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UP Election 2022: बलरामपुर की उतरौला विधानसभा का जानिए चुनावी समीकरण

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Published : Oct 17, 2021, 9:30 PM IST

उतरौला विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट.
उतरौला विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट.

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर पूरे प्रदेश के साथ बलरामपुर जिले में भी सियासत तेज हो गई है और नेता मतदाताओं को रिझाना शुरू कर दिया. आइये जानते हैं बलरामपुर जिले की उतरौला विधानसभा सीट(Utaraula Assembly Seat) में चुनावी समीकरण क्या है.

बलरामपुरः गौरा, डुमरियागंज, बलरामपुर सदर, गैंसड़ी विधानसभा की सीमा से लगता हुआ उतरौला विधानसभा (Utaraula Assembly Seat) क्षेत्र सबसे पुरानी विधानसभा सीट होने के साथ ही सबसे पुराना तहसील मुख्यालय भी है. हिमांचल प्रदेश के अलावा यहां ज्वाला महारानी यहीं पर स्थित है. पांडव कालीन दुःखहरण नाथ अपने अलौकिक शिवलिंग के लिए पूरे प्रदेश में जाना जाता है. इस विधानसभा क्षेत्र को विदेशों से पैसा देश में लाने के लिए भी जाना जाता है. एक रिसर्च बताता है कि यहां के 30-35 फीसदी युवा बाहर रहते हैं. खासकर, अरब देशों और भारत के बड़े शहरों में रहने वाले जिले के लोग अपने परिजनों के पैसे भेजते हैं.

उतरौला विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट.

बता दें कि अपने पिता श्याम लाल वर्मा की राजनीतिक विरासत संभाल रहे राम प्रताप वर्मा भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर 2017 का चुनाव लड़े. जनता ने सिर-आंखों पर बैठते हुए समाजवादी पार्टी के आरिफ अनवर हाशमी को हराया था. वहीं, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में एक ओर जहां सपा गठबंधन से जनवादी पार्टी सोसलिस्ट के हसीब खान टिकट की मांग कर रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर एआईएमआईएम से डॉ. अब्दुल मन्ना खान मैदान में ताल ठोक रहे हैं. राम प्रताप वर्मा को फिर से टिकट मिलने का आसार है.

उतरौला विधानसभा के जातिगत समीकरण.
उतरौला विधानसभा के जातिगत समीकरण.

विधानसभा सीट का इतिहास
उतरौला विधानसभा सीट 1952 से अस्तित्व में आई. मुस्लिम उम्मीदवारों को सिर आंखों पर बिठाने वाली जनता ने जनसंघ और भाजपा को यहां से सदन जाने का मौका दिया. यहां से कांग्रेस ने 3 बार, जनसंघ ने 3 बार, जनता पार्टी ने एक बार, जनता दल ने 2 बार, सीपीआई ने एक बार, भाजपा ने 3 बार तो सपा ने भी यहां से 3 बार विजय हासिल की. यह सीट शुरुआती सालों में राष्ट्रीय दलों का छत्रप रहा है. सपा जैसे क्षेत्रीय दलों सहित एक निर्दलीय उम्मीदवार को जनता ने मौका दिया.

उतरौला विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट.
उतरौला विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट.
पिछले विधानसभा चुनाव का परिणाम
2017 के विधानसभा चुनावों में उतरौला विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी को बड़ी जीत हासिल हुई थी. तकरीबन 21,000 वोटों के बड़े अंतर से भाजपा के राम प्रताप वर्मा ने सपा के आरिफ अनवर हाशमी को हराया था. राम प्रताप वर्मा को 85,240 मत प्राप्त हुए थे, जबकि आरिफ अनवर हाशमी को 56,066 मत मिले. वर्तमान विधायक राम प्रताप वर्मा के पिता श्यामलाल वर्मा उतरौला विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं. यही, मेंन फैक्टर था कि उन्हें यहां से मौका दिया गया. इसके साथ ही वर्मा, यादव और बनिया वोटर पर इस परिवार की बेहतर पकड़ थी. वही, 2017 में बहुजन समाज पार्टी से चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे परवेज उमर को कुल 44,799 मत प्राप्त हुए थे. कई क्षेत्रीय व राष्ट्रीय दलों का उतरौला विधानसभा के चुनावों में जमानत जप्त हो गया था.
कुल कितने वोट हैं यहां
उतरौला आबादी के मामले में जिले की सबसे बड़ी विधानसभा है. यहां पर कुल 7,11,457 लोग रहते हैं. जिनमें 3,58,060 पुरुष और 3,53,397 महिलाएं हैं. सभी विधानसभाओं में सबसे ज्यादा वोटर भी यहीं रहते हैं. कुल 4,14,887 मतदाता इस विधानसभा में हैं. जिनमें से 2,30,371 पुरुष 1,84,500 महिला, 16 वोटर थर्ड जेंडर मतदाता हैं. 2017 में यहां पर 58.32% मतदान हुआ था. यहां पर महिला और पुरुष वोटरों में जेंडर रेशों 801 है, जो जिले की चारों विधानसभाओं में सबसे कम है.
कौन कितना दमदार नेता?

आरिफ अनवर हाशमी: सपा के आरिफ अनवर हाशमी फिलहाल तमाम मुकदमों के चलते जेल में हैं. लेकिन उन्हें इस विधानसभा की राजनीति से नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता है.आरिफ साल 2007 में सादुल्लानगर विधानसभा सीट से विधायक बने, जो बाद में हुए परिसीमन में समाप्त हो गई. इसके बाद साल 2012 में उतरौला विधानसभा सीट भारी अंतर से जीतकर विधायक बने. अल्पसंख्यक समुदाय पर इनकी अच्छी पकड़ बताई जाती है. योगी सरकार ने इनके खिलाफ जांच करवाते हुए इन्हें भूमाफिया, हिस्ट्रीशीटर घोषित किया है. इनके ऊपर तकरीबन एक दर्जन मुकदमे कायम किये गए हैं.

