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Uttarakhand Year Ender 2021: उत्तराखंड ने इन 10 खबरों ने बटोरी सुर्खियां, बनीं हेडलाइन

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Published : Dec 26, 2021, 7:04 AM IST

Updated : Dec 27, 2021, 2:38 PM IST

Uttarakhand year end 2021:
साल 2021 में उत्तराखंड ने इन 10 खबरों ने बटोरी सुर्खियां

Uttarakhand Year Ender 2021 में हम आपको उन खबरों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने साल 2021 में खूब सुर्खियां बटोरीं. ऐसी ही 10 टॉप खबरें हम आपके लिए लेकर आये हैं.

देहरादून: साल 2021 उत्तराखंड के लिहाज से काफी महत्वूपूर्ण रहा. इस साल प्रदेश में कई ऐसी घटनाएं घटीं जिन पर न केवल राष्ट्रीय बल्कि इंटरनेशल मीडिया की नजरें भी टिकी रहीं. चुनावी साल से पहले का साल होने के कारण भी 2021 चर्चाओं में रहा. राजनीतिक घटनाक्रम हो या फिर बड़े नेताओं के दौरे, सभी कारणों से ये साल सोशल मीडिया से लेकर समाचार पत्रों की सुर्खियों में रहा. अब जब हम सभी नये साल में प्रवेश करने जा रहे हैं तो आइये ऐसे में साल 2021 की उन सब बड़ी खबरों पर नजर डालते हैं जो उत्तराखंड में सुर्खियों में शामिल रहीं.

उत्तराखंड ने इन 10 खबरों ने बटोरी सुर्खियां
  • रैंणी आपदा का खौफनाक मंजर

इस साल सात फरवरी को चमोली जिले में आई रैंणी आपदा की खौफनाक यादों से अब तक राज्यवासी उबर नहीं पाए हैं. रैंणी गांव में ऋषिगंगा नदी पर बनी एक पनबिजली परियोजना सात फरवरी को आई आपदा में पूरी तरह तबाह हो गयी थी. इस आपदा में 122 लोग मारे गये थे, जबकि कई लोग लापता हो गये थे. बताया जाता है कि चमोली जिले के तपोवन में ग्लेशियर टूटने से ऋषिगंगा और धौलीगंगा का जल स्तर बढ़ गया था. रफ्तार से आए पानी और पत्थरों ने ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट और NTPC के प्रोजेक्ट को तबाह कर दिया था. आपदा की जानकारी मिलते ही तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद मौके पर पहुंचे थे. जिसके बाद केंद्रीय गृहमंत्रालय भी इस मामले पर नजर बनाये हुए था.

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रैंणी आपदा का खौफनाक मंजर

यहां राहत और बचाव कार्य के लिए SDRF, NDRF, ITBP के अलावा आर्मी ने अपने 600 जवान चमोली भेजे. इसके अलावा वायुसेना के Mi-17 और ध्रुव समेत तीन हेलिकॉप्टर रेस्क्यू मिशन पर रहे. वायुसेना के C-130 सुपर हरक्यूलिस विमान राहत सामग्री लेकर देहरादून पहुंचे थे. तपोवन की NTPC स्थित टनल में फंसे वर्कर्स को निकालने के अलावा एरियल सर्वे से भी लोगों की तलाश की गई. रैणी गांव के लापता लोगों को ढूंढने के लिए महीनों राहत बचाव कार्य चला. इस दौरान चमोली जिले का रैंणी गांव मीडिया का सेंटर बन गया था.

  • सुर्खियों में छाई रही जंगलों की आग

हर साल की तरह इस साल भी उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग देश ही बल्कि विदेशों में भी सुर्खियों में छाई रही. उत्तराखंड के जंगल इस बार भी धू-धू कर जले. जंगलों में लगी आग इतनी भीषण थी कि उत्तराखंड सरकार ने इसके लिए केंद्र सरकार से मदद मांगी. जिसके बाद आग पर काबू पाने के लिए वायुसेना के हेलिकॉप्टर तैनात किए गए. उत्तराखंड में पिछले सीजन के मुकाबले इस बार जंगलों में आग लगने के मामले साढ़े 4 गुना तेजी से बढ़े. उत्तराखंड में जो जिले सबसे ज्यादा आगजनी से प्रभावित हैं.

