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National sports day 2023 : एक्सीडेंट ने व्हीलचेयर पर पहुंचाया हौसलों ने खेल के मैदान पर, हारकर भी जीतना सीखाता है स्पोर्ट्स - शताब्दी

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 29, 2023, 7:23 AM IST

Updated : Aug 29, 2023, 7:32 AM IST

Shatabdi Awasthi
सवाई माधोपुर की शताब्दी अवस्थी

जो लोग एकसीडेंट में अपाहिज होने के बाद अपना जीवनलीला समाप्त करने के लिए सोचते हैं. उनके लिए राजस्थान की बेटी शताब्दी अवस्थी एक मिशाल है. जिसने एक्सीडेंट के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और आज पूरा विश्व उन्हें जानता है. राष्ट्रीय खेल दिवस 2023 के मौके पर ईटीवी भारत की शताब्दी अवस्थी से विशेष बातचीत......

राष्ट्रीय खेल दिवस 2023 पर ईटीवी भारत की शताब्दी अवस्थी से विशेष बातचीत

जयपुर. राजस्थान के सवाई माधोपुर की शताब्दी अवस्थी आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. कौन बनेगा करोड़पति के सेट से लेकर खेल के मैदान पर झंडे गाड़ने वाली शताब्दी के नाम के साथ कई उपलब्धियां जुड़ी हुई हैं. नेशनल स्पोर्ट्स डे के मौके पर उन्हीं शताब्दी ने अपने संघर्ष की कहानी को बयां करते हुए हारकर सुसाइड अटेम्प्ट करने वालों को मैसेज देते हुए कहा कि हार सुसाइड नहीं बल्कि जीतना सिखाती है.
'मंजिलें उन्हीं को मिलती है,
जिनके सपनों में जान होती है,
पंखों से कुछ नहीं होता,
हौसलों से उड़ान होती है.'

Rajasthan daughter Shatabdi Awasthi
सवाई माधोपुर की शताब्दी अवस्थी

ऐसे ही हौसले रखने वाली पैरालंपिक शताब्दी अवस्थी से ईटीवी भारत ने राष्ट्रीय खेल दिवस पर खास बातचीत की. शॉट पुट और जैवलिन थ्रो में कई पदक जीत चुकी शताब्दी ने राष्ट्रीय खेल दिवस पर बधाई देते हुए कहा कि उन्हें बहुत गर्व होता है जब गोल्डन मैन ऑफ़ मिलेनियम कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का जिक्र होता है. अपने संघर्ष की कहानी को बयां करते हुए शताब्दी में बताया कि वो शुरू से स्पोर्ट्सपर्सन नहीं थी. बस देश की सेवा करने का जुनून था. आर्म्ड फोर्सज ज्वाइन करना चाहती थी, लेकिन 2006 में एक्सीडेंट हो गया. जिसकी वजह से हमेशा के लिए व्हीलचेयर पर आ गईं. उनकी कमर के नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर दिया. तब उनकी सफर को एक ब्रेक लगा. समझ नहीं आया कि जिंदगी अब क्या रुख लेगी. या तो बिस्तर पर पूरी लाइफ निकाल दें या फिर कुछ अलग हटकर दुनिया के सामने आएं. वहां पर उनकी एजुकेशन उनकी हथियार बनी. एक्सीडेंट तक वो ग्रेजुएशन कंप्लीट कर चुकी थी, इसलिए कंपटीशन एग्जाम के लिए एलिजिबल थी. 2010 में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में प्रोविसनरी ऑफिसर के पद पर सिलेक्शन भी हुआ.

Shatabdi Awasthi Medals
शताब्दी अवस्थी के मेडल्स

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उन्होंने बताया कि इसके बाद 2012 में कौन बनेगा करोड़पति ऐसा मूवमेंट उनकी लाइफ में आया, जिसने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया. इस शो ने उन्हें नई पहचान दी. दुनिया के सामने वो अपने स्ट्रगल को लेकर आई और उस शो में जाने का मकसद भी यही था. वो लोगों को बताना चाहती थी कि अगर चाह है और बीमारी को हराने की ठान लें तो ये तय मान कर चलिए कि ऐसा आप कर सकते हैं. इस शो से इंटरनेशनल लेवल पर पहचान मिली, लेकिन उनका सपना देश के लिए कुछ करने का था. वो उन्हें निरंतर परेशान करता रहता था. आलम ये था कि रात में सोते-सोते जग जाया करती थी, सपने में कभी बॉर्डर तो कभी नेवी के शिप दिखाई दिया करते थे.

