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अफसरों पर नकेल कसने में नाकाम 'सरकार', माननीयों का छलका दर्द

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Published : Jul 23, 2020, 7:58 PM IST

Updated : Jul 23, 2020, 9:06 PM IST

उत्तराखंड स्थापना के बाद से ही अधूरे बहुमत की सरकारों पर अफसरों का दबदबा हमेशा दिखाई दिया है. पहली बार प्रचंड बहुमत वाली सरकार से नौकरशाही पर लगाम को कसने की उम्मीद की गई लेकिन हालात सबके सामने हैं. अधिकारियों के रवैया पर जन प्रतिनिधियों का दर्द भी गहरा है.

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अफसरों पर नकेल कसने में नाकाम 'सरकार',

देहरादून: उत्तराखंड में अफसरों पर नकेल कसने के हर प्रयास नकाम ही साबित हुए हैं. मुख्यसचिव से लेकर मुख्यमंत्री तक के निर्देशों को अफसर गंभीरता से नहीं लेते हैं. वैसे विधायकों और मंत्रियों का यह दर्द कोई नया नहीं है. सरकार कोई भी रही हो अधिकारियों की नाफरमानी जन प्रतिनिधियों का हमेशा ही सरदर्दी बनी रही है. विधायिका और कार्यपालिका में वर्चस्व की लड़ाई पर पेश है ईटीवी भारत की ये स्पेशल रिपोर्ट.

अफसरों पर नकेल कसने में नाकाम 'सरकार'
राज्य स्थापना के बाद से ही अधूरे बहुमत की सरकारों पर अफसरों का दबदबा हमेशा दिखाई दिया है. पहली बार प्रचंड बहुमत वाली सरकार से नौकरशाही पर लगाम को कसने की उम्मीद की गई लेकिन हालात सबके सामने हैं. अधिकारियों के रवैया पर जन प्रतिनिधियों का दर्द गहरा है. बात किसी एक मंन्त्री या विधायक की नहीं है बल्कि बात अधिकारियों की नाफरमानी के पीछे की वजह की है.

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जानकार मानते हैं कि अधूरे बहुमत वाली कमजोर सरकारों में अक्सर अफसरों की पौ बारह रहती है. वो सरकारों पर हावी रहते हैं. मगर त्रिवेंद्र सरकार में स्थितियां इससे उलट हैं. सरकार प्रचंड बहुमत के साथ स्थिर है फिर भी नौकरशाहों की मनमर्जियों पर लगाम नहीं लग पाई है. जिसका कारण सरकार के मुखिया का कमजोर होना माना जा सकता है.

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हालांकि, माना यह भी जाता है कि कई बार राज्य के मुखिया के इशारे और करीबी अधिकारियों द्वारा भी मंत्रियों या अधिकारियों की नाफरमानी की जाती है. इसकी एक वजह मंत्री या विधायक का अनुभवहीन होना भी हो सकता है. उधर, प्रदेश में बिगड़ी व्यवस्थाओं के कारण भी अधिकारी लापरवाही कर सकते हैं.

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त्रिवेंद्र सरकार को लेकर राजनीतिक जानकर क्या कहते हैं

त्रिवेंद्र सरकार में अधिकतर मंत्री अधिकारियों के रवैये से नाराज हैं. विधायकों की स्थिति भी क्षेत्रों में कुछ ऐसी ही रहती है. राज्य में यदि कुछ खास मामलों पर गौर किया जाए तो 2 दिन पहले ही मदन कौशिक का नाराजगी का वीडियो खूब वायरल हुआ. इससे एक दिन पहले किच्छा से भाजपा विधायक राजेश शुक्ला की याददाश्त कमजोर होने की बात उन्हीं के मंत्री के सामने जिलाधिकारी ने कही. जिसके बाद विधायक ने डीएम पर विशेषाधिकार हनन का आरोप लगाकर विधानसभा अध्यक्ष तक को चिट्ठी लिख डाली.

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इसी महीने शुरुआत में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने अफसरों पर सरकार को बदनाम करने का भी आरोप लगाया था. इससे पहले मंत्री रेखा आर्य के डिप्टी डायरेक्टर के खिलाफ कार्रवाई के आदेश भी नहीं माने गए. जिसकी शिकायत उन्होंने मुख्यमंत्री से भी की थी. समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य की अधिकारियों पर नाराजगी भी सभी के जहन में अब तक है. यशपाल आर्य ने छात्रवृत्ति घोटाले के एक निलंबित अधिकारी को बहाल करने के मामले पर जानकारी न होने को लेकर अधिकारियों पर खुन्नस निकाली थी.

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इससे पहले दबंग वन मंत्री हरक सिंह रावत ने प्रमुख वन संरक्षक जयराज के रवैया पर नाराजगी जाहिर कर खूब बयानबाजी की थी. उधर, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज तो कई बार अधिकारियों के रवैये पर कैमरे के पीछे अपनी बेबसी को जाहिर करते रहे हैं. सरकार बनने के बाद से ही लगातार इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं. जिसे देखते हुए अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने भी इस पर चिंता जाहिर की है.

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त्रिवेंद्र सरकार के कैबिनेट में अधिकतर मंत्री अधिकारियों के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. मगर सरकार में ही कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का राय इन सबसे अलग है. उन्होंने अपने मंत्रियों के रवैया को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. कृषि मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि घुड़सवार को घोड़े को लगाम से हांकना आना चाहिए ताकि वो उसे दिशा दे सके. वे कहते हैं कि इस तरह के मामलों में मुख्य सचिव के पत्र लिखने का कोई मतलब नहीं होता. उनका कहना है कि अगर कोई अधिकारी जान बूझकर गलती करता है तो उस पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए.

Last Updated :Jul 23, 2020, 9:06 PM IST
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