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शंकराचार्य विवाद में सामने आए स्वामी शिवानंद सरस्वती, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को दिया समर्थन

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Published : Nov 6, 2022, 6:34 PM IST

Updated : Nov 6, 2022, 7:04 PM IST

Swami Shivanand Saraswati
स्वामी शिवानंद सरस्वती

शारदा पीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य को लेकर विवाद गरमाता जा रहा है. अब इस विवाद में गंगा की अविरलता और निर्मलता के कार्य करने वाली संस्था मातृ सदन के संत स्वामी शिवानंद सरस्वती भी आ गए हैं. उन्होंने अविमुक्तेश्वरानंद को अपना समर्थन दिया है. साथ ही अखाड़ा और शंकराचार्य परिषद को आड़े हाथों लिया है.

हरिद्वारः शारदा पीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को नया उत्तराधिकारी बनाया गया है, लेकिन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य मानने से इंकार कर रहा है. वहीं, गंगा की अविरलता और निर्मलता के कार्य करने वाली संस्था मातृ सदन के संत स्वामी शिवानंद सरस्वती ने अविमुक्तेश्वरानंद के समर्थन में आ गए हैं. उन्होंने अखाड़ा अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी और शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप को आड़े हाथों लिया है. उन्हें शंकराचार्य जैसे पद पर बयान देने का दोनों को अधिकार न होना बताया है.

दरअसल, शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शंकराचार्य बनने के बाद अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी और शंकराचार्य परिषद की ओर से लगातर विरोध किया जा रहा है. जिसके बाद अब हरिद्वार में सालों से गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए कार्य करने वाली संस्था मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती (Swami Shivanand Saraswati), शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के समर्थन में आ गए हैं.

स्वामी शिवानंद सरस्वती का बयान.
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स्वामी शिवानंद ने अखाड़ा परिषद और शंकराचार्य परिषद दोनों ही संस्थाओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उन्हें शंकराचार्य के पद को लेकर किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है. शंकराचार्य की ओर से ही अखाड़ों को बनाया गया था. ऐसे में अखाड़ों को कोई अधिकार नहीं है कि वे शंकराचार्य के पद को चुनौती दें. शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने ही दोनों शिष्यों को अपने रहते शंकराचार्य पद के लिए तैयार किया था. दोनों ही शिष्य शंकराचार्य पद के लिए पूर्ण रूप से योग्य हैं.

अखाड़ा परिषद की ओर से ज्योतिष पीठ पर गिरी नामा संतों का अधिकार की बात के जवाब में उन्होंने कहा कि गिरी नामा संतों को दंडी स्वामी होने का अधिकार ही नहीं है तो फिर शंकराचार्य के पद पर कैसे आ सकते हैं? वहीं, उन्होंने काशी विद्वत परिषद के शास्त्रत होने पर कहा कि शंकराचार्य संस्कृति को दो हजार साल हो गए हैं. जबकि, काशी विद्वत परिषद का गठन 100 साल पहले ही हुआ है.

गौर हो बीती 11 सितंबर को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati) ने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली थी. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था. स्वरूपानंद सरस्वती शारदापीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य थे.

स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद ज्योतिष पीठ (ज्योतिष पीठ) के नए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (Swami Avimukteshwaranand Jyotish Peeth Shankaracharya) होंगे. जबकि, शारदा पीठ के नए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती को बनाया गया है. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की देह को समाधि देने से पहले पूरे विधि विधान के साथ उनके उत्तराधिकारी की घोषणा की गई थी, लेकिन अखाड़ा परिषद ने उन्हें शंकराचार्य मानने से इनकार किया है.
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Last Updated :Nov 6, 2022, 7:04 PM IST
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