डेढ़ दशक पहले तक साल में इस तरह के कई बड़े आयोजन हुआ करते थे, जो अब सिमट कर ना के बराबर हो गए हैं.

यहां हैं तरह तरह के झूले: हरिद्वार महोत्सव का आयोजन करने वालों ने मध्यम और निम्न परिवार के लोगों का ध्यान रखते हुए सामान्य रेट पर कई तरह के आधुनिक झूले मेले में लगाए हैं, जिसमें मुख्य रूप से रिवाल्विंग टावर, रेंजर झूला, ज्वाइंट व्हील, इलेक्ट्रिक ड्रैगन, ट्रेन कोलंबस झूला आदि को लगाया गया है. इसके अलावा यहां आने वाले लोगों के लिए तरह-तरह के व्यंजन और सामान भी बिक्री के लिए रखा गया है.

कंपटीशन हुआ खत्म: पहले जिस क्षेत्र में मेला आयोजित किया जाता था वहां की जनता उसे काफी महत्व देती थी, जिस कारण दूसरे आयोजक भी उस क्षेत्र का रुक करते थे लेकिन धीरे-धीरे लोगों द्वारा दिए जाने वाले महत्व के कम होने के कारण मेलों के आयोजकों में भी काफी कमी आई है. आज मेलों का आयोजन एक घाटे का सौदा बनकर रह गया है.

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