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क्या सत्तापक्ष और नौकरशाह के लिए अब असरदार नहीं हरीश रावत?

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Published : Oct 28, 2022, 2:37 PM IST

उत्तराखंड में कद्दावर नेताओं में शुमार हरीश रावत को कांग्रेस का मजबूत स्तंभ माना जाता है. अब ऐसा लग रहा है कि उनकी धाक कम हो रही है. ऐसा हम नहीं बल्कि बीते दिनों हरिद्वार में देखने को मिला. जहां उनके थाने के बाहर बैठने, लेटने, खाने-पीने एवं सोने के बाद भी सत्ता और खुद की पार्टी का बड़ा नेता उन्हें पूछने नहीं आया. इतना ही नहीं नौकरशाह भी उन्हें हल्के में लेते दिखे.

Harish Rawat
हरीश रावत

देहरादूनः उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले हरीश रावत मौजूदा समय में ऐसे राजनीतिक माहौल से गुजर रहे हैं, जिसकी शायद ही उन्होंने कल्पना की होगी. फर्श से अर्श तक पहुंचे हरदा ने अपनी राजनीति और अपने अंदाज में ही मुख्यमंत्री पद तक का सफर तय किया था, लेकिन बीते दिनों हरिद्वार में थाने के बाहर जिस तरह से उन्होंने दो रातें बिताई, उसके बाद सवालिया खड़े होने लगे हैं कि क्या सत्तापक्ष और नौकरशाह हरीश रावत को अब हल्के में लेने लगे हैं?

अब हरीश रावत को हल्के में ले रहे सबः दरअसल, हरिद्वार पंचायत चुनाव के दौरान पुलिस ने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर अलग-अलग मामलों में मुकदमे दर्ज किए थे. हरिद्वार ग्रामीण से हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत विधायक हैं. लिहाजा, अनुपमा रावत अपने समर्थकों के साथ थाने पहुंच गईं. जिसके बाद पुलिस और अनुपमा के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई. इतना ही नहीं अनुपमा रावत थाने के बाहर धरने पर बैठ गईं. विधायक के थाने के बाहर बैठने के बाद भी पुलिस विभाग ने मामले को बेहद हल्के में लिया और बाद में हरदा की भी इस धरने में एंट्री हो गई.

हरीश रावत से मिलने नहीं आया कोई सत्तापक्ष और खुद की पार्टी का नेताः हरीश रावत ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ थाने के बाहर ही डेरा डाले रखा. कभी वो दिन में वहां पर खाना खाते हुए दिखाई दिए तो कभी रात को आराम से चादर तान कर सोते हुए दिखाई दिए. हरीश रावत को शायद यह अंदाजा नहीं था कि उनके थाने के बाहर बैठने, लेटने, खाने-पीने और सोने के बाद भी कोई उन्हें पूछने नहीं आएगा.

हरीश रावत पूरे दिन और पूरी रात थाने के बाहर (Harish Rawat Strike outSide of Police Station) बैठे रहे. अगले दिन अपने पूरे नित्यक्रम हरीश रावत ने थाने के बाहर ही किए. हरदा पूरे जोश में कसरत करते भी दिए, लेकिन इसके इतर ऐसा पहली बार उत्तराखंड की राजनीति में देखने को मिला, जब कोई वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री थाने के बाहर रात बिता रहे हो और सूबे का कोई भी बड़ा नेता तो छोड़िए अधिकारी तक मौके पर नहीं पहुंचा हो.
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इस शर्त पर उठे हरीश रावतः हरीश रावत ने सरकार और जिला प्रशासन को यह धमकी भी दी कि वो इस जगह से तब तक नहीं उठेंगे, जब तक सभी के मुकदमे वापस नहीं लिए जाते. मामला तूल पकड़ता रहा और कांग्रेस के छोटे-मोटे कार्यकर्ता हरीश रावत के साथ जुड़ते रहे, लेकिन हैरानी तो तब भी हुई जब सत्तापक्ष तो छोड़िए खुद कांग्रेस का कोई बड़ा नेता हरीश रावत के इस धरना स्थल पर नहीं पहुंचा.

सिवाय नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के, जबकि सोशल मीडिया और अखबारों में हरीश रावत का यह धरना खूब सुर्खियां बटोर रहा था. बाद में हरीश रावत के धरना स्थल पर जिलाधिकारी विनय शंकर पांडे और हरिद्वार एसएसपी योगेंद्र रावत जरूर पहुंचे. वो भी 48 घंटा बीत जाने के बाद पहुंचे. किसी तरह से हरीश रावत को आश्वासन दिया गया कि कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर लगी गंभीर धाराओं को हटाया जाएगा.

हरीश रावत से मिला थोड़ा सा जोशः हरीश रावत के धरने के बाद एक बात तो तय है कि कांग्रेस के सुस्त पड़े हरिद्वार के कार्यकर्ताओं में जरूर यह संदेश गया कि पार्टी का कोई नेता तो जमीन पर उतर कर उनके लिए सोच रहा है. यही कारण है कि हरीश रावत को समर्थन देने के लिए न केवल हरिद्वार के कांग्रेस के चार विधायक मौजूद रहे, बल्कि गांव देहात शहर के कार्यकर्ताओं ने भी हरीश रावत को अपना पूरा समर्थन दिया.

खड़गे की टीम में हरीश रावतः हरीश रावत भले ही अपने राज्य में राजनीति के इस घटनाक्रम से दो-चार हो रहे हों, लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस के नए अध्यक्ष बनने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे (Congress President Mallikarjun Kharge) ने उन्हें स्टीयरिंग कमेटी का सदस्य बनाया है. यानी केंद्रीय कांग्रेस में उन्हें और तवज्जो दी गई है. ऐसे में कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय राजनीति में हरदा की धाक है, लेकिन प्रदेश की राजनीति में अब हरीश रावत की धार कुंद हुई है.
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