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जानिए क्यों समय के साथ नहीं चल पाया डाक विभाग, आखिर कहां हो गई चूक, पढ़िए Etv भारत की खास रिपोर्ट

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Published : Oct 9, 2019, 2:56 PM IST

वर्तमान समय में डाक विभाग का एकाधिकार लगभग खत्म हो गया है. अब दुनिया डिजिटल हो गयी है. डाक घर का वर्चस्व बनाये रखने को लेकर हर साल 9 अक्तूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है, जिसका मकसद डाक के प्रति लोगों को जागरुक करना है.

विश्व डाक दिवस

देहरादूनः एक समय था जब लोगों को आपस में जोड़ने, सूचना आदान-प्रदान करने और दिलों से दिलों को जोड़ने का काम चिट्ठियां करती थीं, जिसमें वो डाकिया जो चिट्ठियों को लेकर घर-घर जाता था, उसकी अहम भूमिका हुआ करती थी, लेकिन बीते कुछ दशकों से जिस तरह से आधुनिकीकरण का विकास होता जा रहा है, वैसे-वैसे डाकियों की भूमिका समाप्त होती जा रही है. आज इस डिजिटलाइजेशन के दौर में वो चिट्ठियां कोसों दूर छूट गईं हैं. विश्व डाक दिवस पर देखिये ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

विश्व डाक दिवसः सूचना के दौर में डाक विभाग की चमक फीकी पड़ी.

देश के भीतर या बाहर जरूरी सूचनाओं का आदान-प्रदान और लोगों को आपस मे जोड़ने का एक बेहतरीन जरिया चिट्ठियां होती थीं. वक्त के साथ-साथ भले ही डाक विभाग का स्वरूप काफी बदल गया हो, लेकिन डाक घर का वर्चस्व बनाये रखने को लेकर हर साल 9 अक्तूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है, जिसका मकसद डाक के प्रति लोगों को जागरुक करना और अपनी विभिन्न सेवाओं को बताना है.

डाक के महत्व की वजह से 9 अक्टूबर 1874 को स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में 22 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का गठन हुआ था. इसके बाद साल 1969 में टोकियो, जापान में आयोजित सम्मेलन में विश्व डाक दिवस के रूप में 9 अक्टूबर के दिन का चयन किया गया था. यही वजह है कि हर साल 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है.

हालांकि भारत एक जुलाई 1876 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था. यही नहीं भारत एशिया का पहला ऐसा देश है जो सबसे पहले यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था.

जनसंख्या और अंतरराष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के आधार पर भारत शुरू से ही प्रथम श्रेणी का सदस्य रहा है. इसके साथ ही भारतीय डाक, देश के उन प्रमुख और पुराने विभागों में शामिल है जो 18वीं शताब्दी से चली आ रहा है. डाक विभाग पिछले डेढ़ दशक से देश के अंदर ही नहीं, बल्कि एक देश से दूसरे देश तक सूचना पहुंचाने का सर्वाधिक विश्वसनीय, सुगम और सबसे सस्ता साधन रहा है.

यही नहीं पत्रों, पार्सलों, निमंत्रण पत्रों और मनीऑर्डर आदि को लोगों के घर-घर पहुंचाना हो, या फिर बाहर से आये हुए पत्र और पार्सल को उस स्थान पर सुरक्षित भेजने की व्यवस्था करनी हो, इस विभाग ने बड़ी जिम्मेदारी के साथ काम किया है, लेकिन कुछ दशकों से डाक के क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों के पैर पसारने और सूचना तकनीक के कई नए माध्यम आने के कारण डाक विभाग की भूमिका लगातार कम होती गयी है.

यह भी पढ़ेंः सीएम त्रिवेंद्र ने डोइवाला को दी विकास कार्यों की सौगात, कहा- आदर्श बनेगी विधानसभा

वर्तमान समय में डाक विभाग का एकाधिकार लगभग खत्म हो गया है. अब दुनिया डिजिटल हो गयी है. सारे काम कंप्यूटर से होने लगे हैं और सूचनाओं का आदान-प्रदान इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से होने लगा है. लिहाजा संदेश भेजने के लिए अब लोगों को लंबी- लंबी चिट्ठियां लिखने की जरूरत नहीं है और न ही सही समय और सही जगह पर चिट्ठी पहुंचने का इंतजार करने की जरूरत है.

