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Jai Bhole Nath: नागौर में भी हैं पशुपतिनाथ, लिबिया के तांबे से गढ़ी गई प्रतिमा...यहां दिन में 4 बार होती है महाआरती

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Published : Jul 25, 2022, 6:15 AM IST

Jai Bhole Nath
नागौर में भी हैं पशुपतिनाथ

नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को भला कौन नहीं जानता? माना जाता है कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों के बाद पशुपतिनाथ के दर्शन से ही तीर्थ का पूर्ण फल मिलता है. काठमांडू के हृदय स्थल में बसे मंदिर की तर्ज पर ही राजस्थान के नागौर में भी पशुपतिनाथ मंदिर है (Nagaur ke Pashupatinath). पगोड़ा शैली में बने इस शिव मंदिर में भक्तगण बड़ी तादाद में सावन में जुटते हैं. आस्थावानों के इस केन्द्र में संख्या 4 का बहुत महत्व है! आइए जानते हैं...

नागौर. शहर से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मांझवास गांव में बसे हैं पशुपतिनाथ. शिव मन्दिर जो नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर ही गढ़ा गया है. करीब तीन दशक पहले ही इसकी नींव रखी गई. विशेषताओं से परिपूर्ण है नागौर के पशुपतिनाथ. आज से करीब साढ़े तीन दशक पहले 1982 में योगी गणेशनाथ ने इस मंदिर की नींव रखी थी और 15 वर्ष बाद इस मंदिर में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी.

काठमांडू के मंदिर का Replica: भगवान शिवशंकर की प्रतिमा पशुपतिनाथ महादेव मंदिर जैसी ही है (Nagaur ke pashupatinath). गर्भगृह ढांचा भी हूबहू! पंचमुखी भगवान भोले की मूर्ति है. एक शिवलिंग और चार मुख हर दिशा में. हर मुख के आगे एक द्वार भी खुलता है वो भी ठीक नेपाल वाले भगवान पशुपतिनाथ की तर्ज पर. हर साल शिवरात्रि और सावन महीने में यहां मेला भरता है.

क्या है खास? : मन्दिर की प्रतिमा अष्टधातु से बनी है. जो तांबा लगा है वो खास तौर पर लीबिया से मंगवाया गया था. मन्दिर के आस पास सैकड़ों की संख्या में पेड़ पौधे लगे हैं. जिसका ध्येय पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना भी है. मन्दिर महंत स्वरूप नाथ ने बताया कि मंदिर में स्थापित यह पहली ऐसी मूर्ति है जिसमें पारा भी शामिल है. मूर्ति का वजन 16 क्विंटल 60 किलो है और 1998 में मूर्ति स्थापना से पहले इस मूर्ति को 12 ज्योतिलिंग के दर्शनार्थ घुमाया गया था. सभी ज्योतिलिंग के दर्शन करने में डेढ़ महीने से भी ज्यादा का समय लगा था (Pashupatinath Mandir Nagaur) और उसके बाद यहां मांझवास में 121 कुण्डीय यज्ञ का आयोजन किया गया था, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया. महंत का दावा है कि इस शैली का भारत में यह पहला मन्दिर है.

यहां दिन में 4 बार होती है महाआरती

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काठमांडू जा आया विचार: मन्दिर के पुजारी पण्डित रामनिवास ने बताया कि इस मंदिर में सर्वप्रथम गणेशनाथ ने ही मूर्ति की स्थापना की. उसके बाद वह नेपाल गए वहां उन्होंने काठमांडू शैली का पशुपतिनाथ मंदिर देखा तो उन्होंने सोचा कि ऐसा मंदिर क्यों ना नागौर में भी बनाया जाए. उनकी सोच थी कि आम आदमी वहां जा नहीं सकता इस लिए वह वहां से मंदिर का नक्शा लेकर आये फिर यहां इस मंदिर की नींव रखी.

4 बार महाआरती: इस मंदिर की यह विशेषता है कि यहां हर दिन 4 बार शिवशंकर की महाआरती होती है. प्रथम आरती पूरबमुखी सुबह 7 बजे होती है. दूसरी उत्तरमुखी 10 बजे, फिर 4 बजे दक्षिणमुखी और आखिरी पश्चिममुखी की आरती शाम 7 बजे होती है. इन आरतियों के दर्शन के लिए देश भर से श्रद्धालु आते हैं. मंदिर में जो भगवान महाकाल की मूर्ति स्थापित है वह भी 4 मुख की है. इसमें एक मुख खुद शिवलिंग का है इस लिए सब इसे पंचमुखी कहते हैं. चार मुख व चार आरती के साथ यहां पूरे साल में 4 मेले भी भरते हैं.

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गुफा भी यहां: इस मंदिर में एक गुफा भी है जिसकी अलग मान्यता है. इस गुफा को गणेशनाथ ने अपने हाथों से बनाया था और फिर इसी गुफा में बैठकर तपस्या की थी. गुफा में बैठकर गणेशनाथ ने 24 लाख बार गायत्री का जाप किया था. इस जाप से उन्हें स्वयं गोरखनाथ के दर्शन हुए थे. इसके बाद से ही गणेशनाथ को सिद्ध पुरुष के तौर पर ख्याति मिली. कहा जाता है कि गणेशनाथ के मुख से जो वचन निकल जाते थे वो सत्य और सिद्ध हो जाते थे. मंदिर बनाने के लिए उन्होंने 14 साल इसी गुफा में बिताए थे और खूब भक्ति की. इस अवधि में उन्होंने अन्न का त्याग कर डाला था.

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भक्त की साधना से पशुपतिनाथ: आज गणेशनाथ जैसे भक्तो के कारण ही नागौर शहर से 16 किलोमीटर दूर छोटे से गांव मांझवास में नेपाल सरीखा पशुपतिनाथ मंदिर श्रद्धालुओं को दिख जाता है. हर साल लगने वाले मेले में लाखों संख्या में भक्त पहुंचते हैं और महादेव के दर्शन कर उनसे इच्छा अनुसार वर मांगते हैं (sawan ka somvar).

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