Sawan 2022 : जयपुर शहर के इतिहास से भी पुराना है ये शिव मंदिर, पूरे सावन गूंजेगा 'बोल बम ताड़क बम' का जयकारा

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Published : Jul 13, 2022, 8:57 AM IST

Updated : Jul 13, 2022, 4:41 PM IST

Tarkeshwar Mahadev Temple

देशभर में मौजूद मंदिर अपनी-अपनी मान्यताओं के साथ-साथ अपनी विशेषता के कारण प्रसिद्ध हैं. ऐसा ही एक मंदिर पिंक सिटी यानी की जयपुर में मौजूद है. यह मंदिर भगवान भोलेनाथ का है, जहां सावन के महीने (Sawan 2022) में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. ताड़केश्वर महादेव मंदिर इस शहर के इतिहास से भी पुराना है. आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य.

जयपुर. छोटी काशी में सावन (Sawan 2022) के पहले ही दिन भगवान शिव के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और गलता तीर्थ से कावड़ लाकर जलाभिषेक का दौर शुरू हुआ है. यहां के प्रमुख और प्राचीन शिव मंदिरों में शामिल ताड़केश्वर मंदिर में भी यही नजारा देखने को मिल रहा है. ये मंदिर श्मशान भूमि पर बना है और यहां शिवलिंग स्वयं भू है. आसपास बड़ी संख्या में ताड़ के वृक्ष होने की वजह से ये शिवलिंग ताड़केश्वर नाथ कहलाए.

1727 में आमेर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की, लेकिन ये ताड़केश्वर मंदिर के शिवलिंग जयपुर की स्थापना से पहले ही यहां स्थापित है. ताड़केश्वर महादेव मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण जयपुर शहर की स्थापना के समय ही हुआ. इससे पहले यहां छोटा मंदिर बनाया गया था. जयपुर रिसायत से वास्तुविद विद्याधर भट्टाचार्य ने ही इस मंदिर की रूपरेखा तैयार की. मंदिर महंत बम महाराज ने बताया कि ताड़केश्वर महादेव मंदिर को पहले ताड़कनाथ के नाम से जाना जाता था. ये शिवलिंग स्वयंभू है यानी स्वतः प्रकट हुए हैं. इनकी किसी ने स्थापना नहीं की है. उन्होंने बताया कि वर्तमान मंदिर के स्थान पर ताड़ के वृक्षों का जंगल था.

जयपुर शहर के इतिहास से भी पुराना है ये शिव मंदिर.

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आमेर स्थित अंबिकेश्वर महादेव मंदिर के व्यास (मंदिर महंत के पूर्वज) सांगानेर जाते समय यहां पर कुछ समय के लिए रुके थे. यहां उन्होंने देखा कि एक बकरी अपने बच्चों को बचाने के लिए शेर से मुकाबला कर रही थी. कुछ समय बाद इस लड़ाई में शेर बकरी से हार गया और वहां से भाग गया. इस घटना के बाद उन्हें जमीन के नीचे से कुछ विचित्र आवाज सुनाई दी. जिसकी जानकारी उन्होंने सवाई जयसिंह को दी. तब राजा ने अपने दीवान विद्याधर को यहां भेजकर खुदाई करवाई तो उसमें स्वयं-भू शिवलिंग निकले. तब दीवान ने ताड़ वृक्षों से आच्छादित भूमि होने के कारण इसे ताड़केश्वर महादेव के नाम से पुकारा और इसी नाम से श्मशान स्थल पर ताड़केश्वर मंदिर का निर्माण करवाया. इसके बाद व्यास परिवार को सेवा पूजा के लिए यहां भेजा. तभी से व्यास परिवार की पीढ़ियां ही मंदिर की सेवा पूजा करते आ रहे हैं.

इसी मंदिर में पीतल के विशाल नंदी महाराज भी हैं. बताया जाता है कि एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है जहां नंदी महाराज शिवलिंग के सामने नहीं बल्कि दाएं तरफ है. मंदिर महंत बम महाराज ने बताया कि शिवलिंग स्वयंभू है बाकी नंदी महाराज बाद में तांत्रिक पद्धति से स्थापित हुए हैं. उन्होंने बताया कि ये प्रत्यक्ष हैं और हर भक्त से खुद साक्षात्कार करते हैं.

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वहीं, महंत परिवार के मनीष व्यास ने बताया कि सावन के महीने में पंचामृत से अभिषेक, विशेष पूजा-अर्चना कर बाबा का शृंगार भी किया जाता है और पूरे सावन कावड़िए गलता तीर्थ से जल लाकर भगवान का जलाभिषेक करते हैं. इस मंदिर में पहुंचने वाले भक्त भी पीढ़ियों से यहां आ रहे हैं. एक भक्त ने बताया कि जब जयपुर आए थे, तब महज एक कप और एक कटोरी थी, और आज बाबा का दिया हुआ सब कुछ है. वहीं एक अन्य श्रद्धालु ने बताया कि वो सालों से यहां आ रहे हैं. करीब 3 से 4 घंटे हर दिन यहां पूजा करते हैं. यहां उन्होंने कोई चमत्कार तो होता नहीं देखा, लेकिन इस भागती दौड़ती जिंदगी में यहां आकर मन को शांति जरूर मिलती है, जो किसी चमत्कार से कम भी नहीं.

ताड़केश्वर महादेव के प्रति जयपुर वासियों में गहरी आस्था है. सावन के महीने में भगवान को जल अर्पित करने के लिए यहां लंबी कतारें लगती हैं और सावन के सोमवार को तो तड़के चार बजे से ही 'बोल बम-ताड़क बम' के उद्घोष लगाते हुए भक्त लाइन लगा लेते हैं. ताकि मंदिर खुलने पर शिवलिंग का अभिषेक कर सकेंय माना जाता है कि यहां श्रद्धा और सेवाभाव से की गई आराधना से मनोकामना पूर्ण होती है.

Last Updated :Jul 13, 2022, 4:41 PM IST
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