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सुर्खियों में छाई रही जंगलों की आग

उनमें नैनीताल, अल्मोड़ा, टिहरी, चमोली, पौड़ी, बागेश्वर जिले शामिल रहे. इस बार एक अप्रैल से लेकर पांच अप्रैल तक ही कुल 261 मामले सामने आ गये थे. जिसमें 413 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गये थे. वन विभाग ने तब 8.37 लाख रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया. प्रदेश के जंगलों में इस बार सर्दियों में ही आग लगनी शुरू हो गई थी. एक अक्टूबर से लेकर पांच अप्रैल तक करीब 1400 हेक्टेयर जंगल आग के हवाले हुए. जंगल की आग के मामले भी 1100 से अधिक हुए. प्रदेश में वन विभाग ने जंगल की आग पर नियंत्रण पाने के लिए करीब 1313 क्रू स्टेशन बनाये. कैंपा से करीब 2000 फायर किट उपलब्ध कराई गईं. वन प्रभागों को अतिरिक्त 180 करोड़ रुपये जारी किए गए.

  • एक साल में तीन सीएम

साल 2021 में उत्तराखंड में राजनीतिक उठा-पटक देखने को मिली. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने यहां एक साल में तीन सीएम दिये. पार्टी को इस साल 2 बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा. इस साल भाजपा ने सबसे पहला उलटफेर मार्च के महीने में किया. तब पार्टी ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उनके पद से हटाने का फैसला किया. 9 मार्च 2021 को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया. इसके बाद 10 मार्च, 2021 को पौड़ी लोकसभा सीट से सांसद तीरथ सिंह रावत को राज्य का नया मुख्‍यमंत्री बनाया गया, लेकिन संवैधानिक बाध्यता के चलते 2 जुलाई को तीरथ सिंह रावत ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया.

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उत्तराखंड बना 'मुख्यमंत्री परिवर्तन' की प्रयोगशाला

सर्वे में पिछड़ गए तीरथ: पार्टी सूत्रों की मानें तो भाजपा के आंतरिक सर्वे में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की परफॉर्मेंस ठीक नहीं थी. ऐसे में यदि उनके नेतृत्व में पार्टी चुनाव में जाती तो उसको नुकसान हो सकता था. ऐसा पार्टी की ओर से कराए गए आंतरिक सर्वे की रिपोर्ट में सामने आया था. बताया जा रहा है कि ऐसे में पार्टी कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती थी. जिसके कारण तीरथ को भी सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.

तीरथ सिंह रावत के बाद में भाजपा ने युवा चेहरे तौर पर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया.धामी को कमान देकर बीजेपी ने बड़ा संदेश दिया. साथ ही विपक्षी दलों के सियासी गणित को भी इससे बीजेपी ने बिगाड़ा. पुष्कर सिंह धामी खटीमा से दो बार के बीजेपी विधायक हैं. पुष्कर सिंह धामी का जन्म पिथौरागढ़ के टुंडी गांव में हुआ था. लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट और इंडस्ट्रियल रिलेशंस में मास्टर डिग्री हासिल की है. पुष्कर सिंह धामी एबीवीपी के यूपी प्रदेश महासचिव भी रहे. 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद वह सीएम भगत सिंह कोश्यरी के ओएसडी रहे. 2002 से 2008 तक दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे.

  • तीरथ सिंह के विवादित बयानों ने बटोरी सुर्खियां

इस साल भाजपा ने 10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत को मुख्‍यमंत्री बनाया. जिसके बाद तीरथ सिंह रावत अचानक सुर्खियों में आ गये. अपने कुछ ही महीनों के कार्यकाल में तीरथ सिंह ने ऐसे-ऐसे बयान दिये जिसके कारण वे सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगे. आइये आपको तीरथ सिंह रावत के कुछ ऐसे ही बयानों से रू-ब-रू करवाते हैं.

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तीरथ सिंह के विवादित बयानों ने बटोरी सुर्खियां
  • फटी जींस के बयान पर तीरथ सिंह रावत खूब घिरे थे. तब तीरथ सिंह रावत ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि 'आजकल लड़के घुटना फाड़ कर ही अपने आपको बड़ा समझते हैं. लड़कियां भी अब उनकी तरह फटी हुईं जींस से घुटने दिखाती हैं. इस बयान पर उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी थी.
  • तीरथ सिंह रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना भगवान राम और कृष्ण से कर दी थी. उन्होंने कहा कि-'जिस तरह से द्वापर और त्रेता युग में भगवान राम व कृष्ण को लोग उनके कामों की वजह से भगवान मानने लगे थे, उसी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आने वाले समय में भगवान राम और कृष्ण की तरह मानने लगेंगे.
  • पहले दो विवादित बयान देने के बाद तीरथ सिंह रावत ने एक बार फिर विवादित बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि- 'जिन्होंने दो बच्चे पैदा किए, उन्हें कम राशन मिला. अगर उन्होंने ज्यादा बच्चे पैदा किए होते तो ज्यादा राशन मिलता. तीरथ सिंह रावत लॉकडाउन के दौरान राशन वितरण को लेकर बोल रहे थे. इस दौरान सीएम ने कहा कि कम बच्चे पैदा करना किसकी गलती है'.
  • इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा कि- 'भारत ने दो सौ साल अमेरिका की गुलामी की. जिस पर हरीश रावत ने जमकर चुटकी ली थी. हरदा ये तक कह दिया था, धन्य हो उनका इतिहास का ज्ञान'.
  • तीरथ सिंह रावत ने एक कार्यक्रम के दौरान बनारस में कुंभ मेले के आयोजन की बात कह दी थी. इस पर लोगों ने उनकी खूब खिंचाई की. लोगों ने चुटकी लेते हुए कहा कि लेकिन मुख्यमंत्री जी को इतना नहीं पता कि कुंभ मेला चार स्थानों पर लगता है. वो स्थान हैं हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और इलाहाबाद.

