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गोरखपुर: रेल यात्रियों की कोरोना जांच में हीलाहवाली से बढ़ी चिंता

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Published : Jan 12, 2022, 9:03 AM IST

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एक तरफ कोरोना महामारी गोरखपुर में पूरी तरह से पांव पसार चुकी है. हर दिन जांच के आंकड़े सैकड़ों की संख्या पार कर रहे हैं. आम आदमी से लेकर डॉक्टर, सिपाही, नेता सभी संक्रमण की चपेट में हैं. इस दौरान शहर में ट्रेनों के माध्यम से एक दो नहीं, बल्कि प्रतिदिन 50 से 55 हजार यात्री प्लेटफार्म पर विभिन्न ट्रेनों से उतर रहे हैं.

गोरखपुर: एक तरफ कोरोना महामारी गोरखपुर में पूरी तरह से पांव पसार चुकी है. हर दिन जांच के आंकड़े सैकड़ों की संख्या पार कर रहे हैं. आम आदमी से लेकर डॉक्टर, सिपाही, नेता सभी संक्रमण की चपेट में हैं. इस दौरान शहर में ट्रेनों के माध्यम से एक दो नहीं, बल्कि प्रतिदिन 50 से 55 हजार यात्री प्लेटफार्म पर विभिन्न ट्रेनों से उतर रहे हैं. लेकिन उनके जांच का इंतजाम बेहद लचर है. कोई सख्ती न होने से लोग बिना जांच के ही निकल जा रहे हैं. यही वजह है कि जांच का आंकड़ा यात्रियों के सापेक्ष सैकड़ों में ही सिमट कर रह जा रहा है. मुख्य गेट पर कोविड-19 जांच के काउंटर लगाए गए हैं, जहां दो पालियों में स्वास्थ्यकर्मी जांच कर रहे हैं. दिनभर में इनके पास अपनी इच्छा से सैकड़ों लोग जांच करा लें तो इस महामारी में बड़ी अचरज बात होगी और यही कारण है कि संक्रमण का खतरा दिन-ब-दिन तेज से बढ़ा रहा है.

सबसे बड़ी बात यह है कि स्टेशन परिसर में बिना रोक-टोक के लोगों का आवागमन जारी है. यहां टिकट काउंटरों पर धक्का-मुक्की आम बात है. स्टेशन परिसर में यात्रियों की भीड़ इस कदर नजर आती है कि जैसे किसी मेले की तैयारी है. मुख्य गेट को छोड़ दिया जाए तो रेलवे के बाकी गेट पर कोई भी जांच काउंटर नहीं है और न ही स्वास्थ्यकर्मी मौजूद है. परिसर में दो वैन भी खड़ी है. लेकिन उन तक कोई यात्री पहुंचकर जांच भी नहीं कराना चाहता. यह तब है जब कोविड-19 तेजी के साथ बढ़ रहा है. दूसरे शहर से यात्री जहां गोरखपुर में प्रवेश कर रहे हैं वही जिंदगी की जद्दोजहद में दो वक्त की रोटी कमाने के लिए यहां के लोग भी दूसरे शहर को जाने को मजबूर हैं, चाहे वह मुंबई हो, गुजरात हो या दिल्ली.

कोरोना जांच में हीलाहवाली से बढ़ी चिंता
कोरोना जांच में हीलाहवाली से बढ़ी चिंता

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कोविड को लेकर भले ही तैयारियों को बड़े पैमाने पर लागू करने की बात कही जा रही हो, लेकिन रेलवे स्टेशन परिसर में इसको लेकर उदासीनता देखी जा सकती है. गेटों पर लगे थर्मल स्कैनर और हैंड सैनिटाइजर खराब पड़े हैं. बैग सेनेटाइजर काउंटर पर भीड़ लगी रहती है. दस रुपये निर्धारित शुल्क देकर भी लोग बैक सेनेटाइज नहीं कराना चाहते.

देखा जाए तो जिस प्रकार कोविड के पहले चरण में रेलवे स्टेशन जैसी जगह पर टेस्ट और ट्रेस की सुविधा बढ़ाई गई थी, वो तीसरे चरण में पूरी तरह लापरवाही के दौर से गुजर रही है. लोगों में इस महामारी को लेकर डर भले खत्म हो गया हो, लेकिन लापरवाही लगातार बढ़ती जा रही है. मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग जहां कम हुआ है. वहीं, पर रेलवे स्टेशन पर जांच केंद्रों की अनुपलब्धता और यात्रियों का उसमें असहयोग महामारी के प्रति लापरवाही का बड़ा नजारा पेश कर रहा है.

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