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आज का चंद्रग्रहण होगा खास, न ही बंद होंगे मंदिरों के कपाट और न लगेगा सूतक

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Published : May 5, 2023, 7:59 AM IST

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साल का पहला चंद्र ग्रहण आज लगेगा. यह उपछाया चंद्र ग्रहण होगा, इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होगा. करीब 130 साल बाद बुद्ध पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2023) दोनों का संयोग बन रहा है.

लखनऊ: आज बुद्ध पूर्णिमा के दिन साल का पहला चंद्रग्रहण लगेगा, जो भारत सहित दुनिया के कई देशों में देखा जाएगा. यह चंद्रग्रहण खास होगा, वह इसलिए क्योंकि आज रात्रि में 8.45 से 1.02 बजे के बीच होने वाला चंद्रग्रहण होकर भी यह चंद्रग्रहण की तरह नहीं नजर आएगा. इस चंद्रग्रहण पर मंदिरों के कपाट भी बंद नहीं किए जाएंगे. इस चंद्रग्रहण को उपछाया चंद्र ग्रहण कहा जाता है.

कितने बजे पड़ेगा चंद्रग्रहण: भारत वर्ष में उपछाया चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2023) आज रात्रि में 8.45 से 1.02 बजे तक दिखाई देगा. इसे ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, साउथ व ईस्ट अमेरिका, यूरोप और सम्पूर्ण एशिया में देखा जाएगा. अगला सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर को और 29 अक्टूबर 2023 को आंशिक चंद्र ग्रहण होगा. इसके अलावा अगला पेनंबरल चंद्र ग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse 2023) 24 और 25 मार्च 2024 और 20 और 21 फरवरी 2027 को घटित होगा.



यूपी के विज्ञान एवम् प्रौद्योगिकी परिषद के वैज्ञानिक अधिकारी सुमित कुमार श्रीवास्तव बताते है कि, चंद्रमा पृथ्वी का एक एकलौता प्राकृतिक उपग्रह है, जिसे आसानी से पृथ्वी से रात के समय देखा जा सकता है. करीब होने के कारण रात्रि आकाश का सबसे चमकदार पिंड होता है. चंद्रमा की अपनी स्वयं की कोई रोशनी नहीं होती है. यह सूर्य की रोशनी से ही प्रकाशमान होता है. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और उसी तरह से चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए सूर्य की परिक्रमा करता है. चंद्रमा का परिक्रमा पथ पृथ्वी के तल से लगभग 5° झुका हुआ है. इन तीनों पिंडो के एक दूसरे की परिक्रमा करने के कारण कभी-कभी तीनों पिंड एक सीधी रेखा में और एक ही तल संरेखित हो जाते हैं. इस स्थिति को सिज्गी (Syzgee) की स्थिति कहते है. इस स्थिति में या तो सूर्य ग्रहण की खगोलीय घटना घटित होती है या चंद्र ग्रहण की खगोलीय घटना घटित होती है.


वैज्ञानिक अधिकारी के मुताबिक, चंद्र ग्रहण में सूर्य एवम् चंद्रमा के मध्य पृथ्वी आ जाती है. इसके फलस्वरूप पृथ्वी की छाया पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पर पड़ती है. इससे चंद्रमा की रोशनी क्षीण होती नजर आती है या प्रकाश के पृथ्वी के वायुमंडल से प्रकीर्णन के कारण सुर्ख लाल रंग का चंद्रमा भी नजर आता है. सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोल है. पृथ्वी की परछाई दो शंकु बनाती है. इस प्रकार पृथ्वी की छाया भी दो प्रकार की होती है, जिसमें एक अंब्रा या मुख्य छाया या प्रच्छाया और दूसरा पेनंब्रा या उपछाया होता .

पृथ्वी की मुख्य छाया शंकु के आकार का अंधकार मय क्षेत्र होता है. छाया के अंदर और सबसे गाढ़ा भाग है, जहां प्रकाश स्रोत पूरी तरह से उस पिण्ड या वस्तु से अवरुद्ध है. यदि इस छाया के संपर्क में चंद्रमा आता है, तो आंशिक या पूर्ण चंद्रग्रहण लगता है. जबकि पेनंब्रल या उपछाया, वह क्षेत्र है जिसमें प्रकाश स्रोत केवल आंशिक रूप से ढका होता है. इसमें प्रकाश छितराया होता है. इसका क्षेत्रफल अम्ब्रा के क्षेत्रफल से बड़ा होता है. पेनंब्रा अम्ब्रा के चारों ओर घेरा होता है. हल्की छाया वाला क्षेत्र पेनंब्रा क्षेत्र होता है. ग्रहण लगते समय चंद्रमा हमेशा पश्चिम की ओर से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता ,है इसलिए सबसे पहले इसके पूर्वी भाग में ग्रहण लगता है. यह ग्रहण सरकते हुए पूर्व की ओर से निकल कर बाहर चला जाता है.

उपछायी चंद्रग्रहण में चंद्रमा के प्रकाश में नग्न आंखों से कोई अंतर दिखाई नहीं देता. इस घटना को रिकॉर्ड करने के लिए वैज्ञानिक फोटोमेट्री मैथड का प्रयोग करते है. प्रकाश के छोटे छोटे अणुओं या फोटोंस की संख्या, ग्रहण से पूर्व तथा ग्रहण के समय, को काउंट कर तथा तुलना क के ये बताते है कि ग्रहण में कितने प्रतिशत प्रकाश कम हुआ है. प्रकाश कम होने का प्रतिशत बहुत ही ज्यादा कम होता है, इसलिए जन सामान्य को नग्न आंखों से चंद्रमा के प्रकाश में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है. ज्योतिष में भी इस प्रकार के ग्रहण का कोई सूतक नहीं माना जाता.

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