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पहाड़ी क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी कमी, भगवान भरोसे स्वास्थ्य सुविधाएं, अब चल रही ये योजना

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Published : Apr 12, 2023, 10:45 AM IST

उत्तराखंड सरकार और स्वास्थ्य विभाग द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के दावे तो किए जाते हैं, लेकिन डॉक्टरों की कमी जस की तस बनी रहती है. इससे लोगों को आए दिन परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है. वहीं अब स्वास्थ्य महकमा डॉक्टरों को पहाड़ पर तैनाती के लिए योजना बना रहा है.

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देहरादून: उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर हमेशा से सवाल खड़े होते रहे हैं. आलम यह है कि कुमाऊं और गढ़वाल रीजन के पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं पर कोई दुर्घटना या व्यक्ति बीमार होता है तो उसे इलाज के लिए कई किमी का सफर पैदल तय कर हॉस्पिटल तक पहुंचाना पड़ता है. जिसकी तस्वीरें समय-समय पर देखने को मिलती रहती हैं. लोग गांव तक मार्ग ना होने को लेकर सरकार को कोसते दिखाई देते हैं.

गौर हो कि प्रदेश के पर्वतीय जिलों के दुर्गम क्षेत्रों में हॉस्पिटलों में डॉक्टर ना होने से लोगों को आए दिन परेशान होना पड़ता है. साथ ही कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो उसे डंडी-कंडी के सहारे सड़क मार्ग तक पहुंचाया जाता है. कई बार तो गंभीर मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. विकराल स्थिति तब बन जाती है, जब प्रसव पीड़िता महिला को हॉस्पिटल पहुंचाना पड़ता है. कई बार प्रसव पीड़िता महिलाएं रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे देती हैं. दरअसल, पहाड़ों पर डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों का इलाज पर्वतीय क्षेत्रों पर नहीं हो पा रहा है. जिसके चलते जहां एक ओर मरीजों के तीमारदार बेबस नजर आ रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर स्वास्थ्य महकमा डॉक्टरों को पहाड़ चढ़ाने के लिए कुछ व्यवस्था लागू करने की बात कह रहा है.
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प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते जहां एक ओर विकास की गति सुस्त होती है, वहीं सुविधाओं के अभाव में डॉक्टर पहाड़ नहीं चढ़ना चाहते हैं. जिसका खामियाजा स्थानीय लोगों को उठाना पड़ता है. क्योंकि मरीजों को बेहतर इलाज के लिए निजी अस्पतालों या फिर जिला मुख्यालय का रुख करना पड़ता है. इतना ही नहीं, पहाड़ से मैदान में आकर सरकारी अस्पतालों में इलाज कराना और अधिक महंगा पड़ता है, क्योंकि मरीजों का इलाज तो फ्री में होता है लेकिन मरीज को यहां लाना और यहां तीमारदारों का रहना खाना काफी महंगा पड़ जाता है. वहीं, पौड़ी जिले से देहरादून जिला अस्पताल आए तीमारदार ने अपनी आपबीती बताते हुए कहा कि उसका भाई एचआईवी पीड़ित है.
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इसके इलाज के लिए देहरादून के चक्कर लगाने पड़ते हैं. वहां से वाहन भी उपलब्ध नहीं हो पाते हैं. जिसके चलते करीब 10 हजार रुपए में गाड़ी बुक करने इलाज के लिए आना पड़ता है. इसके साथ ही यहां आकर ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट के लिए 2-3 दिन रुकना पड़ता है. हालांकि, इलाज फ्री में होता है. लेकिन अलग से खर्चा काफी अधिक हो जाता है. प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में डॉक्टरों के न जाने के सवाल पर डीजी हेल्थ विनीता शाह ने कहा कि डॉक्टर्स को पहाड़ चढ़ाने के लिए प्लान तैयार किया जा रहा है, जिसके तहत डॉक्टरों के खाने और रहने की व्यवस्था के साथ ही अतिरिक्त वेतन भुगतान को लेकर भी प्लान तैयार किया गया. हालांकि, इस पर शासन स्तर पर काम चल रहा है. जिसके लागू होने के बाद डॉक्टरों को फायदा मिलेगा.

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