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उत्तराखंड की इन विभूतियों को मिले पद्म पुरस्कार, राष्ट्रपति कोविंद ने किया सम्मानित

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Published : Nov 8, 2021, 7:31 AM IST

Updated : Nov 8, 2021, 9:37 PM IST

पद्म पुरस्कार
पद्म पुरस्कार

कोरोना के चलते साल 2020 में पद्म पुरस्कारों का वितरण नहीं किया जा सका था. इसलिए इस वर्ष दोनों साल के पद्म विजेताओं को एक साथ सम्मानित किया जा रहा है. इस कड़ी में आज राष्ट्रपति भवन में पर्यावरणविद् डॉ. अनिल प्रकाश जोशी को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया.

देहरादून: उत्तराखंड की पांच विभूतियों को पद्म पुरस्कारों से नवाजा गया है. आज नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हेस्को प्रमुख पर्यावरणविद् डॉ.अनिल प्रकाश जोशी को पद्मभूषण, पर्यावरणविद कल्याण सिंह और डॉ.योगी एरन को पद्श्री से सम्मानित किया गया. वहीं, मंगलवार को चिकित्सा क्षेत्र में डॉ. भूपेंद्र कुमार सिंह और किसान प्रेम चंद शर्मा को पद्श्री से सम्मानित किया जाएगा.

सीएम ने दी बधाई: सीएम पुष्कर सिंह धामी ने अनिल प्रकाश जोशी को पद्म भूषण, पर्यावरणविद् एवं मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत और डॉ. योगी एरन को पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर बधाई एवं शुभकामना दी है.

पद्म पुरस्कारों से सम्मानित हुईं उत्तराखंड की विभूतियां.

मुख्यमंत्री ने कहा कि अनिल प्रकाश जोशी को पद्म भूषण तथा कल्याण सिंह रावत तथा डॉ. योगी एरन को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किए जाने से राज्य को भी सम्मान मिला है. उन्होंने कहा कि इससे पर्यावरण एवं समाज सेवा के क्षेत्र में इन लोगों के द्वारा किये गये प्रयासों को तो सराहना मिली ही है, राज्य की पहल को भी बल मिला है.

नदियों को बचाने के अभियान के लिए डॉ. जोशी को पद्मभूषण: हेस्को के प्रमुख डॉक्टर अनिल जोशी ने पर्यावरण पारिस्थतिकी और ग्राम्य विकास के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया. उन्होंने इस दिशा में काफी काम भी किया. पर्यावरण पारिस्थितिकी और ग्राम्य विकास से जुड़े मुद्दों और नदियों को बचाने के लिए चलाए जा रहे आंदोलन से देशभर का ध्यान खींचने के कारण डॉक्टर जोशी को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया.

पुरस्कार सामूहिक प्रयास को समर्पित: डॉ.जोशी ने इस पुरस्कार को सामाजिक, प्रकृति और पर्यावरण के लिए किए जा रहे सामूहिक प्रयासों को समर्पित किया है. डॉक्टर जोशी संदेश देना चाहते हैं कि जो कोई हिमालय का किसी भी रूप में उपभोग कर रहा है, बदले में हिमालय को कुछ वापस भी करे. डॉ.जोशी हमेशा जल, जंगल, प्राण वायु आदि के बदले सकल पर्यावरण उत्पाद की वकालत करते रहे हैं.

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ग्राम्य विकास को आर्थिकी से जोड़ने के पक्षधर: डॉक्टर अनिल जोशी ग्राम्य विकास को आर्थिकी से जोड़ना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने कई उदाहरण भी पेश किए हैं. पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री भी मिल चुका है. 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने डॉक्टर अनिल जोशी को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया था.

मैती आंदोलन के लिए कल्याण रावत को पद्मश्री: उत्तराखंड के एक चिंतक कल्याण रावत ने मैती आंदोलन के जरिये अनूठी परंपरा को जन्म दिया. पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई वर्षों से काम कर रहे कल्याण सिंह रावत ने उत्तराखंड में मैती आंदोलन के जरिये पर्यारण संरक्षण की दिशा में एक अनूठी परंपरा को जन्म दिया. आज कल्याण सिंह रावत के प्रयासों की चर्चा न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी हो रही है.

ये है मैती आंदोलन: उत्तराखंड में दुल्हन के माता-पिता के घर को उसका मैत यानी मायका कहते हैं. मैती आंदोलन के तहत गांव में जब किसी लड़की की शादी होती है तो विदाई के समय दूल्हा-दुल्हन को एक फलदार पौधा दिया जाता है. वैदिक मंत्रों के साथ दूल्हा इस पौधे को रोपता है. उसकी जीवन संगिनी दुल्हन इसे पानी से सींचती है.

दुल्हन की सहेलियों को दूल्हा देता है पैसे: इस पौधे की देखभाल करने के लिए दूल्हा, दुल्हन की सहेलियों को कुछ पैसे देता है. इन पैसों का उपयोग पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में किया जाता है. इसके साथ ही समाज के निर्धन बच्चों की पढ़ाई में भी ये पैसे खर्च किए जाते हैं. दुल्हन की सहेलियां मैती बहन कही जाती हैं.

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1994 में शुरू किया मैती आंदोलन: कल्याण सिंह रावत ने पर्यावरण सुरक्षा और जागरूकता के लिए 1994 में चमोली से मैती आंदोलन शुरू किया था. तब कल्याण सिंह रावत राजकीय इंटर कॉलेज ग्वालदम में जीव विज्ञान के प्रवक्ता थे.

कौन हैं कल्याण सिंह रावत: मैती आंदोलन के प्रणेता एवं पर्यावरणविद कल्याण सिंह रावत का जन्म 19 अक्टूबर 1953 को उत्तराखंड में हुआ था. जीव-विज्ञान के अध्यापक के रूप में वे उत्तराखंड में विभिन्न स्थानों पर नियुक्त रहे और स्थानीय लोगों को पर्यावरण संवर्धन और वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया. उनके द्वारा 1994 में शुरू किया गया मैती आंदोलन प्रकृति एवं पेड़ों से भावनात्मक लगाव पर आधारित है तथा पेड़ों को रोपने के साथ उनके संरक्षण पर जोर देता है. उनके द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन आज भारत के 18 राज्यों समेत विश्व के अनेक देशों में अपनी जड़ें जमा चुका है.

कौन हैं डॉक्टर अनिल जोशी: अनिल जोशी पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. डॉक्टर जोशी ने हिमालयन पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संस्थान (हेस्को) की स्थापना की है. पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2006 में पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ. पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें पद्मश्री सम्मान प्रदान किया था. उन्हें जमनालाल बजाज अवॉर्ड भी मिला है. इसके अलावा उन्हें अशोका फेलोशिप, द वीक मैन ऑफ द एयर और आईएससी जवाहर लाल नेहरू अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.

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कोटद्वार में हुआ जन्म: अनिल जोशी का जन्म स्थान पौड़ी जनपद के कोटद्वार में हुआ. उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री बॉटनी (वनस्पति विज्ञान) में हासिल की और डाक्टरेट की उपाधि इकोलॉजी में ली. उन्होंने अपने करियर की शुरूआत 1979 में कोटद्वार डिग्री कॉलेज में बतौर प्राध्यापक की. इसके बाद हेस्को के नाम से एनजीओ बनाया. जोशी ने संस्था के माध्यम से पर्यावरण के संरक्षण और विकास के साथ कृषि क्षेत्र में शोध और अध्ययन किए.

Last Updated :Nov 8, 2021, 9:37 PM IST
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