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औद्योगिक कचरे से शुद्ध होगा दूषित पानी, IIT रुड़की ने तैयार किया ये सिस्टम

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Published : Oct 16, 2022, 11:52 AM IST

Arsenic Free Drinking Water Technology
आर्सेनिक पानी की समस्या

दुनियाभर में पानी में आर्सेनिक की मात्रा लगातार बढ़ रही है. आर्सेनिक से दूषित जल का असर खाद्य पदार्थों पर भी पड़ रहा है. जो स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होता है. इसी को देखते हुए आईआईटी रुड़की ने एक औद्योगिक कचरे से एड्जॉर्बेट तैयार किया है. जो पानी को साफ करने में मददगार है.

रुड़कीः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (IIT Roorkee) ने आर्सेनिक से दूषित पानी की समस्या के सफल समाधान की सरल और किफायती टेक्नोलाॅजी विकसित की है. जो उपयोग की जगह कहीं भी लगाई जा सकती है. कम लागत का यह समाधान पानी को आर्सेनिक से मुक्त करने के साथ अन्य हेवी मेटल से भी छुटकारा दिला सकता है.

दरअसल, बीती 14 और 15 अक्टूबर को आईआईटी दिल्ली के मेगा आर एंड डी फेयर 'आई इनवेंटिव' में आर्सेनिक मुक्त पेयजल प्रौद्योगिकी प्रोजेक्ट (Sustainable Water Treatment Technology From Industrial waste) प्रदर्शित किया गया. शोधकर्ताओं ने एक अभूतपूर्व एड्जॉर्बेट का विकसित किया है, जो आर्सेनिक की दो सबसे हानिकारक तत्व आर्सेनाइट (As III) और आर्सेनेट (As V) को सोखने के अलावा अन्य हेवी मेटल आयनों से भी छुटकारा दिलाएगा. इस इनोवेशन की दो सबसे मुख्य विशेषताएं हैं. पहला यह आम घरों और फिर बड़ी घरेलू व्यवस्था में पहले से मौजूद पानी साफ करने के सिस्टम में आसानी से लग सकता है.

वहीं, दूसरा उपयोग यह एड्जॉर्बेट एक औद्योगिक कचरा फेरो मैंगनीज स्लैग (Ferro Manganese Slag) और सस्ता नेचुरल रॉक से तैयार किया जाता है. जो एक साधारण रासायनिक प्रक्रिया से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. इन एड्जॉर्बेट मटेरियल का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिलेगा. आने वाले समय में आर्सेनिक मुक्त खाद्य उत्पादों की लागत अधिक होने की संभावना है. इस तरह की सामग्री भविष्य में भी कृषि कार्य में उपयोगी पानी को आर्सेनिक मुक्त करने में सहायक (Arsenic Free Drinking Water Technology) साबित हो सकती है.

आईआईटी रुड़की की प्रोटोटाइप विकास टीम के इनोवेटरों में प्रो. अभिजीत मैती, पॉलिमर और प्रोसेस इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. अनिल कुमार और डॉ. निशांत जैन शामिल हैं. आईआईटी रुड़की के कार्यवाहक निदेशक प्रो. एमएल शर्मा ने कहा कि आर्सेनिक की समस्या पूरी दुनिया में है. अमेरिका और अफ्रीका के कई देशों के जलाशयों में आर्सेनिक और अन्य हेवी मेटल पाए जाते हैं. यह इनोवेशन न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए बहुत फायदेमंद होगा.

खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग पूरी करने के लिए भारी मात्रा में आर्सेनिक से दूषित भूजल का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस वजह से पृथ्वी की सतह पर मौजूद जल भी आर्सेनिक से दूषित हो रहा है. आईआईटी रुड़की के प्रायोजित अनुसंधान और औद्योगिक परामर्श (एसआरआईसी) के डीन प्रो. अक्षय द्विवेदी ने कहा कि फेरो मैंगनीज स्लैग से निपटना उद्योग जगत और पूरे देश के लिए एक बड़ी चुनौती है. इसलिए फेरो मैंगनीज स्लैग का उपयोग करना, पर्यावरण को सस्टेनेबल (Environmentally Sustainable) रखने की दृष्टि से बेहतर होगा. यह प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि इसमें हानिकारक रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है.
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यह प्रोटोटाइप 50 ग्राम (25 ML) सामग्री से तैयार एक फिक्स्ड बेड है. इस पर वास्तविक रूप से आर्सेनिक से दूषित भूजल को लेकर परीक्षण किया गया. जिसमें प्रारंभिक आर्सेनिक कंसंट्रेशन 100-200 माइक्रोग्राम/लीटर था और एड्जॉर्बेट के साथ इसके संपर्क का समय 2 मिनट रखा गया था. इस तरह लगभग 250-300 लीटर पानी का उत्पादन किया गया. जिसमें आर्सेनिक का कंसंट्रेशन 10 माइक्रोग्राम/लीटर (WHO की अधिकतम सीमा) से कम पाया गया.

वहीं, आईआईटी रुड़की के पॉलिमर और प्रोसेस इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर अभिजीत मैती ने कहा कि इस इनोवेशन के तीन बुनियादी आधार हैं. कम लागत की कच्ची सामग्रियां, रसायनों का न्यूनतम उपयोग और अशुद्धि हटाने की प्रक्रिया का आसानी से व्यापक उपयोग करना है. इसमें पर्यावरण के सस्टेनेबिलिटी को ध्यान में रखते हुए फेरो मैंगनीज स्लैग नामक औद्योगिक कचरे का उपयोग किया गया है. जिसका बाजार मूल्य बहुत कम है. इस तरह विकसित प्रौद्योगिकी से औद्योगिक परिवेश में रासायनिक प्रक्रिया से एक बैच में लगभग 500 किलोग्राम पेलेट युक्त सामग्री तैयार की जा चुकी है.

उन्होंने बताया इसमें एक औद्योगिक भागीदार एसईआरबी, प्रोजेक्ट स्कीम इम्प्रिंट 2 ए (Imprint 2A) के माध्यम से इस प्रोजेक्ट से जुड़ा था. आर्सेनिक दूषित जल की स्थिति में आर्सेनिक मुक्त करने का यह प्रयोग सफलतापूर्वक पूरा किया गया है. यह प्रौद्योगिकी 8000 लीटर पानी फिल्टर कर सकती है और एक आम 4-5 सदस्यीय परिवार में कई वर्षों तक इसका उपयोग किया जा सकता है.

इसे स्थानांतरित करना आसान और किफायती भी है, क्योंकि इसके लिए एड्जॉर्बेट औद्योगिक कचरे से तैयार किया जाता है. जिसकी व्यावसायिक लागत बहुत कम है. वर्तमान में यह प्रौद्योगिकी भारत में उपलब्ध नहीं है और बाजार में जो आयातित एड्जॉर्बेट उपलब्ध हैं, सीमित मात्रा में हैं और इसलिए इन पर लागत भी काफी अधिक है.
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