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बनारस के इस कब्रिस्तान में 'उमराव जान' को किया गया था सुपुर्द-ए-खाक

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Published : Dec 26, 2020, 9:12 PM IST

'कितने आराम से हैं कब्र में सोने वाले, कभी दुनिया में था फिर फिरदौस में, अब लेकिन कब्र किस अहले वफा की है अल्लाह-अल्लाह... ये पंक्तियां हैं उमराव जान अदा की, जिन्हें दुनिया एक नृत्यांगना के रूप में जानती है. आज उमराव जान की पुण्यतिथि है. इस मौके पर ईटीवी भारत उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने पहलुओं से आपको रूबरू कराने जा रहा है. देखिए ये खास रिपोर्ट...

umrao jaan death anniversary special report
उमराव जान की पुण्यतिथि पर विशेष रिपोर्ट.

वाराणसी : इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं... मशहूर फिल्म 'उमराव जान' का यह गीत आज भी लोगों के जेहन में ताजा है, लेकिन शायद बहुत कम लोग यह जानते हैं कि जिस मशहूर नृत्यांगना उमराव जान पर यह फिल्म बनाई गई थी, वह धर्म नगरी बनारस के एक कब्रिस्तान में दफन है. जी हां, उमराव जान की कब्र वाराणसी के फातमान कब्रिस्तान में है, जिसे अब यूपी गवर्नमेंट की तरफ से एक मकबरे का रूप दिया जा चुका है. आज उमराव जान की 83वीं पुण्यतिथि है. इस मौके पर उनके चाहने वालों ने उनके कब्र पर पहुंचकर फातिहा पढ़ा और मोमबत्तियां जलाकर उन्हें याद किया.

स्पेशल रिपोर्ट...
2004 में कब्र की हुई खोज

दरअसल, लगभग 15 साल पहले 2004 में बनारस के दालमंडी इलाके के रहने वाले डर्बीशायर क्लब के अध्यक्ष शकील अहमद जादूगर ने उमराव जान की कब्र को खोज निकाला था. उस वक्त जमीन के लेवल पर मौजूद एक कपड़े में उर्दू में उमराव जान और उनकी मृत्यु की जानकारी लिखी हुई थी, जिसे पढ़ने के बाद उन्होंने मुहिम शुरू की और तमाम विवादों के बीच आखिरकार उत्तर प्रदेश सरकार ने इस स्थान पर एक मकबरे का निर्माण करवाया. मिर्जापुर के लाल पत्थरों से तैयार हुआ यह मकबरा अब पूरे कब्रिस्तान में बिल्कुल अलग ही दिखाई देता है.

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उमराव जान की कब्र.
फैजाबाद में जन्म, बनारस में इंतकाल

शकील अहमद जादूगर का कहना है कि फैजाबाद में जन्मी उमराव जान के बचपन का नाम अमीरन बीवी था. लखनऊ आने के बाद उनका नाम उमराव जान पड़ा. यहीं पर उन्होंने संगीत और नृत्य की शिक्षा दीक्षा ली और उसके बाद बेहतरीन फनकारा के रूप में लोगों के सामने हैं, लेकिन जिंदगी के अंतिम समय में जब वह बिल्कुल अकेली पड़ गईं, तब उन्होंने बनारस का रुख किया और यहीं पर गोविंदपुरा इलाके में रहकर जीवन के अंतिम समय काटे. 26 दिसंबर 1937 को उन्होंने अंतिम सांस ली, जिसके बाद उनके करीबियों ने उन्हें बनारस के इस कब्रिस्तान में सुपुर्द ए खाक किया. शकील अहमद का कहना है कि बड़ी मशक्कत के बाद यहां पर यूपी सरकार की तरफ से इस मकबरे का निर्माण हुआ और अब इसे और भी भव्य रूप देने का प्रयास कर रहे हैं.

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कब्र पर जुटे लोग.
जीवन पर बनी कई फिल्में

बता दें कि उमराव जान की जिंदगी और उनके संघर्षों पर आधारित कई फिल्में बनीं, जिसमें कभी ऐश्वर्या राय तो कभी अभिनेत्री रेखा ने उनके किरदार को जीवंत करने का प्रयास किया. फैजाबाद में ही उमराव जान का जन्म हुआ, लेकिन बनारस में उनका इंतकाल हुआ. उमराव जान के निर्देशक मुजफ्फर अली ने उनकी पूरी जिंदगी को रुपहले पर्दे पर पेश कर दुनिया के सामने उनके संघर्षों की कहानी को बयां किया और उमराव जान का नाम भारतीय सिनेमा की वजह से पूरी दुनिया में अमर हो गया. आज भी उनके चाहने वाले उनकी पुण्यतिथि पर हर साल यहां पहुंचकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

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