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वन स्टॉप सेंटर बन रहा महिलाओं की ताकत, अब तक 3000 से ज्यादा को मिला न्याय

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Published : Nov 25, 2022, 9:38 PM IST

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अब वह नहीं सहती हैं अत्याचार, खुलकर करती हैं प्रतिकार. जी हां ये वाक्य वर्तमान नारी के ऊपर बिल्कुल सटीक बैठती है, जो अब डरती नहीं है, बल्कि अपने ऊपर हो रहे अत्याचार का सामना करती हैं. महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और उन पर हो रही हिंसा को समाप्त करने के उद्देश्य से हर साल 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है.

वाराणसी : अब वह नहीं सहती हैं अत्याचार, खुलकर करती हैं प्रतिकार. जी हां ये वाक्य वर्तमान नारी के ऊपर बिल्कुल सटीक बैठती है, जो अब डरती नहीं है, बल्कि अपने ऊपर हो रहे अत्याचार का सामना करती हैं. महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और उन पर हो रही हिंसा को समाप्त करने के उद्देश्य से हर साल 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (International Day for the Elimination of Violence against Women:) मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य महिलाओं पर हो रही हिंसा को रोकने के साथ उन्हें सशक्त बनाना है.


आज इसी क्रम में ईटीवी भारत आपको वाराणसी के पं. दीनदयाल उपाध्याय चिकित्सालय (Pandit Deendayal Upadhyay Hospital) परिसर स्थित वन स्टॉप सेंटर ((one stop center)) से रूबरू करा रहे हैं, जो छह वर्ष में तीन हजार से अधिक ऐसी महिलाओं को न्याय दिला चुका है जो शोषण का शिकार हो रही थीं. सबसे पहले हम बात करते हैं शकुंतला देवी की. शकुन्तला देवी (परिवर्तित नाम) उम्र 65 वर्ष बताती हैं कि सात वर्ष पूर्व पति के निधन के बाद इकलौते बेटे और बहू ने उन्हें इस कदर प्रताड़ित किया कि उन्हें अपना घर छोड़कर मायके में शरण लेनी पड़ी. रिश्तेदारों ने बहू-बेटे को काफी समझाने की कोशिश की पर उनपर कोई फर्क नहीं पड़ा. शुरू में तो वह इसे अपनी किस्मत का दोष मानकर बर्दाश्त करती रहीं, पर बाद में उन्हें लगा कि उन्हें इस अत्याचार के खिलाफ लड़ना चाहिए. इसके बाद वह वन स्टॉप सेंटर (one stop center) पहुंचीं और केस दर्ज कराया. नतीजा यह हुआ कि बेटा-बहू उन्हें सम्मान के साथ घर ले आये. अब वह अपने परिवार में काफी खुशहाल हैं.

सिगरा की रहने वाली संगीता (परिवर्तित नाम) के पति अक्सर ही नशे में धुत्त होकर घर लौटते और उसे पीटते थे. हद तो तब हो गई जब घर का खर्च भी उठाना बंद कर दिया. तब संगीता ने वन स्टॉप सेंटर (one stop center) की मदद ली. सेंटर में उनके पति को बुलाया गया. सुधर जाने अथवा कार्रवाई के लिए तैयार रहने की बात समझाई. नतीजा हुआ कि संगीता के पति ने नशा करना छोड़ने के साथ ही घर की जिम्मेदारियां संभालनी शुरू कर दीं. संगीता बताती हैं आज उनके जीवन में अगर खुशहाली है तो वह वन स्टॉप सेंटर (one stop center) की देन है. शकुन्तला और संगीता तो महज एक नजीर हैं.


अब तक 3000 से ज्यादा महिलाओं को मिला न्याय : वन स्टॉप सेंटर की प्रभारी रश्मि दुबे (Rashmi Dubey in charge of One Stop Center) ने बताया कि इस केन्द्र की स्थापना वर्ष 2016 में हुई थी. मकसद महिलाओं को शोषण से बचाने, न्याय दिलाने के साथ ही उन्हें कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूक करना है. साथ ही ऐसी महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में भी यह केंद्र मदद करता है. वर्ष 2016 में आठ मार्च को इस केंद्र की शुरूआत हुई और 31 मार्च 2016 तक 277 महिलाओं ने उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई. अप्रैल 2017 से मार्च 2018 के बीच 425 महिलाओं ने यहां उत्पीड़न की शिकायत की. अप्रैल 2018 से मार्च 2019 के बीच 816, अप्रैल 2019 से मार्च 2020 में 559, अप्रैल 2020 से मार्च 2021 में 457, अप्रैल 21 से मार्च 22 के बीच 417 के अलावा अप्रैल 2022 से अब तक 268 महिला उत्पीड़न की शिकायतें यहां दर्ज हुईं, जिन्हें न्याय दिलाया गया.


भरोसे से आया बदलाव : जिला प्रोबेशन अधिकारी सुधाकर शरण पाण्डेय (District Probation Officer Sudhakar Sharan Pandey) कहते हैं कि यह बदलाव अचानक यूं ही नहीं आया. दरअसल शिकायतों को लेकर थाना-चौकियों पर जाने के बजाय महिलाओं को वन स्टॉप सेंटर पर जाना इसलिए ज्यादा सुविधाजनक लगता है, क्योंकि वहां उन्हें एक पारिवारिक माहौल मिलता है. यहां तैनात महिला अधिकारियों से उन्हें अभिभावक जैसा व्यवहार मिलता है. वह उनकी पीड़ा को पूरी आत्मीयता से सुनती हैं और मदद भी करती हैं. यही कारण है कि अब महिलाएं शोषण के खिलाफ यहां शिकायतें दर्ज करा रहीं है. उन्हें भरोसा होता है कि यहां से उन्हें न्याय अवश्य मिलेगा. वन स्टाप सेंटर का काम महिलाओं को न्याय दिलाने के साथ ही जीवन में खुशहाली लाना है. इस दिशा में यह केंद्र पूरी तरह प्रयासरत है.

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