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सरदारशहर उप चुनाव: बीजेपी के लिए आंकलन का मौका, तो कांग्रेस सहानुभूति कार्ड का ले सकती है सहारा

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Published : Nov 7, 2022, 4:47 PM IST

Updated : Nov 7, 2022, 6:23 PM IST

प्रदेश में खाली हुई सरदारशहर विधानसभा सीट के उप चुनाव होने (By election on Sardarshahar assembly seat) हैं. विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और बीजेपी इस सीट के नतीजों से अपनी पार्टी की हवाओं का रुख का आंकलन करेगी. जहां बीजेपी के लिए इस सीट पर काम करने के लिए बहुत कुछ है, तो कांग्रेस सहानुभूति का कार्ड खेल सकती है. इस रिपोर्ट में प​ढ़िए पूरा गणित...

By election on Sardarshahar assembly seat, BJP and Congress preparations for win
सरदारशहर उप चुनाव: बीजेपी के लिए आंकलन का मौका, तो कांग्रेस सहानुभूति कार्ड का ले सकती है सहारा

जयपुर. सरदारशहर विधानसभा सीट पर चुनाव की तारीख का एलान हो गया है. इस चुनावी एलान के साथ ही कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां चुनावी गणित में जुट गई (BJP planning for Sardarshahar by election) हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव से ठीक 1 साल पहले हो रहे इस 1 सीट के जरिये बीजेपी अपनी राजनीतिक हवाओं के रुख का आंकलन करने की भी कोशिश करेगी. कांग्रेस की सहानुभूति वाली इस सीट पर अगर बीजेपी जीत हासिल करती है, तो विधानसभा चुनाव में एक बड़ा आत्मविश्वास पार्टी में लौटेगा.

2023 की राजनीतिक हवाओं का आंकलन: राजस्थान में चुनावी तैयारियों के बीच हाल ही में खाली हुई सरदारशहर विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव की तारीखों का एलान हो गया. निर्वाचन आयोग के अनुसार 5 दिसंबर को मतदान होगा. विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले सरदारशहर सीट के लिए उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल होगा. लेकिन सत्ता में वापसी का सपना देख रही विपक्षी पार्टी के लिए ये चुनाव सेल्फ असेसमेंट का चुनाव भी होगा.

सरदारशहर उपचुनाव पर क्या बोले पूनिया...

हालांकि कांग्रेस के लिए सहानुभूति के लिहाज से कम्फर्ट सीट है, लेकिन बीजेपी इस सीट के नतीजों के जरिये आगामी 2023 के चुनाव की हवाओं का भी आंकलन करेगी. बीजेपी के नजरिए से कांग्रेस की इस मजबूत सीट पर अगर जीत मिलती है, तो आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के समर्थन में जनता का रुख भी सामने आ जाएगा और पार्टी में आत्मविश्वास बढ़ेगा.

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बीजेपी का ब्ल्यू प्रिंट तैयार: मौजूदा वक्त में दोनों ही पार्टियों में अंदरूनी खींचतान रह रहकर सामने आती रही है. फर्क इतना है कि कांग्रेस की खींचतान खुल कर सामने है जबकि बीजेपी में अंदरखाने है. सरदारशहर चुनाव के लिए बीजेपी ने भी अपना ब्ल्यू प्रिंट तैयार कर लिया है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि मुझे लग रहा है कि थोड़े दिनों बाद कांग्रेस पार्टी के पास सहानुभूति का एकमात्र सहारा बचेगा. क्योंकि परफॉर्मेंस की पॉलिटिक्स कांग्रेस नहीं करती रही है.

उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के आने के बाद देश की राजनीति में बदलाव हुआ है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस घोषणा तो करती थी, लेकिन उन्हें पूरा कभी नहीं किया. गहलोत सरकार के कामकाज को सरदारशहर का नौजवान, शहर के लोग, दलित और वंचित देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि 4 साल के कालखंड से कौन खुश है, ये बड़ा प्रश्न है. एक बड़ी तादाद है जो सरकार से नाखुश है. सहानुभूति की हवा पर ना जाएं, व्यावहारिक रूप से काम को धरातल पर देखें, तो कांग्रेस के खिलाफ जनाक्रोश है. सरदारशहर में भी उतना ही है. पूनिया ने कहा कि अभी समय है, उम्मीदवार तय होना है, लेकिन इतना कह सकता हूं कि मानसिक रूप से पार्टी ने अपना ब्ल्यू प्रिंट तैयार किया है और मजबूती से चुनाव लड़ेंगे.

