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अखिलेश यादव का मुजफ्फरनगर से मोह बढ़ने पर सहयोगी दल असहज, जानिए क्या है कारण

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Published : Jun 23, 2023, 7:10 PM IST

लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी दलों ने तेजी के साथ तैयारियां शुरू कर दीं हैं. भाजपा के अलावा सपा ने भी फतह के लिए कई रणनीतियों पर अमल करना शुरू कर दिया है.

मुजफ्फरनगर के सियासी हालात पर राजनीतिक विश्लेषकों ने अपनी बात रखी.
मुजफ्फरनगर के सियासी हालात पर राजनीतिक विश्लेषकों ने अपनी बात रखी.

मुजफ्फरनगर के सियासी हालात पर राजनीतिक विश्लेषकों ने अपनी बात रखी.

मेरठ : समाजवादी पार्टी ने जाटलैंड में आरएलडी बाहुल्य जिले मुजफ्फरनगर में अपना लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी बना दिया है. यह निर्णय पार्टी ने तब लिया जब इस जिले में रालोद मजबूत स्थिति में है. हालांकि यहां के सांसद बीजेपी के मंत्री संजीव बालियान हैं. सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस निर्णय के बाद सहयोगी दल रालोद मौन है. मुजफ्फरनगर से अचानक सपा मुखिया का मोह बढ़ने पर सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार भी गर्म हो गया है. अपने गठबंधन के साथी RLD के गढ़ में सपा के इस सियासी दांव पर राजनीतिक विश्लेषकों ने खुलकर अपनी बात रखी.

राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहित जाखड़ का कहना है कि इससे हम पर क्या फर्क पड़ता है, उनकी अपनी पार्टी है जो उन्हें उचित लगा होगा, वह निर्णय उन्होंने लिया होगा. हम किसी से कमजोर नहीं हैं. हम गठबंधन धर्म निभा रहे हैं. उन्होंने कहा कि बेशक हम मुजफ्फरनगर में मजबूत स्थिति में हैं. आने वाले समय में भी हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्णय लेंगे उस आधार पर आगे बढ़ेंगे. रोहित जाखड़ कहते हैं कि यूपी वेस्ट में कौन कितने पानी में है ये किसी से छुपा नहीं है. हम गठबंधन करके लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं, साथ ही यह भी चाहते हैं कि कांग्रेस भी साथ हो.

सपा मुखिया ने पार्टी का प्रभारी नियुक्त किया है.
सपा मुखिया ने पार्टी का प्रभारी नियुक्त किया है.

अखिलेश यादव के निर्णय से रालोद असहज : 2022 में विधानसभा चुनावों से पहले भी समाजवादी पार्टी ने अपने गठबंधन के साथी 'रालोद' से बिना पूछे कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए थे. ऐसा ही कुछ समय पूर्व हुए नगर निकाय चुनाव में भी देखने को मिला था. मेयर के चुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने मेयर की सभी 17 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए थे. अब मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को सपा ने लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी बना दिया है.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि संगठन को मजबूत करने की हर दल की अपनी अपनी कोशिश जारी है. वह कहते हैं कि अभी तो गठबंधन को लेकर कोशिशें हो रहीं हैं कि बीजेपी को रोकने के लिए विपक्षी गठबंधन होगा. शादाब रिजवी कहते हैं कि वेस्ट यूपी की बात करें तो सबसे जो मजबूत गठबंधन है वह समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का ही है. समाजवादी पार्टी अलग से प्रभारी तैनात कर बूथ को मजबूत कर रही है. जयंत चौधरी गांव-गांव घूम रहे हैं, वह भी पंद्रह सौ गांवों तक पहुंचने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं. जितनी भी कवायद है विपक्षी नेताओं के द्वारा इसलिए है कि वह बूथ से लेकर लोकसभा तक बेहद मजबूत हो जाएं.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हरिशंकर जोशी कहते हैं कि पिछला चुनाव समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल ने गठबंधन में लड़ा था. अभी भी कहा यही जा रहा है कि रालोद और सपा एक साथ हैं. अगला चुनाव दोनों पार्टियां गठबंधन में लड़ेंगी. वह कहते हैं कि शायद समाजवादी पार्टी को अंदेशा है कि उनके सहयोगी दल रालोद के मुखिया कुछ और भी विकल्प के बारे में सोच सकते हैं. सपा मुखिया अखिलेश यादव की आदत है कि वे दवाब की राजनीति करते हैं और दबाव बनाते हैं, एकतरफा निर्णय लेते हैं.

