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विक्रम सैनी की सदस्यता के मामले में विधानसभा अध्यक्ष ने जयंत चौधरी को पत्र भेजकर दिया जवाब

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Published : Nov 4, 2022, 10:20 PM IST

विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना

विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को पत्र भेजकर भाजपा विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द किए जाने को लेकर जवाब दिया है.

लखनऊ: विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को पत्र भेजकर भाजपा विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द किए जाने को लेकर जवाब दिया है. उन्होंने कहा है कि किसी भी मामले में विधायक को सजा मिलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के क्रम में सदस्यता निरस्त हो जाती है और यह मामला विधानसभा अध्यक्ष के स्तर पर नहीं होता है. विधान सभा सचिवालय की तरफ से ही विधानसभा सीट रिक्त घोषित करने की कार्यवाही होती है. उन्होंने कहा है कि जयंत चौधरी को पहले तथ्यों से अवगत हो जाना चाहिए था. उसके बाद ही किसी प्रकार का सवाल खड़ा करना चाहिए था. विधानसभा अध्यक्ष महाना में पत्र भेजकर इस मामले में जवाब दिया है. उन्होंने कहा है कि विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द करने की कार्यवाही सजा घोषित होने के साथ ही हो चुकी है.

उल्लेखनीय है कि समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान को सजा घोषित होने के बाद सदस्यता निरस्त होने और विधानसभा सीटें रिक्त घोषित होने के बाद जयंत चौधरी ने विक्रम सैनी की सदस्यता समाप्त किए जाने को लेकर सवाल खड़ा किया था. उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र भेजा था, जिसको लेकर अब विधानसभा अध्यक्ष ने जवाब भेजा है.

जयंत चौधरी को विधानसभा अध्यक्ष द्वारा भेजा गया पत्र
कृपया अपने पत्र दिनांक 29 अक्टूबर, 2022 का संदर्भ ग्रहण करने का कष्ट करें, जिसमें विक्रम सिंह सैनी, विधायक. खतौली, मुजफ्फरनगर के संदर्भ में कोई निर्णय न लेने एवं मेरे स्तर पर भिन्न मानक अपनाने के विषय में इंगित किया गया है. यह पत्र मेरे संज्ञान में मीडिया के माध्यम से आया. पत्र में वर्णित तथ्यों के विषय में विधिक अवधारणाओं का विवरण दिया जाना अनिवार्य है, जिससे स्थिति स्पष्ट हो सके.

सर्वप्रथम यह उल्लेखनीय है कि अध्यक्ष के स्तर पर मेरे द्वारा किसी सदस्य को न्यायालय द्वारा दण्डित करने की स्थिति में कोई सदस्यता रद्द किए जाने का निर्णय नहीं लिया जाता है. इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा याचिका संख्या - 490 / 2005 एवं याचिका संख्या-203/2005 में दिनांक 10 जुलाई, 2013 को पारित निर्णय के अनुसार सदन के किसी सदस्य को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के अंतर्गत किसी न्यायालय द्वारा दण्डित किए जाने पर उसकी सदस्यता निर्णय के दिनांक से स्वतः समाप्त मानी जाएगी.

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसी निर्णय में यह भी अवधारित किया गया है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) के अंतर्गत अ अभियोजित करने के आधार पर ऐसे सदस्य को कोई लाभ प्राप्त नही होगा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को इस निर्णय में असंवैधानिक घोषित किया गया है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के सुसंगत अंश निम्नवत् हैं.

"However, if any sitting member of Parliament or a State Legislature is convicted of any of the offences mentioned in sub-sections (1), (2) and (3) of Section 8 of the Act and by virtue of such conviction and/ or sentence suffers the disqualifications mentioned in sub-sections (1), (2) and (3) of Section 8 of the Act after the pronouncements of this judgment, his, membership of Parliament or the State Legislature, as the case may be, will not be saved by sub-section (4) of Section 8 of the Act which we have by this judgment declared as ultra vires the Constitution notwithstanding that he files the appeal or revision against the conviction and/or sentence."

उपर्युक्त के क्रम में भारत के चुनाव आयोग द्वारा इस आशय के निम्नलिखित निर्देश निर्गत किए गए हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के परिप्रेक्ष्य में जिस सदस्य को न्यायालय द्वारा दण्डित किया जाएगा, उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त मानी जाएगी और इसकी सूचना अथवा निर्णय की प्रति प्राप्त होने के पश्चात विधान सभा सचिवालय द्वारा रिक्ति घोषित की जानी चाहिए.

"Thus, in view of the above law laid down by the Hon'ble Supreme Court, it will be seen that in cases of conviction of sitting members, their disqualification from membership under Section 8 of the Representation of the People Act, 1951, would be automatic by operation of Law and no dispute can arise for determination by the President/Governor under Article 103(1) or 192(1) of the Constitution in such case. Therefore, in such cases, the Secretariat of the House concerned should forthwith issue notification declaring the seat of the member concerned vacant."

उपर्युक्त तथ्यों एवं विधिक प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि अध्यक्ष के रूप में मेरे द्वारा किसी भी सदस्य की न्यायालय द्वारा पारित किए गए दण्ड के आधार पर कोई सदस्यता रद्द करने के विषय में निर्णय नहीं लिया जाता है. विधान सभा के अध्यक्ष की इस विषय में कोई भूमिका नहीं है. सदस्यता अथवा उसकी निरर्हता सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के क्रम में स्वतः ही क्रियान्वित होगी. अतः यह कहना विधिक रूप से उपयुक्त नहीं है कि विक्रम सिंह सैनी के संदर्भ में मेरे द्वारा कोई निर्णय लिया जाना अपेक्षित है.

इसी प्रकार मोहम्मद आजम खां की सदस्यता रद्द करने के संदर्भ में मेरी कोई भूमिका नहीं थी. अतः मेरे स्तर से इस पूरे प्रकरण में कोई भेदभाव किए जाने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है, जहां तक विधान सभा सचिवालय द्वारा किसी सदस्य को न्यायालय द्वारा दण्डित किए जाने के पश्चात् रिक्ति घेषित करने का प्रश्न है, वह कार्यवाही निर्णय की प्रति प्राप्त होने के पश्चात सचिवालय द्वारा की जाती है. मेरे द्वारा विक्रम सिंह सैनी के संबंध में विधान सभा सचिवालय को विधिसंगत कार्यवाही किए जाने के निर्देश दिए जा चुके हैं. उपर्युक्त वर्णित स्थिति में मेरा यह विनम्र मत है कि उपयुक्त होता कि यदि आप प्रस्तुत प्रकरण में मेरा ध्यान आकर्षित करने से पूर्व सही स्थिति ज्ञात कर लेते.

मुजफ्फरनगर: भाजपा विधायक विक्रम सैनी ने राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी के द्वारा विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को लिखे गए पत्र पर हमला बोलते हुए कहा कि जयंत चौधरी को कायदे में तो विधानसभा अध्यक्ष को लेटर लिखना नहीं था और जयंत चौधरी ने लेटर लिख कर गलत जगह दिया है. उन्होंने कानून के प्रावधान का जिक्र करते हुए कहा कि सदस्यता तो सजा पाते ही चली जाती है. विधायकी जाने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी का सदस्य होने के नाते क्षेत्र की जनता की सेवा करता रहूंगा, उन्होंने कहा कि मेरी विधानसभा सदस्यता जा सकती है. लेकिन बीजेपी पार्टी की सदस्यता रहेगी और चार गुनी शक्ति के साथ काम करता रहूंगा,देश हित में काम करूंगा और हिंदू हित में काम करूंगा.

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