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इलाहाबाद HC ने कहा मृतक आश्रित सिम्पैथी सिंड्रोम नहीं, संकट के समय परिवार के लिए एक न्यूनतम राहत

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Published : Nov 27, 2021, 9:35 PM IST

'संकट के समय परिवार के लिए एक न्यूनतम राहत'
'संकट के समय परिवार के लिए एक न्यूनतम राहत'

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि मृतक आश्रित नियुक्ति बोनांजा, गिफ्ट या सिम्पैथी सिंड्रोम नहीं है.ये अचानक आये परिवार पर संकट के लिए न्यूनतम राहत है. परिवार की आर्थिक स्थिति और जरूरत का आंकलन नियुक्ति का आधार है.

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति बोनांजा, गिफ्ट या सिंपैथी सिंड्रोम नहीं है. ये कमाऊ सदस्य की मौत से परिवार के जीवनयापन पर एकाएक आये संकट में न्यूनतम राहत योजना है.

कोर्ट ने कहा कि लोक पदों पर नियुक्ति में सभी को समान अवसर पाने का अधिकार है. मृतक आश्रित नियुक्ति इस सामान्य अधिकार का अपवाद मात्र है, जो विशेष स्थिति से निपटने की योजना है.

कोर्ट ने सहायक अध्यापक पिता की मौत के समय 8 साल के याची को बालिग होने पर बिना सरकार की छूट लिए की गई नियुक्ति को निरस्त करने के मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने एकल पीठ के आदेश पर हस्तक्षेप से इंकार करने को सही करार दिया. और इसकी चुनौती में दाखिल विशेष अपील को खारिज कर दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति एस पी केसरवानी और न्यायमूर्ति विकास की खंडपीठ ने नरेन्द्र कुमार उपाध्याय की अपील पर दिया है. कोर्ट ने कहा कि मृतक आश्रित की नियुक्ति के जरिए परिवार की जीविका चलती रहे, इसलिए की जाती है. यह उत्तराधिकार में नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है.

कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को परिवार की आर्थिक स्थिति का आंकलन कर अचानक आये संकट में राहत देने के लिए जरूरी होने पर नियुक्ति देने का अधिकार है. आश्रित नियुक्ति के लिए दबाव नहीं डाल सकता.

कर्मचारी की मौत परिवार की जीविका का श्रोत नहीं मानी जा सकती. जीविका चलाने के लिए जरूरी होने पर ही नियुक्ति की जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का किसी को निहित अधिकार नहीं है बल्कि तुरंत मदद के लिए है. लंबे अंतराल के बाद नियुक्ति की योजना नहीं है. सरकार ने पांच साल के भीतर अर्जी देने का नियम बनाया है. इसके बाद राज्य सरकार को अर्जी देने में विलंब से छूट देने का अधिकार है.

कोर्ट ने कहा मृतक आश्रित कोटे में श्रेणी या वर्ग विशेष या अपनी पसंद के पद पर नियुक्ति की मांग का अधिकार नहीं है. मालूम हो कि याची के पिता ज्ञान चंद्र उपाध्याय सहायक अध्यापक की सेवा काल में 7 जुलाई 91 को मौत हो गई थी.

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स्नातक के बाद याची ने आश्रित कोटे में 2007 में नियुक्ति की मांग की. हाईकोर्ट ने बीएसए जौनपुर को निर्णय लेने का निर्देश दिया. जिसके बाद उसने 31 मार्च 10 को बिना सरकार की अनुमति लिए नियुक्ति कर दी. याची प्राइमरी स्कूल सरैया ब्लॉक खुटहन, जौनपुर में नियुक्ति था. 5 मई 12 को याची को नोटिस जारी की गई कि नियमों के विपरीत नियुक्ति रद्द क्यों न की जाए. जवाब नहीं दिया तो बीएसए ने 14 अप्रैल 12 को याची की नियुक्ति निरस्त कर दी. जिसे चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. इसके खिलाफ विशेष अपील दाखिल की गई थी.

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