ETV Bharat / state

जहां गुम हुई न्यूक्लियर डिवाइस वहां पहुंचा ईटीवी भारत, जानिए पूरा सच

author img

By

Published : Feb 11, 2021, 5:34 PM IST

चमोली जिले के रैणी गांव और तपोवन में आई आपदा के बाद प्लूटोनियम डिवाइस को लेकर बड़ी चर्चा है. कई लोग कह रहे हैं कि 1965 में नंदा देवी पर्वत श्रृंखला पर गुम हुई डिवाइस की गर्मी से ग्लेशियर फटा और सैलाब आ गया. ईटीवी भारत की टीम रैणी गांव पहुंची और वहां के लोगों से इस बारे में बात की.

glacier capsules
मिशन नंदा देवी 1965

देहरादून/चमोली: चमोली के रैणी गांव, तपोवन और विष्णुप्रयाग इलाके में ग्लेशियर फटने के बाद तबाही मच गई. एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, सेना और स्थानीय पुलिस जीन-जान से रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हैं. चौबीसों घंटे राहत और बचाव कार्य जारी है. इस आपदा के लिए कई तरह के शक और सवाल उठाए जा रहे हैं. पर्यावरणविद ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को इसके लिए दोषी ठहरा रहे हैं. कोई कुदरत का कहर बता रहा है. इसी बीच कुछ लोगों ने नंदा देवी पर्वत श्रृंखला पर 56 साल पहले गुम हुई प्लूटोनियम डिवाइस को इस आपदा के लिए जिम्मेदार बताना शुरू कर दिया. क्या था नंदा देवी मिशन आइए हम आपको बताते हैं.

आपदा और प्लूटोनियम डिवाइस का रिश्ता!

शीतयुद्ध के दौर में हुआ मिशन नंदा देवी

समुद्र तल से 7,800 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर नंदा देवी पर्वत स्थित है. यह भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है. 1965 से इन चोटियों में एक राज दफन है, जो इंसान के लिए विनाशकारी आशंका को बार-बार जिंदा करता है. वो शीतयुद्ध का दौर था. उस वक्त दुनिया दो ध्रुवों में बंटी हुई थी. भारत और अमेरिका ने 1965 में मिशन नंदा देवी के रूप में एक खुफिया अभियान चलाया था. चीन की परमाणु गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ये सीक्रेट मिशन शुरू हुआ था. चीन पर निगरानी के लिए अमेरिका ने भारत से मदद मांगी. कंचनजंगा पर खुफिया डिवाइस लगाने का प्लान बनाया गया.

200 लोगों की टीम सीक्रेट मिशन में शामिल

1964 में चीन ने शिनजियान प्रांत में न्यूक्लियर टेस्ट किया था. इसके बाद 1965 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने हिमालय की चोटियों से चीन की परमाणु गतिविधियों पर निगरानी का प्लान बनाया. इसके लिए भारतीय खुफिया विभाग से मदद लेकर नंदा देवी पर्वत पर खुफिया यंत्र लगाने की कोशिश की गई. पहाड़ पर 56 किलोग्राम के यंत्र स्थापित किए जाने थे. इन डिवाइस में 8 से 10 फीट ऊंचा एंटीना, दो ट्रांस रिसीवर सेट और परमाणु सहायक शक्ति जनरेटर (SNAP सिस्टम) शामिल थे. जनरेटर के न्यूक्लियर फ्यूल में प्लूटोनियम के साथ कैप्सूल भी थे, जिनको एक स्पेशल कंटेनर में रखा गया था. न्यूक्लियर फ्यूल जनरेटर हिरोशिमा पर गिराए गए बम के आधे वजन का था. टीम के शेरपाओं ने इसे गुरुरिंगपोचे नाम दिया था. 200 लोगों की टीम इस सीक्रेट मिशन से जुड़ी हुई थी.

ये भी पढ़िए: चमोली आपदा: मुख्य मार्गों से कटे गांवों की ट्रॉली के सहारे चलेगी 'जिंदगी'

अक्टूबर 1965 में अधूरा छोड़ना पड़ा मिशन

अक्टूबर 1965 में टीम नंदा देवी पर्वत के करीब 24 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित कैंप-4 पहुंच गई. इसी दौरान अचानक मौसम काफी खराब हो गया. टीम लीडर मनमोहन सिंह कोहली के लिए यह करो या मरो का सवाल था. उन्हें अपनी टीम या खुफिया डिवाइस में से किसी एक को चुनना था. ऐसे में उन्होंने अपनी टीम के मेंबर्स को तवज्जो दी. आखिरकार टीम को मिशन अधूरा छोड़कर वापस लौटना पड़ा. परमाणु सहायक शक्ति जनरेटर मशीन और प्लूटोनियम कैप्सूल को वहीं छोड़ना पड़ा.

