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योगी के दामन में खाकी के दाग, 2022 में कहीं न बन जाए गले की फांस

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Published : Oct 31, 2021, 8:07 PM IST

यूपी पुलिस.
यूपी पुलिस.

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) नजदीक होने के बावजूद यूपी पुलिस (UP Police) ऐसे कारनामे कर रही है, जिससे भाजपा सरकार की किरकिरी हो रही है. आइए जानते हैं कि यूपी पुलिस के कौन-कौन से कारनामे चर्चा के विषय बने और योगी सरकार के दामन पर दाग लगाए.

हैदराबादः उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के लिए भले ही अभी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने अपनी ताकत झोंक दी है. सत्ता पक्ष और विपक्ष पूरी ताकत के साथ 2022 में यूपी का ताज हासिल करने में जुट गये हैं. जहां समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बसपा समेत अन्य दल भाजपा की नाकामियों को उजागर करते हुए जनता से 2022 में एक बार सेवा का अवसर देने की अपील कर रही हैं.

वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित भाजपा के नेता से लेकर कार्यकर्ता अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनवा रहे हैं. सीएम योगी भाजपा के कार्यकाल में अपराध मुक्त और सुशासन युक्त सरकार का दावा कर रहे हैं. लेकिन, आंकड़े कुछ और ही हकीकत बयां करते हैं. चुनाव नजदीक होने के बावजूद यूपी पुलिस (UP Police) ऐसे कारनामे कर रही है, जिससे भाजपा सरकार की किरकिरी हो रही है. ऐसे में 2022 के चुनाव में खाकी के दाग कहीं योगी और भाजपा के लिए गले की फांस न बन जाएं. आइए जानते हैं कि यूपी पुलिस के कौन-कौन से कारनामे चर्चा के विषय बने और योगी सरकार की किरकिरी कराई.

बैंक कर्मचारी की आत्महत्या में पुलिस की संलिप्तता
सबसे पहले हम ताजा मामला श्रद्धा गुप्ता का ही लेते हैं. 30 अक्टूबर को रामनगरी अयोध्या में एक महिला बैंककर्मी ने आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में जिसे जिम्मेदार ठहराया वो नाम देखकर हर कोई चौंक गया. इस मामले में आईपीएस आशीष तिवारी, विवेक गुप्ता और एक अन्य पुलिसकर्मी अनिल रावत के खिलाफ हत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है. इस मामले को लेकर अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार के कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं. इस मामले में भी खाकी कहीं न कहीं प्रदेश सरकार के दामन पर दाग लगा रही है. अब हम बात करते हैं कुछ पुराने ऐसे चर्चित मामलों की जिसने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा था और इससे योगी सरकार की जमकर फजीहत हुई थी.

हाथरस कांड
यूपी के हाथरस जिले में 14 सितंबर 2020 को युवती के साथ दरिंदगी हुई थी. 29 सितंबर को इलाज के दौरान उसकी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गई थी. पुलिस और जिला प्रशासन ने आनन-फानन में उसका अंतिम संस्कार देर रात करा दिया था, जिसे लेकर खूब बवाल हुआ था. विपक्षी पार्टियों ने इसे मुद्दा बनाया था और यहां आए दिन लोगों की पुलिस से भिड़ंत होती रहती थी. सभी राजनीतिक दलों ने इस मामले को लेकर योगी सरकार को जमकर घेरते हुए पुलिस-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे. इस केस को लेकर बाद प्रदेश की भाजपा सरकार की जमकर किरकिरी हुई थी. अब हाथरस कांड को विपक्षी दल अपने मुद्दे में शामिल कर जनता को बताते हुए भाजपा सरकार में कानून व्यवस्था को ध्वस्त बता रहे हैं.

मनीष गुप्ता हत्याकांड
वहीं, जब सभी राजनीतिक दल भाजपा सरकार को घेरते हुए 2022 के लिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे थे, इसी बीच गोरखपुर में 27 सितंबर को पुलिस की पिटाई से कानपुर व्यापारी मनीष गुप्ता की मौत होने का आरोप लगा. इस मामले में जमकर हंगामा हुआ, यहां तक कि सीएम योगी के आदेश के 24 घंटे बाद मुकदमा दर्ज किया जा सका. मनीष गुप्ता की मौत के बाद जहां योगी सरकार ने उनकी पत्नी को नौकरी देकर और पुलिसकर्मियों पर केस दर्ज करवाकर अपनी छवि सुधारने की कोशिश की. वहीं, सपा और कांग्रेस ने मनीष गुप्ता की मौत सियासी फायदा उठाते हुए यूपी से भाजपा सरकार में का सफाया करने की अपील जनता से कर रही है. यह मामला अभी थमा नहीं था कि गोरखपुर में रेहड़ी संचालक की मनीष प्रजापति की दबंगों ने हत्या कर दी. इस मामले ने मनीष गुप्ता हत्याकांड को और हवा दे दी.

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लखीमपुर खीरी हिंसा
2022 मिशन को लेकर आगे बढ़ रही भाजपा के लिए 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा ने किसानों की नाराजगी को और हवा देने का काम किया. इस मामले में भी पुलिस और प्रशासन की लापरवाही देखी गई. क्योंकि जब स्थानीय प्रशासन और पुलिस को पता था कि किसान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीयय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी का विरोध करने वाले हैं, इसके बाद भी सतर्क नहीं हुई. जिसका खामियाजा यह हुआ कि हिंसा के दौरान 4 किसानों समेत 8 लोगों की मौत हो गई. लखीमपुर हिंसा मामला पूरे देश में सुर्खियों में रहा. वहीं, विपक्ष दल इस हिंसा के जरिए अपनी राजनीति चमकाई और किसानों की सहानुभूति हासिल की.

पुलिस कस्टडी में सफाईकर्मी की मौत
इसी तरह आगरा में 19 अक्टूबर की रात पुलिस की कस्टडी में सफाई कर्मी अरुण की मौत भी कहीं न कहीं योगी सरकार के दामन पर दाग लगाने का काम किया. सफाईकर्मी अरुण की मौत उस समय हुई, जब यूपी में सियासी बयार बड़ी तेजी से बह रही है और विपक्षी भाजपा सरकार पर हमलावर हैं. सपा, बसपा और कांग्रेस ने अरुण की मौत को अपने सियासी एजेंडे में शामिल कर 'वोट कैश' करना चाह रहे हैं. दलित वर्ग के सफाईकर्मी में पुलिस पर जिस तरह से आरोप लग रहे हैं, इससे राजनीतिक जानकारों का मानना है यह भाजपा के लिए पश्चिमी यूपी में 'वोट कटवा' फैक्टर साबित हो सकता है.

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लखनऊ में पुलिस का कारनामा
वहीं, पिछले साल राजधानी लखनऊ में 28 सितंबर 2018 को एप्पल कंपनी के मैनेजर विवेक तिवारी की पुलिसकर्मी ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस मामले में भी यूपी पुलिस ने प्रदेश की वर्तमान सरकार की जमकर किरिकिरी कराई थी. सीएम योगी आदित्यनाथ को इस मामले में सामने आकर जवाब देना पड़ा था. योगी सरकार भले ही यूपी पुलिस की करतूत भूलने लगी हो, लेकिन विपक्षी पार्टियां 2022 के चुनाव में इसे मुद्दा बनाने से नहीं चूक रही हैं और जनता को याद दिला रही हैं. ऐसे में यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में योगी के दामन में खाकी के दाग कहीं गले की फांस न बन जाए.

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