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एचआईवी पीड़ित अध्यापक को हाई कोर्ट से मिली राहत, अंतर्जनपदीय स्थानांतरण को लेकर सचिव को निर्देश

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 2, 2024, 9:08 PM IST

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एचआईवी पीड़ित अध्यापक

एचआईवी पीड़ित अध्यापक (HIV affected teacher) को हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने एचआईवी से पीड़ित अध्यापक के अंतर्जनपदीय स्थानांतरण को लेकर सचिव को निर्देश दिया है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एचआईवी से पीड़ित बेसिक शिक्षा परिषद के सहायक अध्यापक को राहत देते हुए उसके अंतर्जनपदीय स्थानांतरण के आवेदन पर सचिव बेसिक शिक्षा परिषद को निर्णय लेने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि एचआईवी गंभीर बीमारी है, इसलिए सचिव याची के प्रत्यावेदन पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए आदेश पारित करें. एचआईवी पीड़ित अध्यापक की याचिका पर न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला ने याची के अधिवक्ता नवीन कुमार शर्मा को सुनकर यह आदेश पारित किया.

मामले के अनुसार, याची ने 2 जून 2023 को अंतर्जनपदीय स्थानांतरण के लिए जारी शासनादेश के तहत अपना स्थानांतरण बहराइच से संभल या बदायूं किए जाने के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था. 2 जून के शासनादेश में यह प्रावधान है कि जो अध्यापक 27 दिसंबर 2016 को जारी सूची में आने वाली गंभीर बीमारियों से पीड़ित है, उनके आवेदन पर उनको 20 वेटेज मार्क्स दिए जाएंगे. लेकिन, याची के आवेदन पर उसे कोई अंक नहीं दिया गया और उसका अंतर्जनपदीय स्थानांतरण का आवेदन खारिज हो गया, जिसे उसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी.

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याची के अधिवक्ता का कहना था कि 27 जून 2016 को जारी बीमारियों की सूची में एचआईवी को शामिल नहीं किया गया है. इसलिए याची के आवेदन पर उसे कोई अंक नहीं मिला और उसका स्थानांतरण नहीं हो सका. अधिवक्ता का कहना था कि एचआईवी को गंभीर बीमारियों की सूची में न शामिल करना सरकार का मनमाना रवैया है. क्योंकि यह सर्वविदित है कि एचआईवी एक गंभीर बीमारी है और इससे पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन नहीं जी पता है.

दूसरी ओर बेसिक शिक्षा परिषद के अधिवक्ता का कहना था कि याची ने अपने आवेदन में बीमारी को लेकर कोई दावा नहीं किया है. अब स्थानांतरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता है. याची के अधिवक्ता का कहना था कि बेसिक एजुकेशन सर्विस रूल और टीचर्स पोस्टिंग रूल्स के प्रावधानों के अनुसार विशेष परिस्थितियों में सचिव बेसिक शिक्षा परिषद को निर्णय लेने का अधिकार है. कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद सचिव को निर्देश दिया है कि वह याची के प्रत्यावेदन पर नए सिरे से सहानुभूति पूर्वक विचार कर निर्णय ले.

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