मेरठ: भारत देश 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. एक दौर वह भी था जब ब्रिटिश हुकूमत के बढ़ते जुल्म और ज्यादतियों से लोगों का दम घुटने लगा था. धीरे धीरे लोगों के अंदर क्रांति जन्म लेने लगी और 1857 में वही क्रांति देशभर में पहले एक गूंज में परिवर्तित हुई और देखते ही देखते शोला बनती चली गई. आंदोलन की पहली चिंगारी मेरठ से ही उठी थी. इसीलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ को क्रांतिधरा के तौर पर जाना जाता है.
10 मई 1857 को हुई थी विद्रोह की शुरुआत
इतिहास गवाह है कि 10 मई 1857 को मेरठ में सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ, जिस मेरठ को अंग्रेज खुद के लिए सबसे सुरक्षित छावनी मानते थे उसी मेरठ से विद्रोह का बिगुल फूंका गया. क्रान्तिधरा मेरठ में स्थापित स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में सिर्फ मेरठ की ही नहीं, बल्कि समूचे प्रदेश और देश की उन चिंगारियों से शोला बनने की एक एक कहानी दर्ज हैं.
संग्रहालय में 1947 तक की हर कहानी
मेरठ में 1857 की क्रांति से जुड़े तमाम साक्ष्य मौजूद हैं. मेरठ के स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में 'द लाइट हाउस' साप्ताहिक पत्र की दुर्लभ प्रतियां भी हैं. मेरठ से 1949, 1950, 1952 और 1953 में प्रकाशित अंग्रेजी के पत्र में तत्कालीन भारत के अलावा मेरठ की तमाम तस्वीरें समाहित हैं. इसके अलावा यहां इंडियन नेशनल आर्मी के सिपाहियों की वर्दी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस की दुर्लभ तस्वीरें, भारतीय महापुरुषों पर जारी डाक टिकट, पुराने सिक्के, महाभारत कालीन पॉटरी, सुभाषचंद्र बोस की वर्दी, 15 अगस्त, 1947 और 26 जनवरी, 1950 को जारी डाक टिकट भी यहां आपको देखने को मिलेगा.
संग्रहालय की दीवारों पर 1857 की क्रांति से संबंधित सभी छोटी बड़ी जानकारी अलग-अलग गैलरियों में कर्मबद्व ढंग से प्रस्तुत की गई हैं. सैनिकों के विद्रोह से लेकर उनको बंदी बनाने, उनके कोर्ट मार्शल तक की तमाम जानकारी यहां है. बता दें कि राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय का औपचारिक लोकापर्ण प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर 10 मई, 2007 को किया गया था.
स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति का उदगम स्थल है ये मंदिर
मेरठ में ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के भगवान शिव के धाम औघड़नाथ मंदिर को पूर्व में काली पल्टन मन्दिर के तौर पर जाना जाता था. छावनी क्षेत्र में स्थापित इसी मन्दिर से 10 मई 1857 को अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत हुई थी. 26 जनवरी और 15 अगस्त को सेना के अधिकारी और जिले के प्रशासनिक अधिकारी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के उद्गम स्थल पर आकर हर साल शहीदों की याद में मौन रखकर उन्हें नमन करते हैं, सच्ची श्रद्धांजलि देते हैं.
मंदिर के विशेष कुएं का है अपना अलग महत्व
उद्गम स्थल पर वो प्राचीन कुआं भी मौजूद है जिसमें अंग्रेजों की सेना में भर्ती भारतीय सैनिक युद्ध अभ्यास के दौरान पानी पीने आते थे. अंग्रेज सिपाहियों के लिए तो पानी की समुचित व्यवस्था रहती थी, लेकिन हिंदुस्तानी सिपाहियों को पानी पीने के लिए इस कुएं पर ही जाना होता था. यही वह स्थान है जहां एक साधु ने अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय सैनिकों को भड़काया था. गौरतलब है कि अंग्रेजों ने गाय व सूअर की चर्बी से निर्मित नया कारतूस लागू किया था. इस कारतूस को चलाने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था. इससे अंग्रेजों की देसी पलटन के हिंदू व मुस्लिम सैनिकों की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंची और इन कारतूसों को मुंह से खोलने का विरोध हुआ था. धीरे-धीरे यही विरोध एक दिन विद्रोह में तब्दील हुआ था.
मेरठ के विक्टोरिया पार्क भी रहा है प्रसिद्ध
मेरठ से 85 क्रांतिकारियों ने क्रांति की शुरुआत कर अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विद्रोह किया था. सभी को अंग्रेजों ने पकड़ लिया था और मेरठ कोतवाली सदर से विक्टोरिया पार्क जेल में शिफ्ट कर दिया गया था. आजादी के दीवानों को जैसे ही इस बात की खबर मिली तो उनका अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खून खौल उठा था, जिससे क्रांति की ज्वाला और धधक गई थी. बड़ी संख्या में क्रांतिकारियों ने विक्टोरिया पार्क जेल पर हमला कर 85 सैनिकों के साथ-साथ 839 अन्य क्रांतिकारियों को भी वहां से मुक्त करा लिया था.
शहीद स्मारक पर स्थापित है अमर जवान ज्योति
शहीद स्मारक पर देश की राजधानी में स्थापित अमर जवान ज्योति की तरह है. मेरठ के शहीद स्मारक पर भी अमर जवान ज्योति प्रज्ज्वलित है. मेरठ के खास संग्रहालय के अधीक्षक पतरु मौर्य कहते हैं कि क्रान्तिधरा के संग्रहालय में जानकारी का वह भंडार है जहां किसी को भी आकर न सिर्फ गर्व की अनुभूति होगी बल्कि तमाम जानकारी भी यहां मिल जाएगी कि कैसे यह देश गुलामी की जंजीरों से खुद को मुक्त करा पाया. वह कहते हैं कि इतिहास जानकर हम अपने पूर्वजों की गौरव गाथाओं को जान सकते हैं.