Rajasthan daughter Shatabdi Awasthi
राजस्थान के सवाई माधोपुर की शताब्दी अवस्थी

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अपनी भारत जर्नी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 2016 में रियो पैरालंपिक खेलों में भारत ने चार खिलाड़ियों ने पदक जीते थे. 2016 पैरालंपिक के लिए ट्रांसफॉर्मिंग ईयर था. जहां लोग जानने लगे थे कि पैरालंपिक होता क्या है. इस दौरान सुंदर गुर्जर, देवेंद्र झाझड़िया और अन्य खिलाड़ियों का मेडल आया, तब पूरे देश में पैरा ओलंपिक की बात हो रही थी. तभी से उन्होंने स्पोर्ट्स शुरू किया और 2017 में पहला इंटरनेशनल टूर्नामेंट दुबई में सिल्वर मेडल जीता. ये वो क्षण था जब इंडिया की जर्सी उन्हें मिली. तब 135 करोड़ लोगों को वो रिप्रेजेंट कर रही थी और जब अनाउंस हुआ शताब्दी अवस्थी फ्रॉम इंडिया, वो लाइन आज भी उनके कानों में गूंजती हैं. उस फीलिंग को शब्दों में बयां नहीं कर सकते. उनका सपना था देश के लिए कुछ करने का, वो बॉर्डर पर भले ही नहीं जा पाई, लेकिन खेलों के माध्यम से काफी हद तक उसे सपने को जीया.

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उनका मानना है कि जिंदगी में कभी रुकना नहीं चाहिए और स्पेशली जो हादसा उनके साथ हुआ, उससे लगता है कि भगवान को उन पर भरोसा था कि वो इस स्थिति से लड़ जाएगी. इसी वजह से वो इसे अभिशाप नहीं, बल्कि वरदान मानती है. क्योंकि इस एक्सीडेंट ने उन्हें अपने आप से रूबरू करवाया और एक्सीडेंट के बाद भी उन्हें पता चला कि उनमें क्या क्षमताएं हैं. जिस तरह सांस और घड़ी कभी नहीं रुकती, इसी तरह व्यक्ति को खुद कभी रुकना नहीं चाहिए. सेटिस्फेक्शन कभी लाइफ में नहीं आना चाहिए. हमेशा आगे बढ़ना चाहिए और आज बहुत से लोग उन्हें अपना प्रेरणा स्रोत मानते हैं. इसलिए वो चाहती हैं कि वो हमेशा संघर्ष करती रहे और यदि किसी को इंस्पायर कर पाती है, तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है.

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स्पोर्ट्स को सेकंड प्रायोरिटी या नजअंदाज करने वालों को मैसेज देते हुए उन्होंने कहा कि लोग इस फील्ड को मजबूरी में चुनते हैं. कहीं कुछ नहीं कर पा रहे होते तो स्पोर्ट्स में जाने की सोचते हैं. जबकि आज नीरज चोपड़ा और उनके जैसे कई उदाहरण मौजूद हैं जिनके पास नेम, फेम सब कुछ हैं. उन्होंने पेरेंट्स को इंगित करते हुए कहा कि जो ये चाहते हैं कि उनका बच्चा सिक्योर और सेटल्ड हो तो स्पोर्ट्स नाम, पैसा और रिस्पेक्ट कमाने का मौका देता है. यदि पैसा ही सब कुछ होता तो देश के उद्योगपति इतने अमीर है कि सारे मेडल भारत के पास होते. रिस्पेक्ट एक ऐसी चीज है, जो पैसे से नहीं आ सकती उसे कमाना पड़ता है. स्पोर्ट्स आपको जिंदगी भर फिट रखता है. यदि आप स्पोर्ट्स छोड़ भी देते हैं, फिर भी फील्ड से रिश्ता नहीं छोड़ पाते.

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आखिर में उन्होंने कहा कि स्पोर्ट्स सीखाता है कि हार को किस तरह एक्सेप्ट किया जाता है। जिस तरह एक टूर्नामेंट में 10-15 लोग पार्टिसिपेट करते हैं, लेकिन मेडल तीन ही आते हैं। बाकी जो लोग हार जाते हैं वो अपनी कमियों पर काम करते हैं और अगले दिन से फिर प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं। जबकि नॉर्मल लाइफ में आज कितने लोग सुसाइड कर रहे हैं। लोग हार को एक्सेप्ट नहीं कर पा रहे हैं। एग्जाम में मार्क्स नहीं आए, बॉस से नहीं बन रही, घर में लड़ाई हो गई, ऐसी कंडीशन में भी लोग सुसाइड कर लेते हैं। ये एक डरावनी स्थित है। स्पोर्ट्स इससे बचाता है। क्योंकि स्पोर्ट्स पर्सन कभी हार नहीं मानता। कभी सुसाइड के लिए नहीं सोचता हमेशा अगली जीत की तैयारी करता है।

Last Updated :Aug 29, 2023, 7:32 AM IST
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