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नवरात्रि का दूसरा दिन आज, जानिए दुर्गा के स्वरूप मां नंदा देवी की महिमा

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Published : Oct 18, 2020, 6:02 AM IST

सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है. मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है. नवरात्र के मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन-पूजन को मंदिर आते हैं.

maa nanda devi temple
मां नंदा देवी की महिमा.

अल्मोड़ा: शारदीय नवरात्र में भक्त मां दुर्गा ने नौ रूपों की पूजा-अर्चना कर रहे हैं. ऐसे में आज आपको मां दुर्गा के एक ऐसे स्वरूप के बारे मे बता रहे हैं, जिन्हें बुराई के विनाशक के रूप में जाना जाता है. भविष्यपुराण में जिन दुर्गा के स्वरूपों का जिक्र हैं. उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकारी, शिवदूती, महाटूंडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी स्वरूप शामिल हैं. इन्हीं में एक हैं मां नंदा देवी, जो देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्थित विश्व विख्यात नंदा देवी मंदिर में स्थापित हैं.

कौन हैं नंदा देवी

उत्तराखंड में मां नंदा को बहन, मां, बेटी के रूप में पूजा जाता है. सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है. मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है. वर्ष 1638-78 के दौरान चंद राजा बाज बहादुर चंद ने पंवार राजा को युद्ध में पराजित किया और विजय के प्रतीक के रूप में बधाणकोट से नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा को लेकर यहा आए.

जिसे उस समय मल्ला महल (वर्तमान कलक्ट्रेट परिसर) में स्थापित किया गया. बाद में कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्वर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को दीप चंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित करवाया. मां नंदा की सात बहनें मानी जाती हैं. जो लाता, द़्योराड़ी, पैनीगढ़ी, चांदपुर, कत्यूर, अल्मोड़ा और नैनीताल में स्थित हैं.

उत्तराखंड में नंदा देवी पर्वत शिखर, रूपकुंड एवं हेमकुंड नंदा देवी के प्रमुख पवित्र स्थलों में एक हैं. माना जाता है कि नंदा ने ससुराल जाते समय रूप कुंड में स्नान किया था. प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में शिव की पत्‍‌नी पार्वती को ही मां नंदा माना गया है. पौराणिक ग्रंथों की बात करें तो इनमें देवी के अनेक स्वरूप गिनाए गए हैं. जिनमें शैलपुत्री नंदा को योग माया एवं शक्ति स्वरूपा का नाम दिया गया है.

मां नंदा देवी की महिमा.

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ऐसे हुई नंदादेवी मंदिर की स्थापना

कुमाऊं में मां नंदा की पूजा चंद शासकों के जमाने से की जाती है. इतिहासकारों के मुताबिक सन् 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद ने बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा लाए और उसे यहां मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्ट्रेट परिसर अल्मोड़ा) में स्थापित किया. तब से उन्होंने मां नंदा का कुलदेवी के रूप में पूजन शुरू किया.

इसके बाद में राजा जगत चंद को जब बधानकोट विजय के दौरान नंदादेवी की मूर्ति नहीं मिली, तो उन्होंने खजाने से अशर्फियों को गलाकर मां नंदा की प्रतिमा तैयार कराई और प्रतिमाओं को भी मल्ला महल स्थित नंदादेवी मंदिर में स्थापित कर दिया. सन् 1690 में तत्कालीन राजा उद्योत चंद ने पार्वतीश्वर और उद्योत चंद्रेश्वर नामक दो शिव मंदिर मौजूदा नंदादेवी मंदिर में बनाए. आज भी ये मंदिर उद्योत चंद्रेश्वर एवं पार्वतीश्वर के नाम से प्रचलित हैं. मल्ला महल (वर्तमान कलक्ट्रेट परिसर) में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को भी सन् 1815 में ब्रिटिश हुकुमत के दौरान तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर में रखवा दिया. पंचमी तिथि से प्रारंभ नंदा देवी मेला दशमी के दिन डोला यात्रा के साथ संपन्न हो जाता है. इस अवसर पर दो भव्य देवी प्रतिमाएं बनायी जाती हैं. पंचमी की रात्रि से ही जागर भी प्रारंभ होती है. यह प्रतिमाएं कदली स्तम्भ से निर्मित की जाती हैं. नन्दा की प्रतिमा का स्वरुप उत्तराखंड की सबसे ऊँची चोटी नन्दादेवी की तरह बनाया जाता है.

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प्रचलित मान्यताओं के अनुसार एक दिन कमिश्नर ट्रेल नंदादेवी पर्वच की चोटी पर चढ़ रहे थे. तभी उनकी आंखों की रोशनी चली गई. स्थानीय लोगों की सलाह पर उन्होंने अल्मोड़ा में नंदादेवी का मंदिर बनवाकर वहां नंदादेवी की मूर्ति स्थापित करवाई, तो रहस्यमय ढंग से उनकी आंखों की रोशनी लौटी. इसके अलावा कहा जाता है कि राजा बाज बहादुर प्रतापी थे. जब उनके पूर्वजों को गढ़वाल पर आक्रमणों के दौरान सफलता नहीं मिली, तो राजा बाज बहादुर ने प्रण किया कि अगर उन्हें युद्ध में विजय मिली, तो नंदादेवी की अपनी इष्ट देवी के रूप में पूजा करेंगे.

मंदिरों में खजुराहो कलाकृति

नंदादेवी मंदिर अल्मोड़ा की मंदिर की निर्माण शैली भी काफी पुरानी है. यहां उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर की स्थापना 17वीं शताब्दी के अंत में मानी जाती है. उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर के ऊपरी हिस्से में एक लकड़ी का छज्जा है. मंदिर में बनी कलाकृति खजुराहो मंदिरों की तर्ज पर है. ये मंदिर संरक्षित श्रेणी में शामिल हैं.

चंद वंशज करते हैं तांत्रिक पूजा

अल्मोड़ा में मां नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है. पहले से ही विशेष तांत्रिक पूजा चंद शासक व उनके परिवार के सदस्य करते आए हैं. वर्तमान में चंद वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा राजा के रूप में सपरिवार पूजा में बैठते हैं.

मां नदा के नाम से हैं कई चोटियां और नदियां

पूरे उत्तराखंड को एक सूत्र में पिरोने वालीं मां नंदा की महिमा अपार है. नंदादेवी की पूजा पूरे उत्तराखंड में की जाती है. उन्हें उत्तराखंड की देवी मां का दर्जा प्राप्त होता है. पुराणों में हिमालय की पुत्री को नंदा बताया गया है. देवी भागवत में नंदा को नौ दुर्गाओं में एक बताया गया है. नंदा देवी के नाम से हिमालय की अनेक चोटियां हैं. इनमें नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाघुंटी, नंदाखाट प्रमुख चोटियां हैं. इसके अलावा नंदाकिनी नदी का नाम भी नंदा देवी के नाम पर हैं.

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