उत्तरकाशी में कार्यक्रमों के शिलान्यास के दौरान भी तीरथ सिंह कुछ ऐसा बोल गये जिससे वे सोशल मीडिया पर ट्रोल हो गये. दरअसल, यहां उन्होंने कहा कि- आजादी के बाद से लोगों को चीनी (Free Sugar After Independence) नहीं मिली है. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार पहली सरकार है जो लोगों को दुख आपदा और कष्ट में चीनी बांट रही है. उन्होंने ऐलान किया था कि 3 महीनों के लिए प्रत्येक परिवार को 2 किलो चीनी कंट्रोल रेट पर दी जाएगी. मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद सोशल मीडिया में बहस छिड़ गई थी.

  • हरिद्वार में हुआ भव्य कुंभ का आयोजन

साल 2021 उत्तराखंड में दिव्य और भव्य कुंभ को लेकर भी जाना जाएगा. कोरोना संक्रमण के बीच धर्मनगरी हरिद्वार में आस्था का महाकुंभ हुआ. हालांकि कोरोना वायरस संक्रमण के चलते केवल इसे केवल एक माह की अवधि तक सीमित कर दिया गया था. सामान्य परिस्थितियों में कुंभ तीन माह से भी अधिक समय तक चलता है. इस बार महाकुंभ महामारी के चलते कड़ी पाबंदियों के साथ हुआ. इस बार कुंभ एक अप्रैल से शुरू हुआ. इस दौरान 12, 14 और 27 अप्रैल को केवल तीन शाही स्नान हुए. इस बार महाकुंभ में 70 लाख श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई.

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हरिद्वार में हुआ भव्य कुंभ का आयोजन

इस बार होने वाले कुंभ में ढाई हजार से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हुए. कोविड मामलों में उछाल के बाद कुंभ मेले को प्रतीकात्मक रखे जाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद भीड़ छंटनी शुरू हो गयी थी. निरंजनी अखाड़ा के बाद जूना अखाड़ा और कई अन्य अखाड़ों ने काफी पहले से ही कुंभ क्षेत्र में अपनी छावनियां खाली कर दी थी और 27 अप्रैल के आखिरी शाही स्नान के लिए उनके केवल कुछ ही साधु बचे थे.

  • महाकुंभ में कोरोना टेस्टिंग फर्जीवाड़ा

हरिद्वार महाकुंभ में कोरोना टेस्टिंग फर्जीवाड़ा का मामला ऐसा रहा जिसे न केवल देश के मीडिया ने कवर किया बल्कि इस पर अंतरराष्ट्रीय़ मीडिया में भी खूब बहस हुई. इसे लेकर राज्य सरकार और शासन भी लगातार सवालों के घेरे में आये.

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महाकुंभ में कोरोना टेस्टिंग फर्जीवाड़ा

दरअसल, हरिद्वार में 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक कुंभ उत्सव का आयोजन किया गया था. इस अवधि में 9 एजेंसियों और 22 प्राइवेट लैब्स की तरफ से लगभग चार लाख कोरोना टेस्ट किए गए थे. में प्राइवेट एजेंसी की रिपोर्ट में कई अनियमितताएं पाई गईं. जांच में पाया गया है कि इसमें 50 से ज्यादा लोगों को रजिस्टर्ड करने के लिए एक ही फोन नंबर का इस्तेमाल किया गया था. एक एंटीजन टेस्ट किट से 700 सैंपल्स की टेस्टिंग की गई थी. कुंभ मेले के दौरान कोरोना टेस्टिंग फर्जीवाड़े का पैसा लेने के लिए फर्जी बिल बनाए गए थे. एसआईटी जांच में पता चला कि नलवा लैब के नाम से करीब एक लाख रुपये के फर्जी बिल बनाकर भुगतान के लिए लगाए गए थे. दिल्ली की फर्म मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज ने कुंभ मेले के दौरान हिसार हरियाणा की नलवा लैबोट्रीज और दिल्ली की डा. लालचंदानी लैब से हुए अनुबंध के आधार पर कोरोना टेस्टिंग का ठेका लिया था.

