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Rajasthan : यहां बच्चे सो जाते हैं भूखे, सिर पर नहीं है छत, पाक विस्थापितों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं !

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Published : Jun 19, 2023, 10:11 PM IST

Pakistani Migrants Suffering due to Cyclone
जैसलमेर में पाक विस्थापितों की हालत

राजस्थान में बिपरजॉय तूफान के बीच जैसलमेर में रह रहे पाकिस्तानी विस्थापितों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है. पाकिस्तानी विस्थापितों को जिस जगह रहने के लिए जमीन मिली है, वहां मूलभूत सुविधाओं के लिए परिवार के लोग तरस रहे हैं.

जैसलमेर में पाक विस्थापितों के हाल

जैसलमेर. राजस्थान में बिपरजॉय तूफान के बीच जहां प्रशासन लोगों को सतर्कता के साथ घरों में रहने के लिए अपील कर रहा है, वहीं जैसलमेर में खुले आसमान के नीचे जीवन गुजारने को मजबूर पाक विस्थापितों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. पाकिस्तान में मिल रही प्रताड़ना को झेलकर भारत की सरजमीं पर आए पाक विस्थापितों ने सोचा होगा कि अब सुकून के साथ जीवन बसर कर पाएंगे, लेकिन जैसलमेर में पहले बस्ती उजड़ने और उसके बाद रहने के लिए मिली जगह ने इन परिवारों को विचलित कर दिया है.

जैसलमेर प्रशासन की कार्यशैली पर उठे सवाल : खुले आसमान के नीचे जैसे-तैसे जीवन गुजारने को मजबूर पाक विस्थापितों ने बातचीत में कहा कि सिर से बोझ की तरह उतारकर फेंक दिया है. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने अवैध बताकर उनकी बस्ती को उजाड़ दिया है. अब खुले में ही रहकर चूल्हा जलाने को मजबूर हैं. जैसलमेर में पाकिस्तान से आए हिन्दू विस्थापित परिवारों को जमीन अलॉटमेंट के मामले में एक बार फिर प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे हैं. इन विस्थापितों की नई बस्ती को लेकर जिला प्रशासन फिर से कटघरे में है. जिला मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर मूल सागर इलाके में नई बस्ती में पाकिस्तानी विस्थापित परिवारों को जमीन आवंटित की गई है.

Pakistani Migrants Suffering due to Cyclone
कुछ यूं गुजर रहा पाक-विस्थापितों का जीवन

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गुजर-बसर करना मुश्किल : मौके के सूरत-ए-हाल बयां करते हैं कि यह जगह आज के हालात में कॉलोनी बसाने के लिए मुफीद नहीं है. सहूलियतों को लेकर कलेक्टर टीना डाबी और उनके प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं. एक तरफ थार के मरुस्थल में तपती पथरीली जमीन है और दूसरी ओर पश्चिमी राजस्थान पर मंडराते हुए बिपरजॉय तूफान के मुसीबत भरे बादल हैं. ऐसे हालात में खुली जमीन पर इन परिवारों के लिए बिना सुविधाओं के गुजर-बसर करना मुश्किल हो चला है.

Pakistani Migrants Suffering due to Cyclone
खुले आसमान के नीचे खाना बनाती महिलाएं

मुश्किलों से जूझ रहे हैं पाक विस्थापित : पाकिस्तानी विस्थापित जसवंतलाल बताते हैं कि उन्हें शहर से काफी दूरी पर मिली जमीन पर विकास के नाम पर नतीजा सिफर ही नजर आता है. यहां सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव होने के कारण रोजाना परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है. पेयजल के लिए वे लोग निजी सप्लाई वाले टैंकर को मुंह मांगे पैसे देने को मजबूर हैं. बारिश के दौरान पथरीले रास्तों पर टैंकर चालक भी आने से कतराते हैं. उन्होंने बताया कि किसी स्वयंसेवी संस्था ने इन परिवारों के लिए पानी की टंकी का इंतजाम तो कर दिया, पर इस टंकी का गला तर आज तक नहीं हो सका.

Pakistani Migrants Suffering due to Cyclone
छत के नाम पर खटिए से सिर ढक रहे पाक विस्थापित

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अवैध बस्ती बताकर हटाया : श्रीदेवी बताती हैं कि उनके परिवार में एक प्रसूता है, प्रशासन ने अवैध बताकर उनकी बस्ती को उजाड़ दिया है. ऐसे में अब प्रसूता के माथे पर छत भी नसीब नहीं हो पा रही है. जहां तक रोटी बनाने की बात है तो खुले में चूल्हा जलाते हैं, पर बीते दिनों से जारी बरसात के कारण चूल्हा भी नहीं जला है. उन्होंने कहा कि हम कलेक्टर टीना डाबी से भी नाराज हैं, इन्होंने वादे तो किए, पर यह वादे पूरे नहीं हो सके.

Pakistani Migrants Suffering due to Cyclone
तूफान से सता रहा डर

जमीन के कागज आज तक नहीं मिले : बस्ती में तीन-चार परिवारों ने पत्थरों को जमा करके अपने सिर पर जुगाड़नुमा कच्ची छत का इंतजाम कर लिया है, लेकिन तूफानी हवाओं में इन्हें भी डर सताता रहता है. मौजू राम बताते हैं कि छोटे बच्चों के साथ कई बार रात को भूखा सोना पड़ता है. मजबूरी में पानी सप्लाई वाले टैंकर भी ज्यादा दाम वसूलते हैं. पाकिस्तान से आए एक अन्य शख्स बताते हैं कि बुनियादी इंतजाम की बात से ज्यादा डर उन्हें इस बात का है कि कहीं उन्हें इस जगह से भी बेदखल नहीं कर दिया जाए, क्योकि सरकार ने जिस जमीन को उनके नाम आवंटित बताया है, उसके कागज आज तक उन्हें नहीं मिले हैं.

Pakistani Migrants Suffering due to Cyclone
यूआईटी ने उजाड़ दिया था बस्ती को

पहले रहा है यह विवाद : जैसलमेर कलेक्टर टीना डाबी के आदेश पर मई में हुई एक कार्रवाई के दौरान यूआईटी ने अमर सागर में बने 50 से ज्यादा परिवारों के कच्चे घर ढहा दिए थे. इन घरों में बच्चों और महिलाओं समेत 150 लोग रहते थे. जिला मुख्यालय से चार किलोमीटर की दूरी पर की गई इस कार्रवाई को लेकर कई सवाल खड़े हुए थे. हालांकि प्रशासन ने तब कैचमेंट एरिया का हवाला देकर बस्ती हटाई थी, जिसके बाद टीना डाबी की जमकर आलोचना हुई और उन्होंने फिर से बस्ती के लोगों को जमीन आवंटन का भरोसा दिलाया था.

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