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गोरखपुर में मनीराम विधानसभा सीट से हार गए थे यूपी के सीएम रहे त्रिभुवन नारायण सिंह

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Published : Jan 13, 2022, 8:20 PM IST

गोरखपुर में मनीराम विधानसभा सीट पार्टियों के लिए हमेशा प्रतिष्ठा का सवाल होती थी. इस सीट पर हुए उप चुनाव में मुख्यमंत्री रहे त्रिभुवन नारायण सिंह को हार का सामना करना पड़ा था.

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गोरखपुर में मनीराम विधानसभा सीट

गोरखपुर: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की रणभेरी बज चुकी है. इसी के साथ प्रदेश की राजधानी का माहौल जितना गरम है, वैसा ही हाल गोरखपुर का है. यह सीएम योगी आदित्यनाथ का राजीनीतिक क्षेत्र और गढ़ भी है. गोरखपुर की मनीराम विधानसभा सीट से उप चुनाव लड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे त्रिभुवन नारायण सिंह को भी हार का सामना करना पड़ा, तो 2018 के लोकसभा उप चुनाव में बीजेपी और योगी की सीट से भाजपा को भी हाथ धोना पड़ा.

गोरखपुर में मनीराम विधानसभा क्षेत्र वर्तमान में अस्तित्व में नहीं है. परिसीमन के बाद इसका क्षेत्र गोरखपुर सदर और पिपराइच विधानसभा का हिस्सा हो गया है. गोरखनाथ मंदिर की पहले की अपेक्षा पकड़ अब कमजोर पड़ गयी है, जबकि महंत अवेद्यनाथ यहां से कई बार विधायक चुने गए थे.


गोरखपुर में राजनीतिक बदलाव की बयार लोकसभा सीट से शुरू होती है. वर्ष 1967 में गोरखनाथ पीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ गोरखपुर से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे, लेकिन वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे. 1969 में उनकी मृत्यु के बाद उनके शिष्य और उत्तराधिकारी महंत अवेद्यनाथ उप चुनाव लड़े थे. प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार थी, फिर भी महंत अवेद्यनाथ ने उपचुनाव में जीत हासिल की. ऐतिहासिक उप चुनाव वर्ष 1971 में जिले की मानीराम विधानसभा सीट पर हुआ था.

सत्ताधारी दल के उम्मीदवार के रूप में प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह उर्फ टीएन सिंह चुनाव हार गए. टीएन सिंह 18 अक्टूबर 1970 से चार अक्टूबर 1971 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. उस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस (संगठन) के अलावा जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और भारतीय क्रांति दल की गठबंधन सरकार बनी थी और कांग्रेस (संगठन) के सदस्य टीएन सिंह को विधायक दल का नेता चुना गया था. उस समय उत्‍तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की सरकार खतरे में पड़ गई थी और उन्‍हें कार्यकाल पूरा होने से पहले हटना पड़ा. ऐसे में टीएन सिंह को उत्तर प्रदेश की कमान सौंप दी गई थी.



टीएन सिंह पहले ऐसे नेता थे, जो बिना किसी सदन का सदस्य रहते हुए मुख्यमंत्री बनाए गए थे. इसके बाद उनके मुख्यमंत्री पद की नियुक्ति को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय पाण्डेय कहते हैं कि उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने दुनिया भर में प्रचलित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए उनकी नियुक्त को जायज ठहराया था. शीर्ष अदालत ने छह महीने के अंदर उन्हें किसी एक सदन का सदस्य होने का निर्देश भी दिया था.

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सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, 1971 में टीएन सिंह मानीराम विधानसभा सीट से सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस (संगठन) की ओर चुनाव मैदान में उतरे थे. गोरखनाथ मठ का उन्हें समर्थन भी हासिल था. इस सीट से कांग्रेस ने रामकृष्ण द्विवेदी को अपना उम्मीदवार बनाया था, जिसके बाद यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई थी. यहां तक कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कांग्रेस उम्मीदवार रामकृष्ण द्विवेदी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए गोरखपुर आई थीं.

इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ने मुख्यमंत्री टीएन सिंह को 16 हजार मतों से हराकर उपचुनाव में जीत हासिल की थी. टीएन सिंह साल 1979 से लेकर 1981 तक पश्‍चिम बंगाल के राज्‍यपाल भी रहे थे. तीन अगस्‍त 1982 को उनका निधन हो गया था.

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