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Badshah Ki Sawari in Ajmer: बादशाह की शाही सवारी में खर्ची पाने के लिए उमड़े लोग, गुलाल से पटा शहर

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Published : Mar 8, 2023, 8:57 PM IST

Badshah Ki Sawari by Agarwal Samaj in Ajmer
बादशाह की शाही सवारी में खर्ची पाने के लिए उमड़े लोग, गुलाल से पटा शहर

अजमेर के ब्यावर में बादशाह की सवारी धूमधाम से निकाली गई. इस दौरान शहर में अबीर और गुलाल उड़ती नजर आई.

अजमेर. जिले के ब्यावर कस्बे में सुप्रसिद्ध बादशाह की सवारी परंपरा के अनुसार धूमधाम से निकाली गई. बादशाह की सवारी देखने और खर्ची लूटने के लिए हजारों की संख्या में लोग उमड़ पड़े. बादशाह की सवारी के दौरान हर तरफ अबीर और गुलाल उड़ती हुई नजर आई. बादशाह की सवारी के आगे 'बीरबल' भी नाचते गाते दिखाई दिए.

होली के दूसरे दिन यानी बुधवार को ब्यावर कस्बे में धूमधाम से बादशाह की शाही सवारी निकाली गई. अग्रवाल समाज की ओर से बादशाह को तैयार किया गया. परंपरागत श्रृंगार और कपड़े पहनकर बादशाह नगर भ्रमण पर निकले. उनकी सवारी के आगे ब्राह्मण समाज की ओर से परंपरागत वेशभूषा के साथ तैयार बीरबल भी नाचते गाते चल पड़े. बादशाह की सवारी जिस रास्ते से होकर गुजरी. वहां हजारों की संख्या में लोगों ने उनके आगमन का कई घंटों तक इंतजार किया.

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दरअसल बादशाह की सवारी से पहले ही लोगों ने अपनी जगह सुनिश्चित कर ली. ताकि बादशाह के आने पर उनसे मिलने वाली खर्ची आसानी से उन्हें मिल सके. बादशाह की सवारी आने पर कई सामाजिक, राजनीतिक, व्यापारिक संगठनों ने उनका स्वागत किया. बादशाह के आगमन पर जमकर लाल गुलाल उड़ाई गई. इस दौरान बादशाह भी प्रजा रूपी जनता पर खर्ची लुटाते हुए आगे बढ़ते गए. बादशाह की सवारी निकलने से पहले जैन समाज की ओर से सवारी में शामिल लोगों को ठंडाई पिलाई गई.

बादशाह से मिली खर्ची का है विशेष महत्व: बादशाह की सवारी के दौरान खर्ची लूटने की होड़ मची रहती है. बादशाह गुलाल रूपी पुड़िया अशर्फियों के रूप में जनता पर लुटाते हैं. गुलाल रुपी पुड़िया को लोग संभाल कर अपनी तिजोरी या गल्ले में रखते हैं. इस पुड़िया को लक्ष्मी का रूप मानकर पूजा भी जाता है. ऐसे में बादशाह से मिली खर्ची पाने के लिए लोग लालायित रहते हैं. जिस किसी को भी बादशाह से खर्ची मिलती है, वही अपने आप को सौभाग्यशाली मानता है. बताया जाता है कि नगर भ्रमण के दौरान बादशाह करीब सवा लाख गुलाल की पुड़िया खर्ची के रूप में लोगों पर लुटा देते हैं. देर शाम तक बादशाह की नगर भ्रमण करती रही.

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कौन है बादशाह: बताया जाता है कि बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल अग्रवाल थे. एक बार बादशाह अकबर जंगल में शिकार खेलने गए, तब उनके लवाजमे के साथ टोडरमल अग्रवाल भी थे. इस दौरान डाकू ने अचानक हमला कर दिया और अकबर को घेर लिया. तब वाक चातुर्य से टोडरमल ने बादशाह अकबर के साथ असले को भी बचा लिया. इससे बादशाह अकबर इतना खुश हुआ कि उसने टोडरमल अग्रवाल को ढाई दिन की बादशाहत सौंप दी.

इस दौरान बादशाह बने टोडरमल अग्रवाल ने नगर भ्रमण करते हुए गरीब और आमजन पर खूब धन लुटाया. उस घटना की याद में ब्यावर में अग्रवाल समाज ने बादशाह की सवारी निकलने की परम्परा 172 वर्ष पहले शुरू की थी. बताया जाता है कि अंग्रेजों के जमाने में भी बादशाह की सवारी की परंपरा बदस्तूर जारी रही. बकायदा ब्यावर के संस्थापक डिकसन ने बादशाह की सवारी के लिए राजकोष से व्यवस्था भी की थी.

उपखंड कार्यालय के बाहर हुआ गुलाल से युद्ध: परंपरा के अनुसार बादशाह की सवारी उपखंड कार्यालय के सामने से होकर जब गुजरती है, तो कार्यालय से गुलाल सवारी पर उड़ाई जाती है. इसके जवाब में सवारी में शामिल लोग भी गुलाल उड़ाते हैं. बाद में बादशाह की ओर से उपखंड अधिकारी को फरमान सौंपा गया. इसको उपखंड अधिकारी ने पढ़कर सुनाया. बताया जाता है कि फरमान में नगर की समस्याएं लिखी होती हैं. जिसका निराकरण करने के लिए उपखंड अधिकारी आश्वासन देते हैं. उसके बाद बादशाह की सवारी आगे बढ़ जाती है.

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लाल गुलाल से सरोबार हुआ ब्यावर कस्बा: बादशाह की सवारी के दौरान 3 टन से भी अधिक लाल गुलाल का उपयोग होता है. सवारी में केवल लाल गुलाल का ही उपयोग होता है. ऐसा माना जाता है कि लाल रंग लक्ष्मी माता का पसंदीदा है. यही वजह है कि बादशाह की सवारी में और किसी भी रंग की गुलाल का उपयोग नहीं होता. बादशाह की सवारी के दौरान लाल रंग की इतनी गुलाल उड़ाई जाती है कि हवा में ही नहीं सड़कों पर भी गुलाल की परत जम जाती है. बादशाह की सवारी में शामिल हर व्यक्ति लाल गुलाल से रंगा नजर आता है.

सद्भाव का प्रतीक है बादशाह की सवारी: धुलंडी के दूसरे दिन निकलने वाली बादशाह की सवारी में बादशाह अग्रवाल समाज की ओर से बनता है. बादशाह को परंपरागत तरीके से तैयार करने और बादशाह की सवारी को सजाने की जिम्मेदारी अग्रवाल समाज की रहती है. इसी तरह ब्राह्मण समाज की ओर से बीरबल को पारंपरिक रूप से तैयार किया जाता है. जैन समाज बादशाह की सवारी में शामिल लोगों के लिए ठंडाई का इंतजाम करता है. अलग-अलग समाज के लोगों की व्यवस्थाओं में अलग-अलग भूमिका और योगदान रहता है. इसमें मुस्लिम समाज के लोग भी बादशाह की सवारी में अपना सहयोग देते हैं. बादशाह की सवारी ब्यावर की पहचान ही नहीं बल्कि कौमी एकता का प्रतीक भी बन चुकी है.

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