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सहानुभूति लहर की अहम भूमिका: सरदारशहर राजस्थान के चूरू जिले में आता है. सरदारशहर कांग्रेस का गढ़ रहा है. परम्परागत रूप से यह कांग्रेस का प्रभाव वाला क्षेत्र रहा है. हालांकि भाजपा ने भी इस क्षेत्र में अपने पैर जमाए हैं. 2008 में बीजेपी ने यहां जीत हासिल की थी. राज्य विधानसभा में विपक्ष के उप नेता राजेंद्र राठौड़ चूरू जिले की तारानगर सीट का ही विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं. कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा के निधन के कारण सरदारशहर सीट रिक्त हुई है.

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शर्मा ब्राह्मण समाज के कद्दावर नेता रहे हैं और अपने क्षेत्र की राजनीति की धुरी भी रहे हैं. भंवर लाल शर्मा ने अपने क्षेत्र में स्वयं के दम पर भी राजनीति को प्रभावित किया. वह यहां से 7 बार विधायक रह चुके हैं. पहले वे लोकदल, जनता दल से होते हुए कांग्रेस में पहुंचे. कांग्रेस के टिकट पर 4 बार विजयी रहे. उनका जमीनी स्तर पर अच्छा प्रभाव रहा है. इसलिए कांग्रेस यह सीट वापस लाने के लिए कोई कसर छोड़ने वाली नहीं है. यह भी सही है कि उपचुनावों में सहानुभूति लहर की अहम भूमिका रहती है. इस दृष्टि से देखें तो कांग्रेस का पलड़ा यहां फिलहाल भारी है.

यहां कांग्रेस के पास जनाधार है और वह सहानुभूति लहर का सहारा भी ले सकती है. इस हिसाब से कांग्रेस यहां से भंवरलाल शर्मा के परिवार के किसी सदस्य को टिकट दे सकती है. यदि ऐसा हुआ तो भंवरलाल शर्मा के बेटे अनिल शर्मा सीट के संभावित दावेदारों में से एक हैं. भाजपा की ओर से संभावित दावेदारों में फिलहाल पूर्व विधायक अशोक कुमार हैं. इसके अलावा चूरू के प्रधान और जिला प्रमुख रह चुके हरलाल सहारण और भाजपा विधि प्रकोष्ठ के संयोजक रह चुके शिवचरण साहू के नाम राजनीतिक चर्चाओं की हवा में तैर रहे हैं.

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7 विधानसभा उपचुनावों में से 5 जीते: प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक हुए तीन बार में 7 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं. इन उपचुनावों में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है. 7 में से 5 सीटों पर विपक्षी दल बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी है. कांग्रेस ने मंडावा और धरियावद सीट बीजेपी से छीनी हैं, तो दूसरी तरफ सुजानगढ़, सहाड़ा, वल्लभनगर पर अपना कब्जा बरकरार रखा है. बीजेपी केवल राजसमंद सीट को बरकरार रख सकी है.

खींवसर सीट पर हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने अपना कब्जा बरकरार रखा है. कोरोना काल में मंत्री और सुजानगढ़ से विधायक मास्टर भंवरलाल, सहाड़ा से कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी, वल्लभनगर से कांग्रेस विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत, राजसमंद से बीजेपी विधायक किरण माहेश्वरी और धरियावद से बीजेपी विधायक गौतम लाल मीणा का निधन होने के कारण चुनाव हुए थे. मंडावा से BJP विधायक नरेंद्र कुमार और खींवसर से रालोपा विधायक हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने के कारण यहां उपचुनाव हुए थे.

Last Updated :Nov 7, 2022, 6:23 PM IST
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