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Joshimath Crisis: अपने घरों में वापसी कितनी आसान? पुनर्वास का इंतजार कर रहे लोगों का छलका दर्द

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Published : Feb 5, 2023, 9:30 PM IST

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जोशीमठ भू-धंसाव से आई घरों में दरार और खतरे को देखते हुए सरकार और प्रशासन ने प्रभावितों को राहत शिविरों में ठहराया है, लेकिन पीड़ितों को अभी भी स्थायी पुनर्वास का इंतजार है. पिछले एक महीने से शिविर में रहते-रहते अब प्रभावितों का दर्द छलकने लगा है. पीड़ित अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं.

चमोली: उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव के बाद घरों में आई और क्षतिग्रस्त मकानों से सरकार और प्रशासन ने सैकड़ों प्रभावित को भले ही फौरी तौर पर राहत शिविर में शरण दे दिया हो, लेकिन आज भी इन पीड़ितों को जोशीमठ में स्थायी पुनर्वास का इंतजार है. जिसकी आस में ये पीड़ित अपने सपनों के आशियाने को निहारने हर एक दो दिन पर जोशीमठ चले आते हैं.

स्थायी पुनर्वास का इंतजार: जोशीमठ पीड़ितों में से एक भारती देवी (70 वर्षीय) की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. जोशीमठ भू-धंसाव की वजह से घर में दरारें पड़ने से मजबूरन इन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा है. भारती को अपना घर छोड़े एक महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन वह अभी भी आधा दिन अपने छोड़े हुए घर के पास ही बिताती हैं तो आधा दिन उप-विभागीय कार्यालय में. भारती को सरकार और प्रशासन से अपने स्थायी पुनर्वास को लेकर सकारात्मक समाचार की उम्मीद है.

शिविर में रहने को मजबूर प्रभावित: बता दें कि भारती देवी वर्तमान में एक विरान सेना बैरक में बने अस्थायी राहत शिविर में रह रही हैं. वह जोशीमठ के पहले परिवारों में से थीं, जिनके घर भूमि-धंसाव होने के बाद रहने लायक नहीं रह गए थे. भारती ने कहा कि दो जनवरी को हमारे घर के नीचे की जमीन धंसने लगी थी. अगले ही दिन हमारा घर रहने लायक नहीं रह गया था. यह सब अचानक हुआ.

प्रभावितों को भविष्य की चिंता: भारती ने कहा मैंने और हमारे पड़ोसी परिवारों ने अपने घरों से सामान उठाया और पास के एक स्कूल में शरण ली, जो उस समय बंद था, जिसे अब खोल दिया गया है. बाद में हमें वहां से भी निकाल दिया गया. भारती अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि हर रात उन पर भारी पड़ती है. क्योंकि उन्हें सोने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. जोशीमठ के लोगों के लिए भविष्य अनिश्चित प्रतीत होता है. यहां के लोगों का जीवन शहर में भू-धंसाव के प्रभाव से जूझ रहा है.
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चारधाम यात्रा के दौरान खाली करना होगा शिविर: अभी भी कई प्रभावित स्थायी पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं. जो लोग सिंहधार वार्ड में एक प्राथमिक स्कूल को अस्थायी आश्रय के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे, उन्हें स्कूल खुलने के बाद सेना के विरान पड़े बैरक में जाना पड़ा. इन प्रभावितों को डर है कि अप्रैल-मई में चारधाम यात्रा के लिए तीर्थयात्रियों के आने से वे इस आवास से भी वंचित हो जाएंगे.

जोशीमठ भू-धंसाव से लोग हुए बेघर: भारती देवी का परिवार सिंहधार वार्ड के सबसे बुजुर्ग निवासियों में से एक है. अपने पूर्व घर के पास बहने वाली तीन प्राचीन धाराओं की ओर इशारा करते हुए भारती ने कहा जोशीमठ के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद हमारे पूर्वज यहां बस गए थे. इस क्षेत्र में बसावट लगभग उतनी ही पुरानी है, लेकिन एक फरवरी से भारती के परिवार को इसी वार्ड में वीरान पड़ी सेना की बैरक में रहना पड़ रहा है.

