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संतोषी माता का व्रत कब से शुरू करना चाहिए? जानिए व्रत नियम, पूजा विधि, कथा

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Published : Oct 29, 2021, 8:36 AM IST

शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है. इस पूजा के दौरान माता की आरती, पूजन तथा अंत में माता की कथा सुनी जाती है. आइए जानें! व्रत नियम, पूजा विधि और शुक्रवार के दिन की जाने वाली संतोषी माता व्रत कथा..

संतोषी माता
संतोषी माता

लखनऊ : हिंदू धर्म में शुक्रवार को किए जाने वाले संतोषी माता के व्रत का विशेष महत्व है. संतोषी माता को हिंदू धर्म में सुख, शांति और वैभव का प्रतीक माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं. कहा जाता है कि माता संतोषी की पूजा करने से जीवन में संतोष का प्रवाह होता है. माता संतोषी की पूजा करने से धन और विवाह संबंधी समस्याएं भी दूर होने की मान्यता है.

माता संतोषी का व्रत कब से शुरू करना चाहिए?

शुक्रवार को रखा जाने वाले माता संतोषी का व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है. सुख-सौभाग्य की प्राप्ति के लिए माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है.

संतोषी मां के व्रत में क्या खाया जाता है?

संतोषी माता का व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को खट्टी चीज का सेवन और स्पर्श नहीं करना चाहिए. माता संतोषी को भोग लगाने वाला प्रसाद गुड़ व चने व्रती को भी खाने चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से माता रानी की कृपा हमेशा बनी रहती है.

मां संतोषी को कौन-सा फूल प्रिय है?

मां संतोषी के स्वरूप को मां दुर्गा के सबसे शांत, कोमल रूपों में से एक माना जाता हैं. संतोषी माता कमल के फूल में विराजमान हैं. ऐसे में माता संतोषी की पूजा के दौरान उन्हें कमल का पुष्प अर्पित करना चाहिए.

माता संतोषी पूजा विधि

  • माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है.
  • सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई आदि कर लें.
  • स्नान करने के बाद घर में पवित्र स्थान पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
  • अब माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें.
  • कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें.
  • माता के सामने एक घी का दीपक जलाएं.
  • माता को अक्षत, फ़ूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें.
  • माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाए.
  • अब माता रानी की आरती उतारें.

संतोषी माता व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बुढ़िया थी. उसका एक ही पुत्र था. बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती, परंतु उसे ठीक से खाना नहीं देती थी. यह सब लड़का देखता पर मां से कुछ भी नहीं कह पाता. बहू दिनभर काम में लगी रहती- उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती और इसी में उसका सारा समय बीत जाता.

काफी सोच-विचारकर एक दिन लड़का मां से बोला- 'मां, मैं परदेस जा रहा हूं.' मां को बेटे की बात पसंद आ गई तथा उसे जाने की आज्ञा दे दी. इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- 'मैं परदेस जा रहा हूं. अपनी कुछ निशानी दे दो.' बहू बोली- `मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है. यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी. इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई.

मां संतोषी की व्रत कथा

पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार बढ़ते गए. एक दिन बहू दु:खी हो मंदिर चली गई. वहां उसने देखा कि बहुत-सी स्त्रियां पूजा कर रही थीं. उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं. इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है.

स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए. खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना. एक वक्त भोजन करना.

व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी. माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया. कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया. उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- 'संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है.'

अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं. बहू ने कहा- 'हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी.'

अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं. रुपया भी अभी नहीं आया है. उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत मांगी. पर सेठ ने इंकार कर दिया. मां की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए. कर्ज़दार भी रुपया लौटा गए. अब तो साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी.

घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए. पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की. पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईर्ष्या करने लगी थी. उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना.

उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे. तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया. बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे. तो बहू पर माता ने कोप किया. राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे. तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया.

संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया. पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका कर राजा ने मांगा था. अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया. इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं. नौ माह बाद चांद-सा सुंदर पुत्र हुआ. अब सास, बहू तथा बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे.

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