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Joshimath Sinking Report: उत्तराखंड में इन शहरों के लिए भी 'दहशत' बनी दरारें, बिगड़ सकते हैं हालात

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Published : Jan 12, 2023, 8:13 AM IST

Updated : Jan 12, 2023, 11:46 AM IST

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उत्तराखंड में इन शहरों के लिए भी 'दहशत' बनी दरारें

जोशीमठ के साथ ही नैनीताल, मसूरी, टिहरी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ के कई शहरों में भी सालों से भूस्खलन (Landslides in cities of Uttarakhand) हो रहा है. भू धंसाव (joshimath landslide) और दरारों ने यहां के लोगों की परेशानियां बढ़ा दी हैं. जोशीमठ आपदा (joshimath disaster) के बाद हर कोई डरा हुआ है. सभी समय रहते सरकार से इन शहरों को बचाने के लिए कोई ठोस प्लान बनाने की मांग कर रहे हैं.

देहरादून: उत्तराखंड के जोशीमठ में हालात दिनों दिन बेहद खतरनाक होते जा रहे हैं. राज्य सरकार का पूरा फोकस जोशीमठ पर है. मौजूदा समय में जोशीमठ के 723 घरों में दरारें आ चुकी हैं. जोशीमठ के वाशिंदों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. विरोध प्रदर्शन के बीच कई लोग अपना घर खाली कर चुके हैं. आज जो हालत आज जोशीमठ के हैं कमोवेश वैसे ही हालात उत्तराखंड के अन्य दूसरे शहरों और पहाड़ी जिलों के भी हैं. उत्तराखंड में इन शहरों के लिए भी दरार दहशत बनी हुई हैं. जिसके कारण सालों से ये शहर डर के साये में जी रहे हैं. आइये आपको बताते हैं कि उत्तराखंड में ऐसे और कौन कौन से शहर हैं जहां जोशीमठ जैसे हालात हैं.

सरोवर नगर नैनीताल में भी दरारों से दहशत: इस लिस्ट में सबसे पहला नाम विश्व प्रसिद्ध नैनीताल का है. नैनीताल अपनी खूबसूरती और यहां की झील के लिए जाना जाता है, लेकिन नैनीताल पर भी इसी तरह का खतरा मंडरा रहा है. नैनीताल में भी न केवल झील पर संकट है, बल्कि पूरे शहर पर भी भूस्खलन का खतरा लंबे समय से मंडरा रहा है. यह खतरा कोई आजकल का नहीं बल्कि सालों पुराना है.

कैमल्स बैक पहाड़ी पर दरारें: सबसे पहले नैनीताल के चाइना पीक की पहाड़ी की बात करें तो 1990 के दौरान नैनीताल के लिए यह पहाड़ी खतरा बनी. यहां से बड़े-बड़े बोल्डर नीचे खिसकने लगे. यह सब भी अचानक नहीं हुआ. जानकार बताते हैं कि पहाड़ी में दरारें लंबे समय से देखी जा रही थीं. फिर कुछ समय बाद यहां से मलबा नीचे आने लगा. बाद में वन विभाग और लोनिवि के अधिकारियों ने इस क्षेत्र में सुरक्षा दीवार बनाकर लोगों के घरों और होटल की हिफाजत की. इतना ही नहीं साल 2021 में कैमल्स बैक की पहाड़ियों पर भी दरार आने लगी. इसके साथ ही नैनीताल से लगभग 20 किलोमीटर दूर चोपड़ा गांव के ऊपर की पहाड़ियां भी लगातार दरार की वजह से नीचे की तरफ खिसक रही हैं. जिससे लगभग 60 परिवारों को खतरा बना हुआ है. यहां के लोग भी लगातार जिला प्रशासन को इस बारे में अवगत कराते रहते हैं.
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बलियानाला बना है खतरा: हैरानी और डर का माहौल तो तब अधिक पैदा हुआ जब नैनीताल झील यानी नैनी झील की प्रसिद्ध माल रोड पर भी साल 2018 में दरार आ गई. माल रोड का एक बड़ा हिस्सा झील में डूब गया. मौजूदा समय में नैनीताल के ऊपर सबसे बड़ा खतरा बलियानाले से बना हुआ है. यह खतरा आज से नहीं लगभग 150 साल से भी अधिक पुराना है. इस जगह पर लगातार वैज्ञानिक अपनी नजर बनाकर रखते हैं. हर साल यहां पर कुछ ना कुछ घटनाएं जरूर होती हैं. बताया जाता है कि इस इलाके में भी कई घरों में दरारें आनी शुरू हो गई हैं.

