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कंस के वध की भविष्यवाणी के बाद यहां गिरी थीं यशोदा की बेटी, दर्शन मात्र से दूर होते हैं दुख

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Published : Apr 13, 2019, 10:53 AM IST

मां विंध्यवासिनी मंदिर में रामनवमी के मौके पर श्रद्धालु यहां पर मनोकामना सिद्धि के लिए पहुंचते हैं. यहां मंदिर में गुड़ की भेली चढ़ाने की परंपरा है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां विंध्यवासिनी को सती का ही रूप माना जाता है. इसलिए उन्हें वन दुर्गा भी कहा जाता है. साथ ही मां विंध्यवासिनी को योग माया भी कहा जाता है.

मां विंध्यवासिनी मंदिर

हरिद्वारः इन दिनों पूरे देश में नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है. देशभर में माता के मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. इसी क्रम में राजाजी नेशनल के जंगल में स्थित मां विंध्यवासिनी देवी के मंदिर में रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. ये मंदिर सिद्धि साधना के लिए भी जाना जाता है. कंस के वध की भविष्यवाणी के बाद यशोदा की बेटी इसी स्थान पर गिरी थीं. यहां पर गुड़ की भेली चढ़ाने मां विंध्यवासिनी के दर्शन मात्र करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. साथ ही माता सभी की मनोकामनाएं भी पूरी करती हैं.

नवरात्रि के मौके पर यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. इस मंदिर तक हरिद्वार और ऋषिकेश दोनों जगहों से पहुंचा जा सकता है. मंदिर तक पहुंचने के लिए हरिद्वार के चीला होते हुए ऋषिकेश के रास्ते में गंगा नदी पर बने पुल को पार कर जंगल के रास्ते जाना पड़ता है. रास्ते में कई बरसाती नाले भी पड़ते हैं, जहां से करीब एक किलोमीटर का रास्ता पैदल और बाइक से जा सकते हैं.

मां विंध्यवासिनी मंदिर में लगा श्रद्धालुओं का तांता.

विशेषकर रामनवमी में श्रद्धालु यहां पर मनोकामना सिद्धि के लिए पहुंचते हैं. माना जाता है कि जब भगवान राम वनवास से वापस अयोध्या लौट रहे थे, तो रास्ते में वह भी यहां पर मां के दर्शन करने के लिए रुके थे. यहां मंदिर में गुड़ की भेली चढ़ाने की परंपरा है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां विंध्यवासिनी को सती का ही रूप माना जाता है. इसलिए उन्हें वन दुर्गा भी कहा जाता है. साथ ही मां विंध्यवासिनी को योग माया भी कहा जाता है.

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घने जंगलों के बीच स्थित इस मंदिर का पौराणिक महत्व है. माना जाता है कि द्वापर युग में जेल में बंद कंस की बहन देवकी की आठवीं संतान ही कंस की मौत का कारण बनने की भविष्यवाणी हुई थी. तब कंस ने अपनी ही बहन की पहली सातों संतानों को पैदा होते ही मार दिया था, लेकिन जब उनकी आठवीं संतान पैदा हुई थी. तब सबको नींद आ गई थी. साथ ही घनघोर बारिश हो रही थी, जिससे यमुना नदी पूरे उफान पर थी. ऐसे में वासुदेव एक टोकरी को सिर पर रख कर अपनी संतान को यमुना पार कर यशोदा के घर ले गए. जहां यशोदा ने भी इसी वक्त एक पुत्री को जन्म दिया था. वासुदेव ने देवकी के पुत्र को यशोदा के पास सुला कर और उनकी पुत्री को लाकर वापस जेल में रख दिया था.

जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के पैदा होने की सूचना मिली तो कंस जेल पहुंचा. उस बच्ची को कंस ने पत्थर पर जब उसे पटक कर मारना चाहा तो कन्या उसके हाथों से छिटक कर चली गई. मान्यता है कि कंस के हाथों से छिटक कर कन्या इसी स्थान पर आकर गिरी थी. तब से ये एक सिद्ध स्थान बन गया.

श्रद्धालुओं का कहना है कि इस मंदिर में आकर उन्हें अलौकिक अनुभूति प्राप्त होती है. वो इस मंदिर में हर बार नवरात्रि के मौके पर आते हैं. माता से जो भी मुराद मांगते हैं, वो पूरी होती हैं. उनका कहना है कि यहां पर जंगल होने के साथ मंदिर में शांति की अनुभूति होती है.

Intro:नवरात्रों में जहां पूरे देश भर में माता के मंदिरों में श्रद्धालुओं का ताता लगा वहीं हरिद्वार में भी माता के कई सिद्ध पीठ मंदिर है जहां पर भक्त माता से अपनी मुरादे मांगते हैं हरिद्वार राजाजी नेशनल पार के जंगलों में स्थित मां विंध्यवासिनी देवी का मंदिर है मान्यता है कि मां विंध्यवासिनी सभी भक्तों के दुख दूर करती है और सभी की मनोकामना भी मां के दर्शन मात्र से ही दूर हो जाती है मां विंध्यवासिनी मां भगवती योगमाता का ही रूप है मां विंध्यवासिनी मां यशोदा की पुत्री थी और उन्हें भगवान श्री कृष्ण की बहन ही माना जाता है वैसे तो मां विंध्यवासिनी के देश में तो और भी मंदिर है मगर राजाजी नेशनल पार्क चीला के जंगलों में स्थित मंदिर की मान्यता भी बहुत ज्यादा है पुराणों के अनुसार मां विंध्यवासिनी को सती का ही रूप माना जाता है इसलिए उन्हें वन दुर्गा भी कहा जाता है वैसे तो मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है मगर नवरात्रों में तो दूर दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन करने आते हैं इस मंदिर को सिद्धि साधना के लिए भी जाना जाता है


