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पारा 45 डिग्री पार...और परिवार को संभालने की मजबूरी

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Published : May 2, 2019, 12:06 AM IST

Updated : May 2, 2019, 12:23 AM IST

पारा 45 डिग्री पार...और परिवार को संभालने की मजबूरी

सूरज की तेज तपिश भी इन मजदूरों को मेहनत करने से रोक नहीं पाती है. गर्मी हो या सर्दी या फिर बरसात साल भर इनको मेहनत-मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करना पड़ता है.

बूंदी. एक मई को विश्व मजदूर दिवस होता है, लेकिन बूंदी जिले में यह देखने को मिला की मजदूरों के लिए इस दिन के कुछ खास मायने नहीं है. उन्हें तो हर रोज की तरह आज भी दो जून की रोटी की चिंता दिखाई दी.

शहर के पास मजदूरी कर रहे एक श्रमिक ने बताया कि आज जो भी हो, उससे उसे दो जून की रोटी तो मिल ही जाती है. इसलिए काम पर आना था और आ गए, अब आप बता रहे हो कि आज मजदूर दिवस है, हमें तो उसके होने से कुछ विशेष लग नहीं रहा है.अधिकतर मजदूरों को मजबूर होकर काम की तलाश में गांव छोड़ना पड़ता है. मनरेगा में पहले तो काम के बाद भुगतान में परेशानी होती है. इसके साथ ही गांव में किसी बड़े निर्माण में शिकायत होने से काम बंद हो जाता है. इससे मजदूरों को काम नहीं मिल पाता है. कई पंचायतों में मशीनों से काम हो रहा है. कारीगर मजदुर की बात की जाये तो रोज के कारीगर को 500 रोजाना मिला करते थे लेकिन आज वह भी नहीं मिल रहे है.

पारा 45 डिग्री पार...और परिवार को संभालने की मजबूरी

कारीगर मजदुर की बात की जाये तो बूंदी में कारीगर मजदूरों की संख्या काफी है. ऐसे में सभी के पास काम के लाले पड़े हुए है क्योंकि कोर्ट की रोक के बाद से बजरी बंद है. बजरी नहीं आने से इन मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है .अधिकतर जगहों पर ठेकेदार द्वारा मिलीभगत करके बजरी तो मंगवाई जा रही है. लेकिन इन मजदूरों को वहां काम नहीं मिल पा रहा है. जिससे इनके घरों में खाने के लाले पड़े हुए है. मजदूर उनके बच्चों की पढ़ाई तक का खर्चा उठा नहीं पा रहे है.

मजदूरों का कहना है की बजरी की रोक के बाद से हमने हमारे घर का सुख नहीं देखा और मजदुर दिवस पर सरकार से यही कहेंगे की वो हमारी सुन ले और बजरी वापस से शुरू करवा दे. जीससे हमे मजदूरी फिर से मिल जाये. उनका कहना है की हमारे पास केवल 4 माह ही रहते है साल भर में अभी बारिश आने के बाद हमे कोई काम नहीं मिलेगा तो हम कैसे परिवार का पोषण करेंगे.

बूंदी श्रम विभाग की बात की जाये तो बूंदी जिले में 33 हजार श्रमिक पंजीकृत है. इन में से केवल 4700 श्रमिकों को सरकारी योजना का लाभ मिल रहा है. ऐसे में बाकी मजदुर केवल नाम के ही सरकारी योजना का लाभ उठा रहे है. जबकि श्रम विभाग को चाहिए की इन 33 हजार श्रमिकों को लाभ मिले ताकि बजरी एवं अन्य कारणों से मजदूरी नहीं मिलने पर वह अपने परिवार का भरण पोषण ठीक से कर सके.

