ETV Bharat / state

ज्ञानवापी मामलाः शिवलिंग के दावे और चौथी शताब्दी के चिह्नों का 'कनेक्शन'

author img

By

Published : May 28, 2022, 3:40 PM IST

काशी का ज्ञानवापी मामला इन दिनों देश और दुनिया में चर्चा है. ऐसे में कोई यहां शिवलिंग मिलने का दावा कर रहा है तो कोई फव्वारे के अवशेष बता रहा है. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने शिवलिंग के दावों की हकीकत जानने की कोशिश की. पेश है यह खास रिपोर्ट.

Etv bharat
काशी में पुरातात्विक उत्खनन में मिले अवशेष अवमुक्तेश्वर के प्रमाण को मजबूत कर रहे.

वाराणसीः ज्ञानवापी में मिले धार्मिक चिह्नों को लेकर दोनों पक्ष अपनी अलग- अलग दलीलें दे रहे हैं. आज हम उस साक्ष्य की बात करने जा रहे हैं जिसका प्रमाण पुरातात्विक सर्वेक्षण हमेशा से देता आया है. जी हां, वाराणसी में किये गए पुरातात्विक उत्खनन में मिले अवशेष ज्ञानवापी में मिले धार्मिक चिन्ह के दावे को ठोस कर रहे हैं. 1960 से यहां अब तक कई बार हुई खुदाई में ये हिंदू चिह्न मिले हैं. चलिए जानते हैं इन चिह्नों और इनसे जुड़ी हकीकत के बारे में.

इस बारे में पुरातत्विक अधिकारी सुभाष यादव ने बताया कि सबसे पहले वाराणसी के राजघाट में 1960 से लेकर 1969 तक खुदाई चली. उस खुदाई से इस तथ्य का खुलासा हुआ कि ईसापूर्व 12वीं शताब्दी से लेकर आज तक काशी में मानव जीवन रहा है.इसके बाद एक बार फिर 2012 और 2014 में खुदाई हुई. खुदाई का परिक्षेत्र भी काशी विश्वनाथ मंदिर यानी गौदोलिया से लेकर राजघाट तक रहा. उस उत्खन्न में भी पूजा की सामग्री, घड़े, हवन कुंड मिले. बड़ी बात ये है कि राजघाट में खुदाई में उस काल में चलने वाले मुहरे मिलीं. ये मुहरे उस दौर के व्यापार में काम आती थीं. इन मुहरों पर अवमुक्तेश्वर लिखा हुआ था. इसके साथ ही नंदी और त्रिशूल की आकृति बनी हुई थी. जब इन मुहरों पर पुरातात्विक विभाग ने शोध किया तो पता चला कि ये मोहरें चौथी शताब्दी की हैं और उस शताब्दी में इन्ही मुहरों से व्यापार होता था.

काशी में पुरातात्विक उत्खनन में मिले अवशेष अवमुक्तेश्वर के प्रमाण को मजबूत कर रहे.

बीएचयू की इतिहासकार अनुराधा सिंह ने बताया कि काशी में ज्ञानवापी का इतिहास गुप्त काल से ही मिलता है. गढ़वाल घाटी सभ्यता में भी ज्ञानवापी का जिक्र मिलता है. उस वक्त मुहरों से ही व्यापार हुआ करता था. इसका जिक्र धार्मिक ग्रंथ और इतिहास की किताबों में भी मिलता है.

वहीं, काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि विश्वेश्वर ही अवमुक्तेश्वर कहलाते हैं. माता पार्वती और भोलेनाथ काशी की धरती पर आए तो उस वक्त शक्ति ने अन्नपूर्णा रूप धारण कर काशी को अपना स्नेह दिया तो वही बाबा भोलेनाथ अवमुक्तेश्वर रूप में यहां विराजमान हो गए. उनके द्वारा यहां प्राणियों को मुक्ति दिए जाने के कारण ही उन्हें अवमुक्तेश्वर नाम से पुकारा गया.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.