Body:मां विंध्यवासिनी को योग माया भी कहा जाता है मार्कण्डेय पुराण के अनुसार और दुर्गा सप्तशती की कथा में भी कहा गया है कि मां विंध्यवासिनी की उपासना और साधना तीनों लोको के देवता ब्रह्मा विष्णु और महेश भी करते हैं यहां वैसे तो साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है मगर नवरात्रों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पर मनोकामना सिद्धि के लिए आते हैं रामनवमी को यहां बहुत बड़ा आयोजन होता है कहा जाता है कि जब भगवान राम वनवास से वापस अयोध्या लौट रहे थे तो रास्ते में वह भी यहां पर मां के दर्शन करने के लिए रुके थे यहां मंदिर में गुड़ की भेली चढ़ाने की परंपरा भी है कहा जाता है कि गुड़ की भेली को जब माता के सामने फोड़ा जाता है तो माना जाता है कि जो भी व्यक्ति गुड़ की भेली चढ़ा रहा है उसकी सभी कष्ट दूर हो गए है और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है

बाइट-- महिमानंद बर्थवाल--पुजारी विंध्यवासिनी मंदिर

दुष्टों का संहार करने वाली और भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली मां भगवती के विंध्यवासिनी रूप के दर्शन करने हैं तो आप चले आइए हरिद्वार के राजाजी नेशनल पार्क चिल्ला के जंगलों में स्थित मां विंध्यवासिनी के मंदिर में यह मंदिर ऋषिकेश के पास पड़ता है और यहां पर हरिद्वार और ऋषिकेश दोनों जगह से पहुंचा जा सकता है हरिद्वार के चीला होते हुए ऋषिकेश के रास्ते में गंगा नदी पर बने पुल को पार कर जंगल के रास्ते जाना पड़ता है रास्ते में कई बरसाती नदिया पड़ती है वहां तक तो आप कार से जा सकते हैं मगर इसके आगे करीब 1 किलोमीटर का रास्ता पैदल या बाइक पर ही करना पड़ता है घने जंगलों के बीच बने मंदिर का पौराणिक महत्व है माना जाता है कि जब भविष्यवाणी हुई थी कि जेल में बंद कंस की बहन देवकी की आठवीं संतान ही कंस की मौत का कारण बनेगी तो कंस ने अपनी ही बहन की पहली सातों संतानों को पैदा होते ही मार दिया था मगर जब उसकी आठवीं संतान पैदा हुई थी तब घनघोर बारिश हो रही थी यमुना नदी पूरे उफान पर थी ऐसे में वासुदेव एक टोकरी को सर पर रख कर अपनी संतान को यमुना पार कर यशोदा के घर ले गए जहां मां भगवती की कृपा से यशोदा ने भी इसी वक्त एक पुत्री को जन्म दिया था वासुदेव देवकी के पुत्र को यशोदा के पास सुला दिया और उसकी पुत्री को लाकर वापस जेल में रख दिया इसके बाद जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के पैदा होने की सूचना मिली तो कंस जेल पहुंचा और उस बच्ची को उठाकर ले गया कंस ने पत्थर पर जब उसे पटक कर मारना चाहा तो कन्या उसके हाथों से छिटक कर चली गई मान्यता है कि कंस के हाथों से छिटक कर कन्या ने जाते हुए कंस के वध की भविष्यवाणी की थी और वह कन्या पौड़ी गढ़वाल के जंगलों में इस स्थान पर आकर गिरी जहाँ बाद में यह एक सिद्ध स्थान बन गया

बाइट-- महंत विंध्यवासिनी दास--संचालक विंध्यवासिनी मंदिर

माता के इस मंदिर में दूर दूर से आकर श्रद्धालु अपनी मुराद मांगने आते हैं और मुराद पूरी होने पर फिर माता के दर्शन करने आते हैं श्रद्धालुओं का कहना है कि इस मंदिर में आकर उन्हें आलौकिक अनुभूति प्राप्त होती है तभी वह इस मंदिर में हर बार नवरात्रों में आते हैं माता से जो भी हम मुराद मांगते हैं माता हमारी सारी मुरादें पूरी करती है यह मंदिर जंगलों के बीच बना है तो यहां पर आकर और भी अच्छा लगता है क्योंकि आसपास पहाड़ियों से मंदिर में शांति की अनुभूति होती है

बाइट-- वंदना गुप्ता--श्रद्धालु
बाइट-- विपिन चंद्र जोशी--श्रद्धालु
बाइट-- दीपक पांडेय---श्रद्धालु


Conclusion:कहते हैं मां के दरबार में भक्त जो भी मुरादे मांगते हैं माँ उन सभी मुरादों को पूरी करती है तभी तो मां के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है और भक्त मुराद पूरी होने पर मां के दरबार में जाकर अपना माथा भी टेकते हैं वैसे तो हरिद्वार में माता के कई पुराणिक मंदिर है मगर जंगल के बीच पहाड़ियों की खूबसूरती में बसा यह विंध्यवासिनी मंदिर एक अनोखा मंदिर और यहां माता के भक्तों को अलौकिक ही शांति की प्राप्ति होती है
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