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जोधपुर: ग्रामीण ने शुरू की विलुप्त होते 'किंग ऑफ डेजर्ट' को फिर से मरुस्थल में उगाने की कवायद

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Published : Jul 16, 2020, 4:57 PM IST

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किंग ऑफ डेजर्ट' को फिर से मरूस्थल में उगाने की कवायद

जोधपुर के ओसियां क्षेत्र के निकटवर्ती रायमलवाड़ा गांव के सैकड़ों ग्रामीणों ने इस सेवण घास यानी 'किंग ऑफ डेजर्ट' को फिर से उगाने की अनूठी पहल की है. जानें क्या है सेवण खास और इसकी खूबियां.

ओसियां (जोधपुर). सेवण को रेगिस्तान के घासों का राजा भी कहा जाता है. सेवण घास सूखा रोधी एवं कम व अधिक तापमान की स्थिति में भी आसानी से वृद्धि कर लेती है. जिसके कारण यह रेगिस्तान में आसानी से उगाई जाती है. सेवण घास प्रमुख रूप से राजस्थान के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर और श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के कुछ भागों में पाई जाती है. लेकिन बदलते समय और सरकार व किसानों की उदासीनता के चलते यह विलुप्ति की कगार पर है.

जोधपुर के ओसियां क्षेत्र के निकटवर्ती रायमलवाड़ा गांव के सैकड़ों ग्रामीणों ने इस अमूल्य घास को फिर से उगाने की अनूठी पहल की है. ग्रामीणों ने अपने स्तर पर 4 लाख 50 हजार रुपए की सहयोग राशि जुटाकर करीब 1500 बीघा ओरण भूमि पर सेवण खास उगाने की कवायद शुरू की है.

किंग ऑफ डेजर्ट' को फिर से मरुस्थल में उगाने की कवायद

क्या है ओरण भूमि

ओरण का मतलब इस प्रकार की भूमि से है, जो समुदाय द्वारा अपने इष्ट या महापुरूषों के नाम पर वन्य जीव जन्तुओं, पशु पक्षियों आदि के निर्भय जीवन निर्वह्न के लिए सुरक्षित रखी गई है. जिसमें वृक्ष काटना तो दूर वृक्ष की टहनी काटना भी निषिद्ध माना जाता है. ओरण शब्द का तात्पर्य अरण्य से है.

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ग्रामीणों से इस ओरण भूमि पर जेसीबी से बबूल, झांडिया हटाकर साफ-सफाई की और करीब 50 टैक्ट्ररों की मदद से 250 बीघा जमीन पर सेवण घास उगाना शुरू किया है. गौरतलब है कि रायमलवाड़ा गांव में पिछले साल भी ग्रामीणों ने प्रायोगिक तौर पर 20 बीघा ओरण भूमि पर सेवण घास लगाकर पौधरोपण किया था. जो पूर्ण रूप से सफल रहा था.

'किंग ऑफ डेजर्ट' के नाम से मशहूर यह घास

प्रगतिशील किसान गोपाल जान्दू बताते हैं कि 'किंग ऑफ डेजर्ट' के नाम से मशहूर सेवण घास मरुस्थली इलाके में सालों से पशुओं का मुख्य आहार रही है. सेवण घास पशुधन के लिए सबसे पौष्टिक आहार मानी जाती है, लेकिन इसकी उपलब्धता दुर्लभ होती जा रही है. सालों पहले ओरण-गोचर में सेवण घास अधिक मात्रा में हुआ करती थी. बदलते समय के साथ सिमटते दायरे से पशुधन के स्वास्थ्य और उत्पादन क्षमता पर स्पष्ट कुप्रभाव नजर आ रहा है.

सेवण घास के बीज एक बार उगने के बाद चारों ओर बिखर जाते हैं. इससे आगामी दिनों में कम बरसात में ये खुद ही अंकुरित हो जाएंगे. जिससे पशुपालकों को सालाना करीब 50 लाख रुपए की बचत होगी. साथ ही गांव की बंजर और अनुपयोगी भूमि भी उपयोगी बन जाएगी.

सेवण के लुप्त होने के एक कारण यह भी

सरकार और किसानों की उदासीनता से ओरण, गोचर और चरागाहों में भी सेवण घास लुप्त हो चुकी है. आधुनिक मशीनों के अधिक प्रयोग से भी इनकी उत्पादकता पर प्रहार हुआ है. गोचर भूमि पर अंधाधुंध अतिक्रमण के कारण भी दायरा सिकुड़ने लगा. वर्तमान में वन विभाग, कृषि अनुसंधान विभाग, कृषि विभाग आदि सरकारी महकमों द्वारा किए जा रहे प्रयास नाकाम साबित हो रहे हैं.

पशुओं के लिए लाभदायक है सेवण घास

सेवण घास का वैज्ञानिक नाम लासीरूस स्किंडिकस है. यह पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर और बीकानेर जिलों के बेहद शुष्क क्षेत्र में हल्के रेतीले और कम ऊंचे टिब्बों व 250 मिमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है. यह बारहमासी घास है. जो करीब 20 वर्ष तक उगी रह सकती है. इसका चारा पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है, जो पशुओं के लिए लाभदायक होता है.

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रेगिस्तान में वनस्पति बहुत ही कम मिलती हैं, जो भी होती हैं, वो कंटीली होती हैं. पोषण लायक वनस्पति नहीं होने से रेगिस्तान में दूर-दूर तक जीव नहीं मिलते हैं, लेकिन सेवण घास सामान्य घास की तरह हरी और पौष्टिक होती है. यह दस साल तक भंडारण करके रखने के बावजूद तो खराब नहीं होती हैं और न इसके पोषक तत्वों में कमी आती हैं, इसलिए वनस्पति शास्त्री इसे 'किंग ऑफ डेजर्ट' नाम से पुकारते हैं.

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