आरोप था कि कुंभ 2021 मेले के दौरान यात्रियों और साधु-संतों की बड़ी पैमाने पर कोविड जांच की गई थी, मगर इस कोविड जांच के नाम पर निजी लैब द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा किया गया. इसकी शिकायत फरीदकोट निवासी विपिन मित्तल द्वारा स्वास्थ्य सचिव से की गई. जिसके बाद ये सारा मामला खुला.

  • देवस्थानम बोर्ड पर सरकार ने खेला दांव

साल के आखिरी महीनों में राज्य सरकार ने भाजपा और सरकार के गले की हड्डी बने देवस्थानम बोर्ड को रद्द किया. चुनाव से पहले धामी सरकार के इस फैसले को बड़ा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. ये मामला भी लंबे समय से मीडिया में सुर्खियां बना रहा. उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड से संत समाज इतना आक्रोशित था कि उसने पीएम मोदी के केदारनाथ दौरे का भी विरोध करने का एलान किया था. काफी मान मनौव्वल के बाद उन्हें मनाया गया था. सीएम पुष्क सिंह धामी पदभार ग्रहण के बाद से ही इस मामले पर विचार कर रहे थे. तीर्थ-पुरोहित और हक-हकूकधारियों के लिए देवस्थानम बोर्ड पर कमेटी भी बनाई गई. इस कमेटी ने तीन महीने तक काम किया. तमाम विषयों पर अध्ययन करने के बाद आखिर में 30 नवंबर को धामी सरकार ने देवस्थानम बोर्ड को रद्द करने का फैसला किया.

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रद्द हुआ देवस्थानम बोर्ड

2019 में हुआ था बोर्ड का गठन: उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के अन्य 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया. बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे थे. बावजूद इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तीर्थ पुरोहितों के विरोध को दरकिनार करते हुए चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लागू किया.

  • सकुशल संपन्न हुई चारधाम यात्रा

कोरोनाकाल में उत्तराखंड में चारधाम यात्रा सकुशल संपन्न हुई. इस बार चारधाम यात्रा खुलने के कुछ ही दिनों के बाद अव्यवस्थाओं को देखते हुए हाईकोर्ट ने यात्रा पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया था. कपाट खुलने के लगभग 4 महीने बाद कोर्ट ने सशर्त चारधाम यात्रा शुरू करने की अनुमति दी. जिसके बाद 18 सितंबर से चारधाम यात्रा फिर से शुरू हुई. तब उत्तराखंड के बाहर आने वाले यात्रियों को स्मार्ट सिटी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य था. दर्शन के लिए लिए ई- पास की व्यवस्था की गई. आरटीपीसीआर रिपोर्ट को भी जरूरी किया गया. साथ ही चारों धामों में दर्शनार्थियों की संख्या भी सीमित कर दी गई थी. जिसके कारण चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों को काफी परेशानियां हुईं. जिसे देखते हुए राज्य सरकार ने फिर हाईकोर्ट का रुख किया.

जिसके बाद हाईकोर्ट ने कोरोना मानकों का पालन करते हुए चारधाम यात्रा कराने की अनुमति दी. इस फैसले के बाद चारधाम यात्रा पर आने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई. इसके बाद शीतकाल के लिए सबसे पहले गंगोत्री धाम के कपाट 5 नवंबर को बंद हुए. 6 नवंबर को यमुनोत्री धाम व केदारनाथ के कपाट बंद हुए. भगवान बदरी विशाल के कपाट देव उठनी एकादशी के 6 दिन बाद यानि 20 नवंबर को बंद हुए. कपाट बंद होने से पहले चारधामों में दर्शन के लिए तीर्थ यात्रियों की तादाद में इजाफा देखने को मिला. इस साल 1,97,056 श्रद्धालुओं ने भगवान बदरी विशाल के दर्शन किये. इस बार 2.40 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने बाबा केदार के दर्शन किये.

