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Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: लखनऊ से जुड़ी हैं अटल बिहारी वाजपेयी की तमाम यादें

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Published : Aug 16, 2021, 8:40 AM IST

आज देश भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee ) की तीसरी पुण्यतिथि (Death Anniversary) मना रहा है. वाजपेयी जी का लखनऊ से करीबी नाता रहा है...आइये जानते हैं कैसा था अटल जी का व्यक्तित्व...

Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary
Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary

लखनऊ: देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee ) का लखनऊ से करीबी नाता रहा है. आजादी के साल 1947 में ही उन्होंने अवध की इस तहजीब वाली नगरी में कदम रखा. एक पत्रकार के रूप में यहां काम शुरू किया. फिर राजनीति में कदम रखा. लखनऊ की जनता ने पहले उन्हें नकार दिया और बाद में उसी जनता ने ऐसा प्यार दिया कि अटल जी लखनऊ के हो गए. राजनीति के अजातशत्रु कहे जाने वाले अटल को जीवन में कई बार लखनऊ और दूसरे संसदीय क्षेत्र में से किसी एक का चयन करना पड़ा तो उन्होंने इसी शहर को चुना.

आजादी के साल ही लखनऊ आ गए थे अटल

बात वर्ष 1947 की है. अटल जी कानपुर स्थित डीएवी कॉलेज से लॉ की पढ़ाई कर रहे थे. उन्हें लखनऊ बुला लिया गया. राष्ट्रधर्म पत्रिका, पांचजन्य समेत संघ के कुछ प्रकाशनों की जिम्मेदारी दी गई. एक सम्पादक के रूप में उन्होंने काम किया. वरिष्ठ पत्रकार पीएन द्विवेदी कहते हैं कि अटल जी बहुत लगन से काम करते थे. कई बार साइकिल पर ही पत्रिका लेकर चारबाग पहुंच जाते थे. अटल जी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ जम्मू-कश्मीर गए. इसी के साथ धीरे-धीरे उनका पदार्पण राजनीति में शुरू हुआ.

लखनऊ से हारे थे अटल

अटल बिहारी बाजपेयी ने पहला लोकसभा चुनाव लखनऊ से 1952 में लड़ा, लेकिन जनता ने उनका साथ नहीं दिया. यह चुनाव अटल जी हार गए. नेतृत्व ने 1957 के लोकसभा चुनाव में एक साथ तीन सीटों से उतारा. अटल जी लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़े. लखनऊ की जनता ने इस बार भी उन पर भरोसा नहीं जताया, यहां की जनता ने कांग्रेस के पुलिन बिहारी बनर्जी को अपना प्रतिनिधि चुना. वहीं, मथुरा संसदीय क्षेत्र से तो अटल जी की जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर की जनता ने उन्हें संसद पहुंचा दिया. 1962 में लोकसभा चुनाव अटल हार गए तो उन्हें राज्यसभा भेजा गया.

1991 से 2004 तक लखनऊ से सांसद रहे अटल

1991 से 2004 तक लखनऊ से सांसद रहे अटल बिहारी वाजपेयी का लखनऊ से करीबी लगाव था. कई मौकों पर जब उनके सामने दो शहरों में एक को चुनना हुआ तो अटल जी ने लखनऊ को ही चुना. 1991 में विदिशा और लखनऊ से चुनाव लड़े. दोनों जगह जीते. अटल जी लखनऊ से सांसद बने रहे, उन्होंने विदिशा को छोड़ दिया. इसके बाद 1996 में लखनऊ और गांधी नगर, गुजरात से चुनाव लड़ा. आडवाणी ने हवाला केस के चलते यह कहते हुए चुनाव लड़ने से मना कर दिया था कि जब तक वह निर्दोष साबित नहीं हो जाते तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे. गुजरात का संतुलन बनाए रखने के लिए अटल ने लखनऊ के साथ गांधीनगर से चुनाव लड़ने का एलान किया. इस बार भी दोनों जगहों से उनकी जीत हुई, लेकिन उस वक्त भी अटल ने लखनऊ को नहीं छोड़ा. यह सारी घटनाएं अटल का लखनऊ के प्रति लगाव को दर्शाती हैं. यही नहीं 1991 से 2004 तक वह लखनऊ से सांसद रहे. लखनऊ से सांसद रहते हुए वह तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने और दुनिया में भारत का परचम लहराया.

यहां से भी संसद पहुंचे अटल

इसके अलावा सबसे अधिक संसदीय क्षेत्र से चुनकर संसद में प्रतिनिधित्व करने का रिकॉर्ड भी अटल बिहारी वाजपेयी के नाम ही जाता है. अटल ने लखनऊ, बलरामपुर, ग्वालियर, विदिशा, नई दिल्ली और गांधीनगर से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की. लखनऊ के बहुत से ऐसे लोग हैं जो अटल जी को बेहद करीब से जानते और समझते रहे हैं.

मुखर्जी के साथ कश्मीर जाने पर अटल की शुरू हुई राजनीति

वरिष्ठ पत्रकार पीएन द्विवेदी कहते हैं कि अटल जी देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के राजनेता थे. उनका करियर एक पत्रकार के रूप में शुरू हुआ. 1953 की बात है उस समय जम्मू एवं कश्मीर में बाहर का व्यक्ति नहीं जा सकता था. उसे परमिशन लेनी पड़ती थी. उस परमिट व्यवस्था का विरोध करते हुए तत्कालीन जनसंघ के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी वहां गए थे. एक पत्रकार की हैसियत से अटल बिहारी वाजपेयी भी उनके कार्यक्रम का कवरेज करने के लिए गए थे. वहां जम्मू-कश्मीर में मुखर्जी गिरफ्तार हो गए. गिरफ्तारी के बाद अटल जी जब वापस आने लगे तब मुखर्जी ने कहा कि जाइए पूरी दुनिया को बता दीजिए कि विरोध के बावजूद परमिट व्यवस्था का विरोध करते हुए मैं श्रीनगर पहुंच गया हूं. वहां से अटल जी आए. इसके बाद उनका राजनीतिक करियर शुरू हो गया.

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