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उत्तराखंड में 500 से ज्यादा 'लापता' तालाबों की खोज शुरू, टूटेंगी कई अवैध बस्तियां

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Published : Apr 15, 2022, 12:35 PM IST

उत्तराखंड की जमीन से अनेक तालाब, पोखर लापता (missing ponds in Uttarakhand) हो गए हैं. जिनकी खोज में अब राज्य और केंद्र सरकार मिलकर काम रही हैं. राज्य में तालाबों की मौजूदगी को लेकर अब सरकारी दस्तावेज खंगाले जा रहे हैं. रिपोर्ट तैयार की जा रही है. इतना ही नहीं तालाबों पर हुए अवैध निर्माण तोड़े जाने को लेकर भी कदम उठाने की तैयारी की जा रही है

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उत्तराखंड में 'लापता' तालाबों की खोज शुरू

देहरादून: उत्तराखंड में किसी जमाने में 3000 छोटे-बड़े तालाब हुआ करते थे. लेकिन अब इनमें से बहुत से तालाब (missing ponds in Uttarakhand) गायब हो गए हैं. अकेले उधम सिंह नगर में ही 500 से अधिक तालाब खोजने से भी नहीं मिल रहे हैं. ऐसा ही हाल हरिद्वार का भी है. ऐसे में अब उत्तराखंड में भी लापता तालाबों की खोज शुरू हो गई है. केंद्र सरकार के भू जल संरक्षण (ground water conservation) के प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए राज्य सरकार ने भी इसके लिए कवायद तेज कर दी है. राज्य सरकार एक बड़े अभियान के साथ उन तमाम अतिक्रमणों पर बुलडोजर चलाने जा रही है, जहां कभी तालाब हुआ करते थे.

भारत सरकार भू जल संरक्षण के लिए तमाम प्रयास कर रही है. भारत सरकार का जल शक्ति मंत्रालय छोटी बड़ी नदियों को अविरल और निर्मल बनाने के साथ ही अब एक बड़ी पहल शहरों और गांवों के उन तालाबों को पुनर्जीवित करने की है जो समय के साथ लुप्त हो गए हैं. उत्तराखंड सरकार को इसके लिए भारत सरकार ने एक पत्र भेजा है. पत्र में प्रदेश में तालाबों की स्थिति को सुधारने की बात कही गई है. साथ ही जिन तालाबों पर अतिक्रमण हुआ है, उन्हें भी मुक्त करवाने की बात पत्र में कही गई है. केंद्र सरकार से मिले इस पत्र के बाद राज्य सरकार ने कवायद तेज कर दी है.

उधम सिंह नगर और हरिद्वार में सबसे ज्यादा लापता तालाब: उत्तराखंड में 2 जिलों में सबसे अधिक तालाब हुआ करते थे. यह दोनों जिले ही मैदानी यानी तराई क्षेत्र के हैं. हरिद्वार और उधम सिंह नगर दोनों ऐसे जिले हैं जहां पर समय के साथ कंक्रीट के जंगल खड़े हुए हैं. इन तालाबों के आसपास पहले तो छोटे-मोटे रिहायशी इलाके बने. उसके बाद यहां बस्तियां बन गईं. जिसके कारण तालाब यहां से गायब हो गये.

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केंद्र सरकार चाहती है कि तालाबों के ऊपर हुए अतिक्रमण को राज्य सरकारें मुक्त कराएं. इन तालाबों को फिर से पुनर्जीवित किया जाये. अब राज्य सरकार इन दोनों जनपदों में पुराने तालाबों की खोजबीन में जुट गई है. इसके लिए दोनों ही जिलों के जिलाधिकारियों को रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया है. इस रिपोर्ट में तालाबों की पुरानी स्थिति, अतिक्रमण से संबंधित पूरी जानकारी होगी.

कुमाऊं में काम शुरू: उत्तराखंड के तराई इलाकों में राजस्व विभाग की टीमें इस काम को अमलीजामा पहनाएंगी. हरिद्वार और उधम सिंह नगर जैसे जनपदों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 3000 छोटे-बड़े तालाब हुआ करते थे, लेकिन अब इनमें से बहुत से तालाब गायब हो गए हैं. अकेले उधम सिंह नगर में ही 500 से अधिक तालाब खोजने से भी नहीं मिल रहे हैं. ऐसा ही हाल हरिद्वार का भी है. ऐसे में अब राज्य सरकार एक बड़े अभियान के साथ उन तमाम अतिक्रमणों पर बुलडोजर चलाने जा रही है जहां कभी तालाब हुआ करते थे.

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सरकार के लिए है बड़ा टास्क: उत्तराखंड सरकार में जलागम विभाग संभाल रहे सतपाल महाराज की मानें तो केंद्र सरकार ने जो भी काम दिया है, उसे राज्य सरकार तेजी से पूरा करेगी. सतपाल महाराज ने कहा इसमें कोई दो राय नहीं है कि जमीन के अंदर जल की मात्रा अगर सही रहेगी तो किसानों और जनता दोनों को ही इसका फायदा होगा. ऐसे में राज्य सरकार ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि अगर कहीं तालाब सूखने की कगार पर हैं, तो उनमें से मलबा निकाला जाए. अगर कहीं तालाबों पर अतिक्रमण हुआ है, तो तत्काल अतिक्रमण को हटाकर तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए.

सतपाल महाराज कहते हैं कि इसमें थोड़ा समय जरूर लगेगा, लेकिन इसके परिणाम आने वाले सालों में बेहद अच्छे होंगे. उन्होंने बताया जो तालाब गाद से भर गए हैं, उनसे गाद निकालने का काम भी तेजी से होगा. सतपाल महाराज कहते हैं कई जगहों पर भूमाफिया ने तालाबों पर बस्तियों को बसाने या कब्जा करने का काम किया है, वहां भी कार्रवाई की जाएगी.

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नारसन में है सबसे पुराना तालाब: तराई के इलाकों में कहा जाता है कि सबसे पुराना तालाब हरिद्वार जिले के नारसन क्षेत्र के खेड़ा जट गांव में हुआ करता था. अब यह तालाब लुप्त होने की कगार पर है. यहां लगातार अतिक्रमण हो रहा है. लोग इस तालाब में कूड़ा-करकट फेंकते नजर आते हैं. इस तालाब की आखिरी बार सफाई 1982 में हुई थी. उसके बाद से ही इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

मूल स्वरूप खो रहा 650 साल पुराना तालाब: खास बात यह है कि इस तालाब की लोग पूजा भी करते थे. इतना ही नहीं इस तालाब को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी एक बार टिप्पणी करते हुए कहा था कि 1962 के स्वरूप में ही इस स्थल को लाया जाए. बताया जाता है कि यह तालाब साल 1362 में बनाया गया था. मगर उचित रखरखाव और प्रशासन और सरकारों की उदासीनता के कारण आज ये तालाब अपना मूल स्वपरूप खो चुका है.

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