  • आप की धमाकेदार पॉलिटिकल एंट्री

उत्तराखंड में मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस दो ही राष्ट्रीय दल हैं. इसके अलावा कई छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल भी उत्तराखंड में हैं. मगर इस बार चुनावी साल से ठीक पहले आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड की राजनीति में धमाकेदार एंट्री की. यूं तो पार्टी प्रदेश में पहले से ही सक्रिय थी, मगर 2021 के शुरुआत से ही आम आदमी पार्टी एक्शन में है. आम आदमी पार्टी की एक्टिविटी ने प्रदेश के तीसरे बड़े दल के रूप में जाने जाने वाले उत्तराखंड क्रांति दल को भी पीछे छोड़ दिया है. आज आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में तीसरे मजबूत दल के रूप में उभर रही है. आम आदमी पार्टी 2022 में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए अभी से चुनौती बनी हुई. आम आदमी पार्टी को उत्तराखंड में मजबूत करने के लिए उसके केंद्रीय नेता लगातार उत्तराखंड का दौरा कर रहे हैं.

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आप की धमाकेदार एंट्री

इसी कड़ी में पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल अब तक उत्तराखंड के पांच दौरे कर चुके हैं. इसके अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया भी अब तक उत्तराखंड के तीन दौरे कर चुके हैं. आम आदमी पार्टी ने 2022 चुनाव के लिए फ्री बिजली, रोजगार गारंटी, रोजगार भत्ता, तीर्थ दर्शन जैसे कई वादे किये हैं, जो कि इन दिनों भाजपा-कांग्रेस की परेशानियां बनी हुई हैं. आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर अपना सीएम कैंडिडेट भी घोषित कर दिया है. आम आदमी पार्टी ने रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल को अपना सीएम कैंडिडेट बनाया है.

आज की अगर बात की जाये तो आम आदमी पार्टी प्रदेश में मजबूत विकल्प के तौर पर उभर कर सामने आ रही है, खैर ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि आखिर आम आदमी पार्टी 2022 विधानसभा चुनाव में क्या कुछ कर पाती है. मगर फिलहाल इस दल ने दोनों की राष्ट्रीय दलों की नाक में दम किया हुआ है. पहले विधानसभा चुनाव में जो मुकाबला केवल भाजपा-कांग्रेस के बीच होता था उसे आम आदमी पार्टी ने त्रिकोणीय बना दिया है.

  • आफत लेकर आई बारिश, दर्ज हुई रिकॉर्ड मौतें

साल 2021 में उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं के प्रदेश के तौर पर उभरकर सामने आया है. आपदा में अगर मौतों के आंकड़े देखे जाएं तो इस साल यानी 2021 में अब तक उत्तराखंड में 298 लोग जान गंवा चुके हैं, जबकि 66 लापता हैं. इन आपदाओं में 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए. प्राकृतिक आपदाओं में जानें जाने का यह रिकॉर्ड देखा जाए तो 2013 में केदारनाथ के जलप्रलय में हज़ारों की जान गई थी, उसके बाद से इस साल का आंकड़ा सबसे ज़्यादा और भयावह है. इन आपदाओं में बाढ़, बादल फटने, हिमस्खलन, भूस्खलन और अतिवृष्टि से बने हालात शामिल हैं.

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आफत लेकर आई बारिश, दर्ज हुई रिकॉर्ड मौतें

11 सालों में दूसरे सबसे चिंताजनक आंकड़े: साल 2010 से आंकड़े देखे जाएं तो 2013 के बाद 2021 में सबसे ज़्यादा मौतें हुईं. 2010 में 220 लोग आपदा में मारे गए थे. 2021 में 17 से 19 अक्टूबर के बीच हुई बारिश ने भी भारी तबाही मचाई. 2013 में केदारनाथ के जलप्रलय के बाद 2021 की प्राकृतिक आपदा सबसे बड़ी आपदा बताई गई. इसमें सबसे अधिक मौतें नैनीताल जिले में हुई. नैनीताल में 32 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इस आपदा में मौत के मुंह में चले जाने वाले लोगों में दूसरे नंबर पर उत्तरकाशी जिला रहा.

यहां 10 लोगों की मौत हुई. चमोली (3), रुद्रप्रयाग (1) पौड़ी (3), अल्मोड़ा (6), बागेश्वर (2) चम्पावत जिले में 11 और उधमसिंह नगर जिले में 3 और पिथौरागढ़ जिले में 5 लोगों की मौत हुई. इस तबाही ने सबसे ज्यादा तांडव सूबे के सबसे खूबसूरत इंटरनेशल फेम पर्यटन स्थल नैनीताल जिले में मचाया है. यहां भीषण बारिश ने तो एक रेलवे लाइन तक को नेस्तनाबूद कर डाला.

Last Updated :Dec 27, 2021, 2:38 PM IST
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