आप से अखिलेश की बढ़ी नजदीकी : वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर जोशी कहते हैं कि जयंत की कांग्रेस से नजदीकियां भी दिखाई देती हैं. यही वजह है कि यूपी से अकेले जयंत ऐसे नेता थे जो कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद की शपथ के दौरान वहां पहुंचे थे. सपा की सियासी रणनीति पर वह बताते हैं कि पिछले दिनों देखा गया था कि अध्यादेश के मामले में आम आदमी पार्टी के नेताओं के साथ अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. जबकि आम आदमी पार्टी को कांग्रेस ने मिलने का समय भी नहीं दिया था.

निकाय चुनाव में AIMIM ने पहुंचाया नुकसान : वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर जोशी का कहना है कि उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों पर जिस तरह से अखिलेश यादव लोकसभा क्षेत्र प्रभारी बना रहे हैं. 80 हराओ भाजपा हटाओ का नारा दिया है. यह उनका बड़बोला बयान ही है. जबकि मेरठ समेत कई जगह अभी निकाय चुनावों के परिणामों में देखने को मिला कि बहुत करिश्मा अखिलेश नहीं कर पाए. AIMIM ने तो उनकी कई जगह डोर ही काट दी. अखिलेश का यूपी में यादव के अलावा जो वोटर है वह मुस्लिम है और मुस्लिम वोट ओवैसी की तरफ भी शिफ्ट हुआ है. जबकि पश्चिमी यूपी के जिलों में आरएलडी का अपना अच्छा प्रभाव है. गठबंधन धर्म तो यही है कि आपस में सलाह मशविरे के साथ आगे बढ़े.

मुजफ्फरनगर रहता है सुर्खियों में : यूपी वेस्ट की राजनीति में मुजफ्फरनगर जिले का भी अहम रोल है. यह वह जिला है जहां सपा शासनकाल में खूब दंगे हुए. उसके बाद बीजेपी के नेताओं ने न सिर्फ अखिलेश यादव के नेतृत्व की सरकार के खिलाफ खूब हो हल्ला किया. वर्षों बाद तक भी उन दंगों का जिक्र चुनावी रैलियों में भाजपा करती रही है. इतना ही नहीं तब रालोद के तत्कालीन अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह ने भी वहां घर घर जाकर लोगों को फिर से आपसी सौहार्द के साथ रहने के लिए खूब पसीना बहाया था. उस सियासी हवा में बीजेपी को तब खूब फायदा भी हुआ. हालांकि तब राष्ट्रीय लोकदल की तरफ से भाईचारा कायम करने की कवायदों को लोग आज भी सराहते हैं. हिन्दू मुस्लिम के बीच पैदा हुई खाई को रालोद ने पाटने में खूब मेहनत की. इसमें सफल भी रहे.

जिले की चरथावल विधानसभा सीट से सपा के पंकज मलिक एमएलए हैं. काबिलेगौर है कि सपा ने जिन हरेंद्र मलिक को लोकसभा प्रभारी बनाया है, विधायक पंकज मलिक उनके बेटे बेटे हैं.

पूर्व सांसद और उनके बेटे से किया वायदा तो नहीं निभा रहे अखिलेश : खास बात यह भी है कि पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक और उनके बेटे पंकज मलिक ने 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था. समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव ने उन्हें शामिल किया था. ऐसे में हो सकता है कि उस वक्त सपा मुखिया ने यूपी वेस्ट में बड़े नेता के तौर पर पहचान रखने वाले पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक से लोकसभा चुनाव लड़ाने का कमिटमेंट किया हो और वह उसी वादे को पूरा करने के लिए मुजफ्फरनगर में उन्हें लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी नियुक्त किया हों.

वरिष्ठ पत्रकार शादाब रिजवी मानते हैं कि अभी तो यह लोग साथ हैं, लेकिन कल को विचार न मिलने को लेकर या फिर सीटों को लेकर आपस में कोई अलग होने की स्थिति न बन जाए. उस वक्त अपने संगठन के बूते वह 2024 के लोकसभा चुनाव के रण में कूद सकें. उन्हें लगता है कि इस संभावना के साथ भी सपा ने यह निर्णय लिया हो.

अजित सिंह से हुआ था संजीव बालियान का 2019 में मुकाबला : मुजफ्फरनगर सीट पर राष्ट्रीय लोकदल के मजबूत दावे की और भी कई वजहें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के दिवंगत नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजीत सिंह काफी कम अंतर से चुनाव हारे थे.

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