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उत्तराखंड: 2017 की हार से भी कांग्रेस नहीं ले रही सबक, 'नाक' के चक्कर में दाव पर साख

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Published : Jul 18, 2020, 6:26 PM IST

Updated : Jul 19, 2020, 1:10 PM IST

कांग्रेस को इसी गुटबाजी की वजह से 2017 के विधासनभा में हार का सामना करना पड़ा है. तब कांग्रेस को 70 में 11 सीटे में मिली है. चुनाव के तीन साल भी कांग्रेस ने अभीतक कोई सबक नहीं लिया है.

उत्तराखंड कांग्रेस
उत्तराखंड कांग्रेस

देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. ऐसा इसीलिए कहा जा रहा कि क्योंकि बीते दिनों कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय देहरादून में हुए पदाधिकारियों की बैठक में नेताओं के बीच जो आपसी सिर फुटव्वल हुआ था उसकी खबरें अब धीरे-धीरे पब्लिक डोमेन में पहुंचने लगी हैं. ऐसे में इन खबरों में कितना सच्चाई है. ये जानने के लिए ईटीवी भारत ने बैठक में हिस्सा लेने वाले कांग्रेस के नेताओं से बात की और सच्चाई जानने का प्रयास किया. इस दौरान सामने आया कि बैठक में संगठनात्मक मजबूती का संकल्प लेने की जगह एक खेमे के नेताओं ने दूसरे खेमे के कार्यकर्ताओं पर न सिर्फ अपनी खीज निकली, बल्कि नाराजगी भी जाहिर की है.

बता दें कि उत्तराखंड कांग्रेस ने प्रदेश संगठन के मजबूत करने और आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने व 2017 के चुनाव में अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने के लिए सात जुलाई से नौ जुलाई के बीच तीन दिवसीय बैठक का आयोजन किया था, लेकिन कांग्रेस की ये बैठक भी अंदरुनी कलह और गुटबाजी की भेट चढ़ गई. मिशन 2022 को लेकर प्रदेश कांग्रेस संगठन की तैयारी पर अंदरुनी कलह हावी रही. बैठक में शामिल हुए कांग्रेस नेताओं के बयान इस ओर इशारा कर रहे हैं. हालांकि, कोई भी नेता इस पर ज्यादा खुलकर नहीं बोल रहा है. इस पूरे मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हीरा सिंह बिष्ट ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को बड़े नेताओं का सम्मान करना चाहिए. बैठक की जो बाते नमक मिर्च लगाकर बाहर पहुंच जाती हैं उनको भी रोकना चाहिए.

2017 की हार से भी कांग्रेस नहीं ले रही सबक.

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दरअसल, कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत बैठक में तीसरे दिन शामिल नहीं हुए थे, जिसको लेकर चर्चाओं बाजार गर्म है. कांग्रेसी सूत्रों पर यकीन करें तो बैठक के दूसरे दिन नेताओं के बीच जमकर घमासान हुआ था, जिस कारण तीसरे हरीश रावत बैठक में शामिल नहीं हुए थे. दूसरे दिन की बैठक में गुटबाजी चरम में देखने को मिली थी. यही कारण था कि बैठक अपने मुद्दे से भटक गई और वर्चस्व की लड़ाई की भेट चढ़ गई. जब इस बारे में हरीश रावत ने बात की गई तो वे खुलकर कुछ नहीं बोले. उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि बैठक में क्या मुद्दे उठे थे और उसका क्या करना है यह निर्णय लेना प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का काम है. बैठक में सभी पदाधिकारी मौजूद थे.

इस बारे में जब प्रदेश महामंत्री विजय सारस्वत से बात कि गई तो उन्होंने कहा कि जब प्रदेश स्तरीय नेता संगठन को मजबूत करने और मंथन करने के लिए बैठते हैं तो निश्चित तौर पर सभी पार्टी पदाधिकारी सीनियर नेताओं से न सिर्फ जानकारी हासिल करते हैं. बल्कि अपनी बात रखने का भी भरसक प्रयास करते हैं. ताकि संगठन में पारदर्शिता के साथ संगठन को मजबूत किया जा सके. हालांकि, उन्होंने इशारों- इशारों में बताया कि इस बैठक में सब कुछ सामान्य तो नहीं रहा.

उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने बैठक में गुटबाजी और कलक की खबरों को सिरे से नाकारा है. उन्होंने कहा है कि कांग्रेस में कोई खेमेबाजी और गुटबाजी नहीं है. लिहाजा, सबका नेतृत्व सोनिया गांधी, राहुल गांधी कर रहे हैं.

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कांग्रेस में ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा है, जब इस तरह की गुटबाजी देखने को मिल रही है. इसके पहले भी कई मौके पर पार्टी के वरिष्ठ नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते हुए नजर आए हैं. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत की मानें तो देहरादून से दिल्ली तक कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी अनेकों बार पहले भी जगजाहिर हो चुकी है. उत्तराखंड कांग्रेस में भी नेताओं की नाक की लड़ाई कई बार सुर्खियां बनी हैं, जो उत्तराखंड में कांग्रेस के भविष्य के लिए ठीक नहीं है.

जब मामला कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी से जुड़ा हो बीजेपी भी इस मामले में चटकारे लेने से कहा पीछे रहने वाली थी. बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉ. देवेंद्र भसीन ने चुटकी लेते हुए कहा कि कांग्रेस का उद्देश्य समाज सेवा करना नहीं रहा है, बल्कि जनता को गुमराह करना है. कांग्रेसी नेताओं के बीच अक्सर वर्चस्व की लड़ाई देखी जाती रही है.

बीजेपी के इस वार का कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने भी जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष के मंत्री और विधायक खुद अपना दर्द बयां कर रहे हैं. बीजेपी में मंत्रियों के बीच हुए विवाद जग जाहिर है. जिनके घर शीशे के होते हैं, वह दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंका करते.

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कांग्रेस को इसी गुटबाजी की वजह से 2017 के विधानसभा में हार का मुंह देखना पड़ा था और मात्र 70 से 11 सीटें उसकी झोली में गिरीं थी. लेकिन अभी भी कांग्रेस की गुटबाजी अपने चरम पर है. यदि समय रहते कांग्रेस अंरुदनी कलह और गुटबाजी से बाहर नहीं आई तो इसका खामियाजा कांग्रेस को आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ सकता है.

Last Updated :Jul 19, 2020, 1:10 PM IST
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