समय समय पर विस्थापित होते रहे हैं लोग: ऐसा नहीं है कि यह इलाका अभी खतरनाक हुआ है. इससे पहले भी इसी जगह पर साल 1889 पहाड़ी खिसकने की वजह से वीर भट्टी रोड पूरी ध्वस्त हो गई थी. इसी साल 17 अगस्त को केलाखान इलाके में पहाड़ी दरकने की वजह से 27 लोगों की मौत भी हो गई थी. इसके साथ ही 1924 में भी यह पहाड़ी लोगों के लिए बेहद खतरनाक साबित हुई थी. जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई थी. तब कई घर, दुकानें और सरकारी भवन भी पूरी तरह से खत्म हो गए थे. इसके बाद 2018 में इस पूरे इलाके के लिए 620 करोड़ रुपए की योजना बनी, लेकिन आज तक यहां कुछ हुआ नहीं है. साल 2014 में 28 परिवारों को यहां से विस्थापित किया गया. साल 2016 में भी 25 परिवारों को विस्थापित किया. साल 2019 में 45 परिवारों को कहीं और शिफ्ट किया गया. साल 2022 में 55 परिवारों को मकानों में ताले लगवाए गए, लेकिन आज भी यहां सैकड़ों परिवार हैं जो इस खतरे की जद में जी रहे हैं.
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टिहरी के गांवों की घरों में आई दरारें: नैनीताल के साथ ही गढ़वाल के सबसे प्रसिद्ध शहर टिहरी गढ़वाल पर भी दरार के दानव ने अपनी पकड़ बना ली है. इस शहर के लिए टिहरी बांध ही मुसीबत बन रहा है. गढ़वाल के कई गांव इस मुसीबत से दो-चार हो रहे हैं. मौजूदा समय में टिहरी झील के नजदीक पीपोला खास गांव के भी यही हालात हैं. यहां के घरों में बड़ी-बड़ी दरारें लोगों को डराने लगी हैं. जोशीमठ की घटना के बाद अब यहां के लोग दूसरों के घरों में शरण ले रहे हैं. अपने पूरे जीवन भर की कमाई लगाकर गांव के लोगों ने अपने आशियाने बनाए थे, लेकिन लगातार नीचे की तरफ खिसक रही धरती इनके घरों को भी लीलने लगी है. पूरे गांव में डर का माहौल बना हुआ है.

ऐसा नहीं है कि इस गांव की खबर प्रशासन तक नहीं पहुंची. खुद भू वैज्ञानिकों ने इस पूरे क्षेत्र का भ्रमण किया. सर्वे के बाद यह पाया कि पूरे गांव में आ रही दरारें बांध की वजह से हैं. लोगों का कहना है कि सरकार किसी बड़ी अनहोनी के होने का इंतजार कर रही है. जिलाधिकारी सौरभ गहरवार कहते हैं कि दिसंबर महीने में ही हम लोगों ने झील से लगे लगभग 23 गांव का सर्वे करवाया है. जल्द ही इस मामले में जिला प्रशासन की तरफ से कार्रवाई की जाएगी.
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उत्तरकाशी के मस्ताड़ी गांव में 31 सालों से भू धंसाव: उत्तरकाशी के भी बेहद बुरे हाल हैं. जोशीमठ के बाद उत्तरकाशी के गांव से भी भू धंसाव की खबरें सामने आई हैं. उत्तरकाशी पहले भी वरुणावत पर्वत की मार झेल चुका है. एक बार फिर उत्तरकाशी के मस्ताड़ी गांव में भू धंसाव की खबरों ने सभी को चिंता में डाल दिया है. मस्ताड़ी गांव पिछले 31 सालों से भू धंसाव का दंश झेल रहा है. इस गांव में ना केवल घर बल्कि सड़कें, खेत भी भू धंसाव की चपेट में आ गए हैं. मस्ताड़ी गांव जिला मुख्यालय यानी उत्तरकाशी से महज 10 किलोमीटर दूर है. गांव के लोगों का कहना है कि यहां की सुध कोई नहीं ले रहा है. ग्रामीण कई बार विस्थापन की मांग कर चुके हैं.
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विश्व प्रसिद्ध मसूरी में बड़ी इमारतें बन रही धंसाव का कारण: पर्यटकों के लिए उत्तराखंड में सबसे अधिक पसंदीदा जगह मसूरी भी भू धंसाव से अछूती नहीं है. मसूरी में भी लंढौर क्षेत्र में लगातार जमीन धंस रही है. ऐसा नहीं है कि ये जानकारी भी हाल ही में सामने आई है. मसूरी में हो रहे इस धंसाव को लेकर पहले से ही जिला प्रशासन और सरकार के मंत्रियों को अवगत करवाया गया है. भू वैज्ञानिक बीडी जोशी कहते हैं कि मसूरी और पहाड़ों में लगातार बन रही बहुमंजिला इमारतें ही इन शहरों के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं. हमारे पहाड़ अभी इतने पुराने नहीं हैं कि इतना वजन झेल सके.