भले ही डाक समय के साथ पीछे छूटता जा रहा हो, लेकिन आज भी डाक का बहुत महत्व है, क्योंकि आज भी इस आधुनिक दौर में डाक का प्रयोग पत्रों, पार्सलों के लिए उपयोग किया जा रहा है. बस जरूरत है कि डाक को भी अन्य सरकारी विभागों की तरह ही और हाईटेक करने की. जिससे डाक विभाग के अस्तित्व को भविष्य में बरकरार रखा जा सके.

Intro:नोट - विसुअल्स ftp से भेजी गई है......
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एक समय हुआ करता था जब लोगों को आपस में जोड़ने, सूचना आदान-प्रदान करने और दिलो से दिलो को जोड़ने का काम चिट्टियां करती थी, जिसमें वो डाकिया जो चिठ्ठियों को लेकर घर-घर जाता था, उसकी अहम भूमिका हुआ करती थी। लेकिन बीते कुछ दशकों से जिस तरह से आधुनिकरण का विकास होता जा रहा है, वैसे-वैसे डाकियो की भूमिका और लोगो को डाकियो की जरूरत घटती जा रही है। और आज इस डिजिटलाइजेशन के दौर में वो चिट्टियां कोसों दूर छूट गई हैं। विश्व डाक दिवस पर देखिये ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट......


Body:देश के भीतर या देश के बाहर जरूरी सूचनाओं का आदान-प्रदान और लोगो को आपस मे जोड़ने का एक बेहतरीन जरिया चिट्टियां होती थी। वक्त के साथ-साथ भले ही डाक विभाग का स्वरूप काफी बदल गया हो लेकिन डाक घर का वर्चस्व बनाये रखने को लेकर हर साल 9 अक्तूबर को ‘विश्व डाक दिवस’ मनाया जाता है। जिसका मकसद डाक के प्रति लोगो जागरूक करना और अपने विभिन्न सेवाओ को बताना है।


डाक के महत्व की वजह से 9 अक्टूबर 1874 को स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में 22 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का गठन हुआ था। इसके बाद साल 1969 में टोकियो, जापान में आयोजित सम्मेलन में विश्व डाक दिवस के रूप में 9 अक्टूबर के दिन का चयन किया गया था। यही वजह है कि हर साल 9 अक्टूबर को 'विश्व डाक दिवस' मनाया जाता है। 


हालांकि भारत देश एक जुलाई 1876 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था। यही नही भारत, एशियाई का पहला ऐसा देश है जो सबसे पहले यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था। जनसंख्या और अंतर्राष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के आधार पर भारत शुरू से ही प्रथम श्रेणी का सदस्य रहा है। इसके साथ ही भारतीय डाक, देश के उन प्रमुख और पुराने विभागों में शामिल है जो 18वी शताब्दी से चली आ रही है। 


डाक विभाग पिछले डेढ़ दशक से देश के अंदर ही नहीं, बल्कि एक देश से दूसरे देश तक सूचना पहुंचाने का सर्वाधिक विश्वसनीय, सुगम और सबसे सस्ता साधन रहा है। यही नही पत्रों, पार्सलों, निमंत्रण पत्रों और मनीऑर्डर आदि को लोगों के घर-घर पहुंचाना हो, या फिर बाहर से आये हुए पत्र और पार्सल को उस स्थान पर सुरक्षित भेजने की व्यवस्था करनी हो, इस विभाग ने बड़ी जिम्मेदारी के साथ काम किया है।


लेकिन कुछ दशकों से डाक के क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों के पैर पसारने और सूचना तकनीक के कई नए माध्यम आने के कारण डाक विभाग की भूमिका लगातार कम होती गयी है। और वर्तमान समय में डाक विभाग का एकाधिकार लगभग खत्म हो गया है। अब दुनिया डिजिटल हो गयी है। सारे काम कंप्यूटर से होने लगे हैं और सूचनाओं का आदान-प्रदान इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से होने लगा है। लिहाजा संदेश भेजने के लिए अब लोगों को लंबी- लंबी चिट्ठीयां लिखने की जरूरत नहीं है और ना ही सही समय और सही जगह पर चिट्ठी पहुंचने का इंतजार करने की जरूरत है।




Conclusion:भले ही डाक समय के साथ पीछे छूटता जा रहा हो लेकिन आज भी डाक का बहुत महत्व है। क्योंकि आज भी इस आधुनिक दौर में डाक का प्रयोग पत्रों, पार्सलों के लिए उपयोग किया जा रहा है। बस जरूरत है कि डाक को भी अन्य सरकारी विभागों की तरह ही और हाइटेक किया जाए। जिससे डाक विभाग के अस्तित्व को भविष्य में बरकरार रखा जा सके।


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