Intro:पारा 45 डिग्री पार...और परिवार को संभालने की मजबूरी। सूरज की तेज तपिश भी इन मजदूरों को मेहनत करने से रोक नहीं पाती। गर्मी हो, सर्दी हो या फिर बरसात...। साल भर इनको मेहनत-मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करना पड़ता है। बूंदी जिले के हजारो मजदूरों की कहानी की मजदूरी कम काम भी कम इन मजदूरों को देखकर बरबस एक सोच आती है कि इनके दिन कब बदलेंगे। मजदुर दिवस है ऐसे में सभी मजदूरों ने दिवस के माध्यम से सरकार से मांग की है की उनके लिए ऐसी योजना बनाये जिससे उनका घर खर्च चल सके। 




Body:याद रहे कि एक मई को विश्व मजदूर दिवस होता है, लेकिन बूंदी जिले में यह देखने को मिला कि मजदूरों के लिए इस दिन के कुछ खास मायने नहीं है। उन्हें तो हर रोज की तरह आज भी दो जून की रोटी की चिंता दिखाई दी। जिसके बंदोवस्त में वो सुबह सबेरे घर से निकले और जिसको जहां काम मिला, वहां लग गए काम पर। शहर पास मजदूरी कर रहे मजदुर ने बताया कि आज जो भी हो, उससे दो जून की रोटी तो नहीं मिल जाती न। इसलिए काम पर आना था और आ गए, अब आप बता रहे हो कि आज मजदूर दिवस है, हमें तो उसके होने से कुछ विशेष लग नहीं रहा। अधिकतर परेशानी से मजदूरों को मजबूर होकर काम की तलाश में गांव छोड़ना पड़ता है। मनरेगा में पहले तो काम के बाद भुगतान में परेशानी होती है। इसके साथ ही गांव में किसी बड़ेे निर्माण में शिकायत होने से काम बंद हो जाता है। इससे मजदूरों को काम नहीं मिल पाता। कई पंचायतों में मशीनों से काम हो रहा है। कारीगर मजदुर की बात की जाये तो रोज के कारीगर को 500 रोजाना मिला करते थे लेकिन आज वह भी नहीं मिल रहे है। 


कारीगर मजदुर की बात की जाये तो बूंदी में कारीगर मजदूरों की संख्या काफी है ऐसे में सभी के पास काम के लाले पड़े हुए है क्योंकि कोर्ट की रोक के बाद से बजरी बंद है और बजरी नहीं आने से इन मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है अधिकतर जगहों पर ठेकेदार द्वारा मिलीभगत करके बजरी तो मंगवाई जा रही है लेकिन इन मजदूरों को वहां काम नहीं मिल पा रहा है जिससे इनके घरो में खाने के लाले पड़े हुए है। मजदूरों की घर की यह हो चली है की वह एक समय का ही खाना खा पा रहे है यहां तक की उनके बच्चो के पढ़ाई तक का खर्चा उठा नहीं पा रहे है मजदूरों का कहना है की बजरी के बाद से हमने हमारे घर का सुख नहीं देखा और मजदुर दिवस पर सरकार से यही कहेंगे की हम हमारी सुन लो बजरी वापस से शुरू करवा दो तो हमे मजदूरी फिर से मिल जाये। उनका कहना है की हमारे पास केवल 4 माह ही रहते है साल भर में अभी बारिश आने के बाद हमे कोई काम नहीं मिलेगा तो हम कैसे परिवार का पोषण करेंगे। 




Conclusion:बूंदी श्रम विभाग की बात की जाये तो बूंदी जिले में 33 हजार श्रमिक पंजीकृत है और इन मेसे केवल 4700 श्रमिको को सरकारी योजना का लाभ मिल रहा है ऐसे में बाकी मजदुर केवल नाम के ही सरकारी योजना का लाभ उठा रहे है जबकि श्रम विभाग को चाहिए की इन 33 हजार श्रमिको को लाभ मिले ताकि बजरी एवं अन्य कारणों से मजदूरी नहीं मिलने पर वह सरकारी योजना का लाभ उठा सके। 

बाईट - देवीशंकर सैनी , मजदूर
बाईट - वैधशंकर मीना , मजदूर
बाईट - केन्या , मजदुर
बाईट - मोनिका , मजदूर
बाईट - दीपक यादव , श्रम अधिकारी ,बूंदी


Last Updated :May 2, 2019, 12:23 AM IST
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