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कोरोना से जंग के लिए बच्चों के फेफड़े कितना हैं तैयार ?

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Published : May 7, 2021, 2:49 PM IST

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बच्चों के फेफड़े कमजोर कर रहा कोरोना

कोरोना की दूसरी लहर में सांस लेने में ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसका मतलब है कि नया स्ट्रेन फेफड़ों को ज्यादा प्रभावित कर रहा है. इस महामारी से बच्चे भी अछूते नहीं हैं. अगर बच्चों को कोरोना संक्रमण हो जाए तो उनके फेफड़ों पर क्या असर पड़ेगा, पढ़िए ये रिपोर्ट..

लखनऊ : कोरोना का दुष्प्रभाव युवाओं के साथ-साथ बच्चों पर भी दिखाई दे रहा है. देश के लाखों बच्चों पर वायरस अटैक कर चुका है. ऐसे में बीमारी को मात देने के बावजूद वह पोस्ट कोविड सिंड्रोम की चपेट में आ रहे हैं. कोरोना से उबरने के बाद उनके फेफड़ों में समस्या आ रही है. ऐसे में बच्चों के स्वास्थ्य की मॉनिटरिंग अब बेहद आवश्यक हो गई है.

बच्चों के फेफड़े में आ रही समस्या

यूपी कोविड नियंत्रण विशेषज्ञ समिति के सदस्य डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक, कोरोना की दूसरी लहर में बच्चे भी बड़ी संख्या में वायरस की चपेट में आ रहे हैं. इस दौरान कई बच्चों में वायरस वयस्कों की तरह घातक बन रहा है. उनके फेफड़े तक वायरस पहुंचने से ऑक्सीजन सपोर्ट देना पड़ रहा है. वहीं कुछ बच्चे पोस्ट कोविड सिंड्रोम के भी शिकार हो रहे हैं. ऐसे में बच्चों के फेफड़ों में फाइब्रोसिस, पल्मोनरी एम्बोलिज्म की समस्या आ रही है.

लिहाजा, कम उम्र में बच्चों के फेफड़े कमजोर हो रहे हैं. ऐसे में आमतौर पर 35 से 40 वर्ष में शुरू होने वाली फेफड़े की सीओपीडी बीमारों कम उम्र में होने का खतरा है. इतना ही नहीं, बुढ़ापे में ज्यादा मुश्किलें खड़ी करने वाली सीओपीडी जवानी में ही इन बच्चों पर घातक रूप ले सकती है.

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स्टेरॉयड थेरेपी-लंग असेसमेंट है आवश्यक

डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक, कोरोना संक्रमित होने पर बच्चों को भी समय पर वयस्कों की तरह स्टेरॉयड थेरेपी देनी होगी. यह थेरेपी डॉक्टर की निगरानी में दी जाए. उससे फेफड़े में नुकसान को कम किया जा सकता है. वहीं, चेस्ट एक्स-रे या सीटी स्कैन से लंग (फेफड़े) का असेसमेंट किया जाए. दुष्प्रभाव मिलने पर नियमित इलाज किया जाए. इससे समस्या को दूर किया जा सकता है. इसके अलावा आईसीयू में भर्ती होने वाले बच्चों के लिवर, आर्टरी, हार्ट पर भी वायरस असर डाल रहा है.

समझें फेफड़े का प्रेशर फंक्शन

डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि फेफड़े के चारों ओर चेस्ट वॉल्‍व होती है. नीचे की ओर डायफ्राम होता है. यह फेफड़े को पेट से अलग करता है. चेस्ट वॉल्‍व फेफड़े को बाहर की ओर खींचता है जबकि डायफ्राम नीचे की ओर खिंचाव देता है. इस प्रक्रिया से फेफड़े में निगेटिव प्रेशर जेनरेट होता है. ऐसे में फेफड़े में ऑक्सीजन आती है. साथ ही सांस बाहर फेंकने के लिए पॉजिटिव प्रेशर बनता है. चेस्ट वॉल्व व डायफ्राम फेफड़े को दबाते हैं. इसमें शरीर की कार्बनडाई ऑक्साइड मिश्रित हवा के साथ बाहर निकलती है. वहीं, फेफड़े की एल्वियोलाई के आसपास मौजूद बारिक रक्‍त वाहिका (कैपिलरी) से ऑक्‍सीजन शरीर के विभिन्‍न अंगों में पहुंचती है. जब फाइब्रोसिस या पल्मोनरी एम्बोलिज्म की समस्या हो जाती है तो संपूर्ण फेफड़ा अपना सामान्य ढंग से कार्य नहीं कर पाता है. ऐसे में सांस फूलना, खांसी जैसे लक्षण महसूस होते हैं.

फेफड़े के लिए खास हैं व्यायाम

  • स्‍ट्रेचिंग एक्सरसाइज.
  • एरोबिक एक्सरसाइज.
  • डायफ्राम एक्सरसाइज.
  • डीप ब्रीदिंग (गहरी सांस लेना) एक्सरसाइज.

फेफड़े की संजीवनी

  • विटामिन डी.
  • विटामिन सी.
  • विटामिन ई.
  • विटामिन बी-6.

इन बातों का सभी रखें ध्‍यान

  • लंग्‍स यानी फेफड़े को दुरुस्त रखने के लिए तनाव से दूर रहना जरूरी है.
  • वयस्‍क सात, किशोर 8-10, छोटे बच्चे 14 घंटे की भरपूर नींद लें.
  • सोने के एक घंटे पहले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का प्रयोग बंद करें.
  • इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की ब्लू लाइट से बायोलॉजिकल क्लॉक प्रभावित होता है.
  • सोने वाले कमरे में अंधेरा हो, शोरगुल न हो.

कोरोना की चपेट में आए बच्चे

  • उत्तर प्रदेश - 38,900
  • तमिलनाडु - 44,921
  • कर्नाटक - 27,674
  • महाराष्ट्र - 20,200
  • हिमाचल - 2025
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