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अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस 2022: जीवन में आए तूफानों से भी नहीं रुके सेवा के कदम, मिसाल पेश कर रहीं हैं नर्सिंग सेवा में जुटीं ये महिलाएं

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Published : May 12, 2022, 11:00 AM IST

'कर्म ही प्रधान है, सेवा ही पहचान है', विश्वभर में आज (12 मई) अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जा रहा है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में मां के स्वरूप में स्नेहपूर्ण और फिक्र के साथ हर किसी की देखभाल और परवाह करने के शब्द को ही नर्स कहा जाता है. दुनिया की सबसे प्रसिद्ध नर्स, फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन पर इस दिवस को मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस पर देखें ETV भारत की ये खास रिपोर्ट...

अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस 2022
अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस 2022

वाराणसी: रात के अंधेरे में लालटेन लेकर घायलों की सेवा करने के साथ-साथ महिलाओं को नर्सिंग की ट्रेनिंग देने वाली फ्लोरेंस नाइटेंगल को भला कौन नहीं जानता. क्रीमिया युद्ध में घायल सैनिकों के उपचार में अहम भूमिका निभाने वाली फ्लोरेंस नाइटेंगल को 'लेडी विद द लैम्प' के नाम से भी जाना जाता है. हर वर्ष उनकी याद में 12 मई को 'अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस' मनाया जाता है. फ्लोरेंस नाइटेंगल तो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके पदचिन्हों पर चलते हुए नर्सिंग सेवा कर रहीं महिलाओं की संख्या अनगिनत है. आध्यात्मिक नगरी काशी में भी नर्सिंग सेवा में जुटी ऐसी ही महिलाओं ने अपनी अलग पहचान बना रखी है.

फिर भी नहीं रुके कदम
मरीजों की सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना चुकीं नर्स सुनीता सिंह के जीवन में आये तमाम तूफान भी उनके कदमों को रोक न सके. कोविड काल में अपनी जान पर खेल कर मरीजों के लिए किए गए योगदान को जहां एक नजीर के तौर पर देखा जाता है. वहीं, किसी भी मरीज की अपने परिवार के सदस्य की तरह सेवा करना सुनीता को औरों से अलग पहचान दिलाता है.

मण्डलीय चिकित्सालय में नर्स सुनीता सिंह बताती हैं कि बचपन से ही उनके मन में मरीजों की सेवा करने का भाव था. यही कारण था कि उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की ताकि अपने सपनों को वह साकार कर सकें. उनका सपना सच होता भी नजर आया जब उन्हें नर्स की नौकरी मिल गई. ड्यूटी को वह पूजा मान मरीजों की सेवा में जुट गई. वहीं, बाकी समय वह अपने परिवार की जिम्मेदारियों को संभालने में गुजार देती थी. सबकुछ अच्छा चल रहा था, परिवार में बेटा निशांत और बेटी तृप्ति के साथ वह खुशहाल जीवन गुजार रही थी. तभी उनके जीवन में अचानक तूफान आ गया. साल 2013 में उनके पति आशीष सिंह की हार्ट अटैक से हुई मौत ने उनका सारा सुख-चैन छीन लिया. इस हादसे से वह काफी दिनों तक सदमें में रहीं, लगा कि सबकुछ छिन गया. लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्होंने हिम्मत जुटाई और जीवन को पटरी पर धीरे-धीरे लाने का प्रयास करने के साथ ही पुनः मरीजों की सेवा में जुट गई. मरीजों की सेवा वह इस भावना के साथ करती है, जैसे वह उनके परिवार का ही सदस्य हो.

मरीजों की सेवा ही जीवन का लक्ष्य
गाजीपुर जिले की रहने वाली पूनम चौरसिया राजकीय महिला जिला चिकित्सालय में स्टाफ नर्स है. नर्स पूनम बताती हैं कि पढ़ाई में वह शुरू से ही अव्वल रहीं. उनके सामने अन्य क्षेत्रों में भी कार्य करने के अवसर थे पर बचपन से ही उन्होंने नर्स बनने का सपना देख रखा था. इंसान की सेवा को ही सबसे बड़ा धर्म मानने वाली पूनम बताती है कि नर्स की नौकरी पाने के बाद यह सपना साकार हो गया. वह जिला महिला चिकित्सालय के सर्जरी वार्ड में ड्यूटी करती हैं.

ऑपरेशन के बाद दर्द से कराहती प्रसूताओं की सेवा करने से उन्हें एक अलग तरह का सुख मिलता है. वह बताती हैं कि कभी-कभी ऐसी भी प्रसूताएं उनके वार्ड में भर्ती होती है, जिनके परिवार में कोई भी नहीं होता, तब उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है. ऐसे मरीजों का उन्हें अलग से ख्याल रखना होता है. मरीज और नर्स के बीच शुरू हुआ ऐसा रिश्ता बाद में ऐसे आत्मीय रिश्ते में बदल जाता है कि अस्पताल से घर जाने के बाद भी मरीज और उसके परिवार के लोग उनके संपर्क में रहते हैं.

मरीज की सुरक्षा हमारे लिए सर्वोपरि
सुमिता शादमान राजकीय महिला जिला चिकित्सालय में स्टाफ नर्स हैं. उनकी डयूटी अधिकांश ऑपरेशन थियेटर में रहती है. वह बताती है कि यही एक ऐसी नौकरी है जिसमें परिवार की जिम्मेदारियों को संभालने के साथ-साथ समाज सेवा का भी भरपूर अवसर मिलता है. यही वजह थी कि उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की और इस सेवा में जुट गई. वह बताती हैं कि ऑपरेशन थिएटर में घबरा रही महिलाओं को ढांढस देने के साथ वहां उन्हें अपने परिवार के सदस्य जैसा माहौल देकर उसकी पीड़ा को कम करने का प्रयास करती है. उनकी पूरी कोशिश होती है कि मरीज उनके सेवा व समर्पण भाव को याद रखे.

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