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राम प्रताप वर्मा: वहीं, भाजपा के टिकट पर राम प्रताप वर्मा ने साल 2017 में उतरौला विधानसभा सीट से जीत हासिल की. ये पुराने भाजपा कार्यकर्ता एवं विधायक रहे श्यामलाल वर्मा के बेटे हैं. इनका पूरा परिवार सालों से संघ और भाजपा से जुड़कर काम करता रहा है. लेकिन जनता इस बार इनके कार्यों से खुश नहीं नजर नहीं आ रही है. क्योंकि इलाके में कोई बड़ी परियोजना की शुरूआत नहीं हो सकी है.


धीरेंद्र प्रताप सिंह 'धीरू': धीरेंद्र प्रताप सिंह 'धीरू' साल 2007 में बसपा से बलरामपुर सदर सीट से विधायक रहे हैं. उन्होंने इससे पहले भी एक बार इस सीट से चुनावी ज़ोर-आज़माइश की लेकिन असफल रहे. उन्होंने बसपा का दामन छोड़कर पहले भाजपा में गए, अब कांग्रेस में हैं. नसीमुद्दीन सिद्दीकी के करीबी बताए जाते हैं. मुस्लिम और ठाकुर वोटरों पर बेहतर पकड़ भी रखते हैं. मौजूदा वक्त में धीरू सिंह उतरौला विधानसभा सीट से दावेदारी ठोक रहे हैं.

डॉ. अब्दुल मन्नान खांः पेशे से नेत्र सर्जन डॉ. अब्दुल मन्नान खां पीस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. दो बार उतरौला विधानसभा क्षेत्र से चुनावी दंगल में उतर चुके हैं लेकिन शिकस्त ही खाई है. मौजूदा वक्त में असुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम में हैं और उन्हें उतरौला से प्रत्याशी घोषित किया जा चुका है.

हसीब खान ः जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के प्रदेश उपाध्यक्ष हसीब खान कोरोना काल में किए गए कार्यों की वजह से जाने जाते हैं और बड़े व्यवसायी हैं. जनवादी पार्टी और सपा का गठबंधन होने के बाद उतरौला विधानसभा सीट से खुद के लिए टिकट के दावेदार बताते हैं. उतरौला विधानसभा सीट से ये एक युवा चेहरा है. ये चौहान समुदाय और अल्पसंख्यक समुदाय पर अच्छी पकड़ रखते हैं.

विधानसभा क्षेत्र का जातीय फैक्टर
उतरौला विधानसभा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मुस्लिम रहते हैं, जोकि कुल आबादी का 40 फीसदी है. यहां हिन्दू आबादी 59.8 फीसदी है. इसके साथ ही यहां 0.2 फीसदी ईसाई और अन्य जातियों के लोग रहते हैं. निर्णायक वोटों में यहां ब्राह्मण, मुस्लिम, कुर्मी और यादव हैं.


इस विधानसभा की प्रमुख समस्याएं
जिले की सबसे पुरानी तहसील और विधानसभा क्षेत्र के रूप में जाने जाने वाला उतरौला आज भी अपने तरीके के तमाम समस्याओं से लड़ रहा है. यहां के लोग पिछले 50 वर्षों से रेलवे लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. मोदी सरकार ने यहां के जनप्रतिनिधियों के काफी प्रयास के बाद उसे सेंसन तो कर दिया लेकिन आज तक रेल लाइन बिछाने का काम शुरू नहीं हो सका है. जबकि नेताओं ने दावा किया था कि 2024 से यहां रेल चलने लगेगी.

दूसरी तरफ, उच्च शिक्षा और बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के लिए भी यहां के लोगों को दो-दो हाथ करना पड़ता है. बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के लिए यहां के बाशिंदे या तो गोंडा जाते हैं या अन्य बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं. एक सीएचसी है जो कि इतनी बड़ी आबादी को सुविधा दे पाने में सफल नहीं है. एक बड़े और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की मांग भी यहां पर काफी समय से की जा रही है. इसके साथ ही यहां पर इंटर कॉलेज तक की पढ़ाई तो ठीक ठाक की जा सकती है. लेकिन किसी भी प्रोफेशनल कोर्स के लिए यहां के छात्र छात्राओं को बाहर जाना पड़ता है. दो पॉलिटेक्निक और तीन आईटीआई बन कर तैयार हैं. लेकिन संसाधनों और शिक्षकों की कमी के कारण उन्हें आज तक शुरू नहीं किया जा सका है.

इसके अलावा इस विधानसभा क्षेत्र में बाढ़ भी अपनी तरह की एक समस्या है. राप्ती और उसकी सहायक नदियों के कटान से जहां हर साल हजारों की संख्या में ग्रामीण प्रभावित होते हैं. वहीं, सड़कें भी खस्ताहाल हो जाती हैं. बाढ़ की समस्या से निजात दिलाने के लिए भाजपा सरकार में काम तो किया गया है. लेकिन अभी और भी बड़े पैमाने पर किए जाने की आवश्यकता है. सादुल्लाह नगर उतरौला मार्ग, गैंडास बुजुर्ग-उतरौला मार्ग, सादुल्लानगर-रेहरा मार्ग, जैसे ग्रामीण या अन्य जिला मार्ग गड्ढों से भरे पड़े हैं.

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