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सावन की पूजा में ब्रह्म कमल का विशेष महत्व, नंगे पांव ग्रामीण हिमालय से लाते हैं 'देव पुष्प'

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Published : Aug 8, 2020, 6:28 PM IST

Updated : Aug 9, 2020, 4:02 PM IST

brahma kamal
ब्रह्म कमल

उत्तरकाशी जिले में सावन के महीने में ग्रामीण हिमालय से ब्रह्म कमल लाते हैं. जिसे देवी-देवताओं को चढ़ाते हैं. जिसके बाद मेहमानों और मायके आई बेटियों को भेंट किया जाता है. जो सुख-समृद्धि का भी प्रतीक माना जाता है. वहीं, वास्तुदोष करने के साथ बुरी नजरों से भी बचाता है.

उत्तरकाशीः उत्तराखंड को कुदरत ने प्राकृतिक सुंदरता के साथ बहुमूल्य वन संपदा से नवाजा है. जिनमें हिमालयराज के ताज को सुशोभित करने वाला ब्रह्म कमल भी शामिल हैं. जो 11 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है. दुर्लभ प्रजाति के ब्रह्म कमल को उत्तराखंड के राज्य पुष्प से नवाजा गया है. इस ब्रह्म कमल का विशेष धार्मिक महत्व है, तभी तो सावन के महीने में स्थानीय लोग इसे लाने के लिए नंगे पांव हिमालय की ओर जाते हैं. जहां से ब्रह्म कमल को लाकर देवी-देवताओं को चढ़ाते हैं. इतना ही नहीं ये औषधीय गुणों से भरपूर होता है. आइए आपको ब्रह्म कमल की विशेषता से रूबरू कराते हैं.

नंगे पांव ग्रामीण हिमालय से लाते हैं 'देव पुष्प'.

उत्तरकाशी जिले में ब्रह्म कमल को सोमेश्वर देवता का पुष्प माना जाता है. क्योंकि, उत्तरकाशी के उपला टकनौर और मोरी के ऊंचाई वाले इलाकों में भगवान सोमेश्वर पूजे जाते हैं. मुखबा गांव के सोमेश्वर देवता के पुजारी सुधांशु सेमवाल का कहना है कि जिले के ऊंचाई इलाकों में सावन महीने में होने वाले हारदुधु मेले के अवसर पर ग्रामीण इस पुष्प को लाते हैं और सबसे पहले भगवान सोमेश्वर को चढ़ाते हैं. उसके बाद ही ग्रामीण इसे अपने घरों के लिए लाते हैं.

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राज्य पुष्प ब्रह्म कमल.

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इतना ही नहीं जब तक पुष्प को मंदिर में चढ़ाया नहीं जाता, तब तक इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है. पहाड़ों में होने वाले थौलू मेलों में घर आए मेहमान और मायके आई बेटियों को ब्रह्म कमल का फूल भगवान सोमेश्वर की भेंट के स्वरूप में दिया जाता है. माना जाता है कि इस भेंट से उनके घर में भी सुख समृद्धि बनी रहती है.

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सोमेश्वर देवता को ब्रह्म कमल चढ़ाते ग्रामीण.

उत्तराखंड में पाई जाती है 24 प्रजातियों की ब्रह्म कमल
वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञ और शिक्षक डॉ. शम्भू नौटियाल का कहना है कि ब्रह्म कमल को ब्रह्मा जी और नंदा देवी का पसंदीदा पुष्प माना जाता है. इसके विश्व में 410 प्रजातियां पाई जाती है. जिसमें से 61 भारत में और अकेले उत्तराखंड में 24 प्रजातियां ब्रह्म कमल की पाई जाती है.

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बुग्यालों में ब्रह्म कमल.

कैंसर और खांसी-जुकाम की बीमारी में दवाई का करता है काम
डॉ. शम्भू नौटियाल ने बताया कि ब्रह्म कमल का प्रयोग कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी के इलाज के लिए भी किया जाता है. साथ ही इसके सूखने के बाद अगर इसके रस को पिया जाए तो इससे बदन दर्द समेत खांसी-जुखाम जैसी बीमारियां ठीक होती है.

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मेहमानों को ब्रह्म कमल भेंट करते ग्रामीण.

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वास्तुदोष और बुरी नजरों से बचाता है ब्रह्म कमल
आज भी भोटिया जाति के लोग और ऊंचाई वाले इलाकों के ग्रामीण ब्रह्म कमल को घरों की चौखट के ऊपर और देवालय में रखते हैं. माना जाता है कि इसे घर के चौखट पर लगाने से वास्तुदोष दूर होता है और अन्य बुरी नजरों से भी बचाता है.

बता दें कि ब्रह्म कमल का वैज्ञानिक नाम साउसिव्यूरिया ओबलावालाटा (Saussurea obvallata) है. जो एस्टेरेसी कुल का पौधा है. ब्रह्म कमल हिमालय में 11 हजार से 17 हजार फुट की ऊंचाइयों पर पाया जाता है. हेमकुंड समेत कई हिमालयी इलाकों में यह स्वाभाविक रूप से दिखाई देता है. केदारनाथ और बदरीनाथ के मंदिरों में ब्रह्म कमल चढ़ाने की परंपरा है.

Last Updated :Aug 9, 2020, 4:02 PM IST
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