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मांस मदिरा परोस रहे होटल रिजॉर्ट पर चिदानंद मुनि का निशाना, बोले- गंगा स्नान की जगह शराब स्नान ठीक नहीं

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Published : Oct 8, 2022, 7:52 AM IST

परमार्थ निकेतन आश्रम (Rishikesh Parmarth Niketan Ashram) के परमाध्यक्ष चिदानंद मुनि ने कहा कि गंगा स्नान की बजाय शराब स्नान ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि मोक्षदायिनी के तटों के आसपास शराब की जगह शांति ठेके खोलने की जरूरत है. लोग शांति के लिए यहां आएंगे और यह प्रदेश शांति का ही केंद्र है.

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ऋषिकेश: तीर्थक्षेत्र ऋषिकेश से सटे मुनि की रेती और स्वर्गाश्रम (Rishikesh Munikireti and Swargashram) के आसपास शराब की दुकानों को लेकर परमार्थ निकेतन आश्रम (Rishikesh Parmarth Niketan Ashram) के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद मुनि ने बड़ा बयान दिया है. उनके मुताबिक गंगा स्नान की बजाय शराब स्नान ठीक नहीं है. स्वामी की मानें, तो उत्तराखंड आध्यात्मिक प्रदेश है. लिहाजा, यहां शराब की जगह शांति के ठेके खोलने की जरूरत है. दावा है कि पड़ोसी राज्य यूपी और दिल्ली में अल्प आयु में मृत्यु की समस्या को भी प्रदेश में शांति के ठेके खोलकर कम किया जा सकता है.

दरअसल, परमार्थ निकेतन आश्रम (Parmarth Niketan Ashram) के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद मुनि ने प्रेसवार्ता में मुनि की रेती और स्वर्गाश्रम क्षेत्र के नजदीक शराब की दुकानों को लेकर खुलकर बात की. बोले, राज्य की सरकार नियम बनाती है, जिसका पालन सूबे के लोगों को करना होता है. ऋषिकेश क्षेत्र मांस और मदिरा के लिहाज से प्रतिबंधित क्षेत्र है. चिदानंद मुनि ने इशारों में कहा कि ड्राई एरिया में गंगा स्नान की बजाय शराब का स्नान न तो ठीक है और न ही यह संस्कार है. मुनि बोले, यह चिंतन का वक्त है. गंगातट के आसपास रिजॉर्ट और बीच-कैंप अय्याशी के लिए नहीं हैं. मोक्षदायिनी के तटों के आसपास शराब की जगह शांति ठेके खोलने की जरूरत है. लोग शांति के लिए यहां आएंगे और यह प्रदेश शांति का ही केंद्र है.
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स्वामी चिदानंद ने दावा किया कि दिल्ली में 10 और यूपी में साढ़े सात साल के अलावा अन्य प्रदेशों में साढ़े पांच वर्ष लोगों की औसतन आयु सीमा कम हो रही है. ऐसे में आध्यात्मिक प्रदेश उत्तराखंड में शांति केंद्र खोले जाएं, तो यहां लोग शांति और ऑक्सीजन पर्यटन के लिए आएंगे, जिससे अल्प आयु में मृत्यु की समस्या का भी समाधान होगा. चिदानंद मुनि ने कहा कि गंगातटों के आसपास शराब की दुकानों पर पहाड़ के लोग भी हैं और वह भी सब सहन कर रहे हैं. विभिन्न क्षेत्रों में प्रदेश का नाम रोशन करने के साथ ही अब जरूरत है कि स्थानीय लोग ही नहीं, बल्कि मीडिया भी संस्कार जगाने के लिए अहम भूमिका निभाए.

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