1966 में फिर मिली नाकामी

एक साल बाद 1966 में एक बार फिर मिशन को पूरा करने का प्रयास हुआ. मई 1966 में पुरानी टीम के कुछ सदस्य और एक अमेरिकी न्यूक्लियर एक्सपर्ट फिर नंदा देवी पर्वत पर डिवाइस की खोज के लिए निकले. यह तय किया गया कि खुफिया डिवाइस को कम ऊंचाई पर भी स्थापित किया जा सकता है. 6,861 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माउंट नंदा कोट पर खुफिया यंत्र स्थापित करने का फैसला लिया गया. डिवाइस की तलाश में टीम नंदा देवी पर्वत के कैंप-4 पहुंची. लेकिन जब वहां तलाश शुरू हुई तो ना तो डिवाइस मिली और ना ही प्लूटोनियम की छड़ों का कुछ अता-पता चला. आज तक इस खुफिया रेडियोऐक्टिव डिवाइस का कुछ भी पता नहीं चल पाया है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्लूटोनियम के ये कैप्सूल 100 साल तक ऐक्टिव रह सकते हैं. ये रेडियोऐक्टिव डिवाइस अब भी उसी इलाके में कहीं दबी हुई है.

ये भी पढ़िए: EXCLUSIVE : चमोली हादसे में तिनके की तरह बहे लोग

ईटीवी भारत ने सर्च अभियान में शामिल लोगों से की बात

जब टीम 1966 में वापस नंदा देवी गई तो रैणी गांव के कई लोगों को अपनी मदद के लिए भी ले गई. स्थानीय लोगों ने बताया कि वो टीम के साथ गए थे. हालांकि टीम ने उन्हें अपना असली मकसद कभी नहीं बताया. बस वो किसी खोई हुई चीज को तलाशने को कहते थे. एक स्थानीय निवासी ने ईटीवी भारत को बताया कि वो एक महीने तक टीम के साथ नंदा देवी की पहाड़ियों पर कुछ खोजते रहे. जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो इन लोगों को भी वापस भेज दिया गया.

हिमनद वैज्ञानिक की अलग राय

हिमनद वैज्ञानिक डीपी डोभाल कहते हैं कि अगर यह कंफर्म है कि वह रेडियोएक्टिव यंत्र ग्लेशियर में गिरा है, तो वह आसानी से मिलना बहुत मुश्किल है. क्योंकि ग्लेशियर मूविंग आइस बॉडी है जो मूव करता रहता है. यही नहीं, ग्लेशियर हर साल करीब 15 से 20 मीटर तक मूव करता है. इसके साथ ही हर साल बर्फबारी होती है और वह धीरे-धीरे कॉन्टैक्ट होकर ग्लेशियर बन जाता है. ऐसे में हो सकता है कि यह यंत्र ग्लेशियर में ही दबा हो या फिर वहां से कहीं और मूव हो गया हो. लिहाजा, सबसे बड़ा सवाल यही है कि पहले यह कन्फर्म करने की जरूरत है कि रेडियोएक्टिव यंत्र किस ग्लेशियर में गिरा है. क्योंकि नंदा देवी में 14 ग्लेशियर मौजूद हैं. ये करीब 20- 22 किलोमीटर के ग्लेशियर हैं.

ये भी पढ़िए: आप की सरकार से मांग, उच्च हिमालय की जल विद्युत परियोजनाओं की हो समीक्षा

ग्लेशियर में प्रिजर्व यंत्र नहीं होगा नुकसानदायक

डॉक्टर डीपी डोभाल ने बताया कि किसी को अभी तक इस यंत्र के लोकेशन की जानकारी नहीं है. यही वजह है कि इसे अभी तक खोजा नहीं जा सका है. नंदा देवी ग्लेशियर में जाना बहुत कठिन है. ऐसे में इसे खोजना बहुत ही मुश्किल है. अगर वह इसके अंदर है तो वह प्रिजर्व है. यह यंत्र जब तक प्रिजर्व है तब तक नुकसानदायक नहीं है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.