शिवलाल को मवेशियों की चिंता: 70 के दशक से जोशीमठ में रहने वाले शिवलाल सेना की बैरक में रातें बिता रहे हैं और दिन में अपने पुराने घर में टहलते हैं. उनकी पत्नी विश्वेश्वरी देवी भी उनके मवेशियों की देखभाल के लिए अपने क्षतिग्रस्त घर में शिवलाल के साथ जाती हैं. शिवलाल ने कहा अगर हमारी गाय नहीं हैं तो, हम सुरक्षित कैसे हो सकते हैं? हमें न सिर्फ अपने लिए घर की, बल्कि मवेशियों के लिए भी आश्रय की जरूरत है. उन्होंने कहा हम यहां से तब तक नहीं जा सकते, जब तक हमें यकीन न हो जाए कि हमारे मवेशी सुरक्षित हैं. जिन खेतों में शिवलाल और उनकी पत्नी ने फसल उगाई थी, वे अलकनंदा नदी की ओर खिसक रही है.

आपदा से घर और खेती प्रभावित: आपदा ने न केवल उनके घर को बर्बाद कर दिया, बल्कि पशुपालन और खेती पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है. जो उनकी आजीविका का मुख्य जरिया था. विश्वेश्वरी ने दरारों से भरे अपने खेतों की ओर इशारा करते हुए कहा क्या उनमें कुछ बोया जा सकता है? उन्होंने कहा उनके पति एक खुशमिजाज व्यक्ति थे, लेकिन आपदा ने उन्हें बदल दिया है. वह अक्सर अपने मृत बेटे के बच्चों के भविष्य की चिंता में चुपचाप अपने क्षतिग्रस्त घर में घूमते रहते हैं.
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पूर्व सैनिक भी शिविर में रहने को मजबूर: ढाई दशक पहले सेना से सेवानिवृत्त पुष्कर सिंह बिष्ट भी अस्थायी राहत शिविर में अपने परिवार के आठ सदस्यों के साथ रह रहे हैं. उन्होंने रिटायर होने के बाद सिंहधार वार्ड में एक घर बनाया था, जिसमें उनका परिवार रहता था. 3 जनवरी को इसे असुरक्षित घोषित कर दिया गया, जिसके बाद उन्हें वहां से हटना पड़ा. बिष्ट ने कहा हमने किसी तरह एक महीना गुजार लिया, लेकिन अब हमारा क्या होगा? यह सवाल मुझे लगातार कचोट रहा है.

बच्चों को स्कूल भेजने में परेशानी: पुष्कर सिंह बिष्ट कहते हैं कि जाड़े की छुट्टियों के बाद हमारे पोते-पोतियों के स्कूल खुल गए हैं, जिससे हमारी परेशानी और बढ़ गई है. मैराथन तो दिन के उजाले में शुरू होता है, जब ये बच्चे शिविरों के शौचालयों के बाहर कतार में खड़े अपनी बारी का इंतजार कर रहे होते हैं. स्कूल के लिए बच्चों का टिफिन बॉक्स तैयार करना और एक कमरे में रहना मुश्किल है. बिष्ट की बहू आरती बिष्ट ने कहा हमारी जिंदगी ठहर सी गई है. 26 परिवारों को संस्कृत महाविद्यालय भवन में रखा गया है.

भविष्य को लेकर अनिश्चितता: देवेश्वरी देवी ने कहा हमारे साथ क्या होगा, कोई नहीं जानता और न ही कोई हमें बता रहा है. अगले कुछ दिनों में महाविद्यालय भी खुल रहा है. छात्र छुट्टी से लौट आएंगे और हमें यह जगह भी छोड़नी होगी. उन्होंने पूछा यह शेल्टर होपिंग कब तक चलेगी ? वहीं, रजनी देवी के घर को भी तीन जनवरी को असुरक्षित घोषित कर दिया गया था, जिसके बाद वह अपने परिवार के साथ यहां से करीब 10 किमी दूर गणेशपुर में अपने मायके चली गई.

रजनी प्रतिदिन जोशीमठ स्थित अपने घर जाती हैं और शाम को गणेशपुर के लिए निकल जाती हैं. उन्होंने कहा हमारा घर अभी तक गिरा नहीं है, लेकिन इसके नीचे के खेतों में दरारें चौड़ी हो गई हैं. यह खड़ा रहेगा या नहीं, यह मानसून के बाद ही पता चलेगा. (इनपुट-PTI)

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