जोशी कहते हैं आप इस बात को ऐसे समझिये की किसी बच्चे के ऊपर सहन करने से अधिक बोझ रख दिया जाये तो क्या होगा? बच्चे की सांसें रुकने लगेंगी. वो उस बोझ को सहन नहीं कर पायेगा. यहां भी ऐसा ही हो रहा है. ये पहाड़ अभी बच्चे हैं. हिमालय के पहाड़ बहुत नए पहाड़ हैं. लेकिन आप लगातार उसमें कुछ ना कुछ करते ही जा रहे हैं. अब ये सब कब तक सहन कर पाते, जिसके कारण अब जो हो रहा है वो सबके सामने है.
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हरिद्वार भू धंसाव का देख चुका है ट्रेलर: आज से लगभग 15 साल पहले हरिद्वार के मनसादेवी हिल बाईपास पर बनी सड़क भी भू धंसाव का दंश झेल चुकी है. हरिद्वार शहर से मध्य हरिद्वार को जोड़ने वाली सड़क बनने के कुछ समय बाद ही फटने लगी थी. बड़ी बड़ी दरारों के बीच ये सड़क बनी तो लेकिन इस पर आवाजाही नहीं हो पाई. ये सड़क हरिद्वार शहर के ठीक ऊपर से गुजरती है. हरिद्वार के इस पर्वत से गिरने वाला एक एक पत्थर शहर में जाता है. डर और बेहद डरावनी तश्वीर तब सामने आती है, जब हर साल मानसून के दौरान तेज बारिश के बाद हरिद्वार के हर की पैड़ी, मोतीबाजार, बड़ी सब्जी मंडी सहित कई अन्य इलाकों में पहाड़ से आने वाली मिट्टी के टीले बन जाते हैं. मनसादेवी मंदिर की पहाड़ियों को लेकर रुड़की आईआईटी 20 साल पहले ही अपनी रिपोर्ट में खतरनाक और ट्रीटमेंट की जरूरत बता चुका है. नीचे से गुजरने वाली ट्रेन और उससे होने वाला कंपन इस शहर के बड़े हिस्से के लिए खतरनाक साबित हो रहा है.
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कागजी कार्रवाई और सर्वे में उलझी सरकार: बहरहाल, जोशीमठ की घटना सामने आने के बाद आपदा सचिव कह रहे हैं की अभी ये कहना जल्दबाजी होगा की शहर दोबारा बसेगा या नहीं. वे पूरे इलाके का सर्वे करवाने की बात कह रहे हैं. साथ ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कह रहे हैं कि सरकार अब दोबारा से इस बात का अध्ययन करवाएगी कि उत्तराखंड के कौन कौन से शहर कितना दबाव झेल सकते हैं. साथ ही इन शहरों की मौजूदा स्थिति क्या है, इस पर भी रिपोर्ट तैयार की जाएगी. जिसके बाद ही आगे के काम किये जाएंगे. अब सरकार के ये सर्वे और कागजी काम कब तक पूरे होंगे ये तो समय ही बताएगा, मगर एक बात साफ है अगर समय रहते आपदा की जद में आये इन शहरों को बचाने के लिए कुछ एहतियाती कदम नहीं उठाये गये, तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.

Last Updated :Jan 12, 2023, 11:46 AM IST
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