देहरादून: वैश्विक महामारी कोरोना और लॉकडाउन के कारण सभी की जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है. कोरोना के कारण आज लोग घरों में कैद हैं, सभी स्कूल कॉलेज बंद हैं. ऐसे में बच्चों की शिक्षा बाधित न हो, इसके लिए केंद्र सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली पर जोर दिया है ताकि छात्र घर पर ही शिक्षा ग्रहण कर सकें. ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से जहां फायदा हुआ है तो वहीं, इसके कुछ नुकसान भी निकलकर सामने आये हैं.
दरअसल, अधिक समय फोन के सामने बिताने के बाद बच्चों और युवाओं को फोन की लत लग गई है. छात्र घंटों अपना समय फोन पर बिता रहे हैं, जिसके कई नुकसान भी हैं.
![online education](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8495160_student4.png)
लॉकडाउन के दौरान बच्चों को शिक्षा देने का विकल्प न होने के चलते ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली पर जोर दिया गया. मगर वास्तविक स्थिति यह है कि लॉकडाउन से पहले भी बच्चे और युवा मोबाइल फोन की लत से ग्रसित थे. वहीं, जब से ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली लागू की गई है तब से ये लत और बढ़ गई है. हो ये रहा है कि इस आदत से छात्रों की आंखें कमजोर हो रही हैं, जबकि इससे भविष्य में मानसिक तौर पर भी कई परेशानियां सामने आ सकती हैं.
पढ़ें- 2022 चुनाव के लिए 'आप' ने कसी कमर, दिल्ली की तर्ज पर उत्तराखंड फतह करने की तैयारी
मनोचिकित्सक मेजर नंद किशोर बताते हैं कि देश में ई-क्लासेस शुरू होने से पहले भी बच्चे अपना ज्यादा समय मोबाइल फोन पर बिता रहे थे. ई-क्लास शुरू होने के बाद ये समय और ज्यादा बढ़ गया है. लिहाजा, स्क्रीन डिपेंडेंसी से न सिर्फ आंखों पर असर पड़ रहा है बल्कि आने वाले समय में एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, दिमागी थकावट, एंजायटी आदि बीमारियां भी बच्चों और युवाओं में देखने को मिल सकती हैं.
पढ़ें- मार्ग बहने से यमुनोत्री हाईवे बंद, लोग जान जोखिम में डालकर कर रहे आवाजाही
मनोचिकित्सक ने बताया कि पिछले कुछ सालों से मोबाइल, इंटरनेट, स्क्रीन डिपेंडेंसी जैसी बीमारी धीरे-धीरे स्थापित हो रही थीं, जो कोरोना काल में उभरकर सामने आ रही हैं. ऐसे में बच्चों को इस लत से निकालने की जरूरत है. इसके लिए सबसे पहले पेरेंट्स को पहल करनी होगी कि वह खुद स्क्रीन डिपेंडेंसी से बचें.
![online education](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8495160_student1.png)
पढ़ें- मोली: आफत की बारिश जारी, कहीं बाढ़ तो कहीं भूस्खलन
वहीं, अभिभावकों का भी मानना है कि इन दिनों मोबाइल के जरिए ही बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. अगर भविष्य में भी ई-क्लासेस का ही दौर जारी रहता तो ये बच्चों और युवाओं के भविष्य के लिए ठीक नहीं है क्योंकि, मोबाइल के लत से बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा, जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ेगा.
![online education](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8495160_student.png)
पढ़ें- देहरादून: तालाब बनी राजधानी की कई कॉलोनियां, घरों में पानी घुसने से लोग परेशान
अभिभावक संघ के पदाधिकारी कहते हैं कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन के अनुसार किसी को भी 3 घंटे से अधिक मोबाइल के संपर्क में नहीं रहना चाहिए. मगर मौजूदा समय में बच्चे पढ़ाई के लिए 4 घंटे से अधिक समय मोबाइल फोन पर बिता रहे हैं. इसके साथ ही इससे अतिरिक्त टाइम भी वे इंटरनेट आदि के लिए फोन का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने चिंता जताई कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो बच्चे खुद ही गलत दिशा में चले जाएंगे.
डिजिटल एडिक्शन को समझें-
- लगातार फोन, कंप्यूटर या अन्य गैजेट्स का इस्तेमाल करते रहना.
- एक बार प्रयोग के बाद फिर आपके रुकने में समस्या आए और फिर आप मोबाइल उठा लें.
- नुकसान का पता होने के बाद भी मोबाइल या स्क्रीन न छोड़ पाना.
![online education](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8495160_student3.png)
सावधानी
- 30 मिनट से ज्यादा न हो स्क्रीन एक्सपोजर.
- एक बार में 30 मिनट से अधिक स्क्रीन पर न रहें.
- अगर ज्यादा देर तक रहना है, तो हर 30 मिनट बाद 10 बार पलकें झपकाएं.
- 10 बार सिर को लेफ्ट-राइट और अप-डाउन करें, कलाइयों को क्लॉक और एंटी क्लॉक वाइज घुमाएं.
![online education](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8495160_student5.png)
फोन के ज्यादा इस्तेमाल के दुष्परिणाम-
- रीढ़ की हड्डी पर असर
लगातार फोन का उपयोग करने पर कंधे और गर्दन झुके रहते हैं. झुकी गर्दन की वजह से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होने लगती है.
- फेफड़ों की क्षमता पर पड़ता है दुष्प्रभाव
झुकी गर्दन की वजह से गहरी सांस लेने में समस्या होती है. इसका सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है.
- टेक्स्ट नेक
मोबाइल स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रखनेवाले लोगों को गर्दन के दर्द की शिकायत आम हो चली है. इसे ‘टेक्स्ट नेक’ कहा जाता है. यह समस्या लगातार टेक्स्ट मैसेज भेजने वालों और वेब ब्राउजिंग करने वालों में ज्यादा पाई जाती है.
- नींद की कमी
2 घंटे तक चेहरे पर मोबाइल की रोशनी पड़ने से 22% तक मेलाटोनिन कम हो जाता है. इसकी कमी से नींद आने में मुश्किल होती है. एक सर्वे में 12% लोगों ने कहा कि स्मार्टफोन के ज्यादा उपयोग से उनके निजी संबंधों पर भी असर पड़ा है.
पढ़ें- यौन शोषण मामला: MLA महेश नेगी को DIG के 'शब्दों' से शिकायत, DGP को भेजा पत्र
कोरोना महामारी के इस दौर में स्मार्टफोन पर हमारी निर्भरता जरूर बढ़ गई है. बच्चों को शिक्षा, जानकारी, देश-दुनिया की खबरें बच्चों को यहीं से मिलती हैं, मगर इसका ये मतलब नहीं हैं कि बच्चों को इसके ही भरोसे ही छोड़ा जाये. अभिभावकों को इसके दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए जरूरी एहतियात बरतने की जरूरत है, जिससे आने वाले समय में परेशानियों से बचा जा सके.