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ट्राउट और महाशीर मछली साबित होगी गेमचेंजर, उत्पादन बढ़ाने में जुटी सरकार

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Published : Oct 16, 2020, 4:58 PM IST

Updated : Oct 16, 2020, 5:57 PM IST

दुनिया की बेहतरीन मछली के रूप में जानी जाने वाली प्रजातियों का ठिकाना शीतल जल है और उत्तराखंड में मौजूद हालात इसके लिए सबसे बेहतर हैं. ईटीवी भारत अपनी रिपोर्ट के जरिए बता रहा है कि कैसे ठंडे और निर्मल जल से किसानों की किस्मत जुड़ी हुई है.

Trout and mahseer fish
ट्राउट और महाशीर मछली

देहरादून: उत्तराखंड सरकार किसानों की आय दोगुनी करने में जुटी हुई है. उत्तराखंड में अब काश्तकारों की आर्थिकी का मछली पालन मुख्य आधार बन सकती है. प्रदेश में मत्स्य पालन को बढ़ावा देकर इसे आर्थिकी का बड़ा जरिया बनाने को लेकर सरकार सक्रिय हुई है. इस कड़ी में मछली की ट्राउट और महाशीर प्रजाति की राज्य में व्यापक संभावनाओं को देखते हुए किसानों को इनके पालन से जोड़ा जा रहा है.

अकेले उत्तराखंड के बाजारों में ही 70 हजार मीट्रिक टन मछलियों की मांग है. लेकिन प्रदेश के किसान महज 7000 मीट्रिक टन मछलियों का ही उत्पादन कर पाते हैं. बाकी डिमांड दूसरे राज्यों से पूरी करनी पड़ती है. इधर, प्रदेश से बाहर भी उत्तराखंड की मछलियों की डिमांड बेहद ज्यादा है. इस तरह यदि मत्स्य पालन पर फोकस किया जाए तो उत्तराखंड की मछलियों के लिए न केवल प्रदेश, बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी बड़ा बाजार उपलब्ध है. ऐसे में मछलियों की बढ़ती मांग को देखते हुए प्रदेश में मछली पालन को खासी तवज्जो दी जा रही है.

ट्राउट और महाशीर मछली साबित होगी गेमचेंजर.

जानकार बताते हैं कि ट्राउट मछली दिल के मरीजों के लिए रामबाण का काम करती है. यह मछली ठंडे पानी में रहती है. यह ट्राउट और महाशीर मछली की प्रजातियां हिमाचल, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड में पाई जाती हैं. इन मछलियों के लिए 10 से 20 डिग्री सेल्सियस का तापमान चाहिए. जो उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों की जलधाराओं में उपलब्ध होता है. ट्राउट मछली का पूरे देश में करीब 842 टन का उत्पादन होता है. जिसमें 80% हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर उत्पादन करते हैं. उत्तराखंड में उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ और चकराता में कुछ किसान ट्राउट और महाशीर की फार्मिंग कर रहे हैं. ट्राउट मछली 1,000 से 1500 रुपए प्रति किलो तक बिकती है.

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ट्राउट मछली हृदय कैंसर रोगियों के लिए रामबाण

ट्राउट मछली का अन्तराष्ट्रीय कारोबार है. ट्राउट मछली पहली बार अंग्रेज अपने साथ उत्तराखंड 1913 में लेकर आए. ट्राउट मछली उत्तरकाशी के डोडीताल में पाई जाती है. 120 वर्ष पहले नार्वे के नेल्सन ने डोडीताल में ट्राउट मछली के अंडे डाले थे और तब से डोडीताल में एंगलिंग के लिए देश-विदेश के सैलानी यहां पहुचते है.

ट्राउट मछली में केवल एक कांटा होता है. इसे निकालने के बाद आप इसे चिकन और मटन की तरह पका सकते है. ट्राउट मछली में ओमेगा थ्री फाइटीएसिड नामक तत्व होता है, जो बहुत दुर्लभ पोषक तत्व है. इसके ट्राउड मछली हृदय रोगियों के लिए रामबाण है. साथ ही यह मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और कोलस्ट्रॉल को भी नियंत्रित करती है.

क्यों खास है ट्राउट मछली

ट्राउट मछलियों का बाजार भारत में ही नहीं, पश्चिमी देशों में भी है. यूरोप, अमेरिका की ठंडी नदियों में ट्राउट मछलियां पायीं जातीं हैं. डिब्बा बंद मीट में इसका बड़ा बाजार है. स्वाद और पौष्टिकता में ट्राउट सबसे अलग है.

ऐसी होती है महाशीर मछली

भारत में महाशीर का अर्थ बड़े मुंहवाला से है. लंबी पतले आकार वाली महाशीर ताजे पानी की सभी शिकारी मछलियों में सबसे लड़ाकू मानी जाती है. इसीलिए इसे नदियों का राजा भी कहा जाता है. महाशीर तेज बहाव वाली नदियों में ही पाई जाती है. ये प्रतिकूल धारा में 20 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से तैरती है. जबकि इसका वजन 7 से 8 किलो तक होता है और उम्र 20 से 25 साल तक होती है. पिथौरागढ़ की काली और सरयू नदी में महाशीर मछली काफी संख्या में पाई जाती है.

उत्तराखंड की ये जगह सबसे मुफीद

उत्तराखंड में मौजूदा समय में करीब 10 लाख किसान हैं. इनमें मात्र एक प्रतिशत ही मत्स्य पालन से जुड़े हुए हैं. ऐसे में सरकार मछली उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ किसानों को शीतल जल की मछलियों के पालन से जुड़ी जानकारियां और प्रशिक्षण भी दे रही है. हिमाचल और जम्मू कश्मीर जैसे राज्य 80% शीतल जल की मछलियों का उत्पादन कर बेहतर राजस्व कमा रहे हैं. वहीं, उत्तराखंड इस मामले में अभी काफी पीछे हैं. यही कारण है कि उत्तराखंड सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए अब इन्हीं मछलियों को किसानों का भाग्य विधाता बनाने जा रही है.

Last Updated :Oct 16, 2020, 5:57 PM IST
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