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ख्वाजा गरीब नवाज का 811वां उर्स: दरगाह में बुलंद दरवाजे पर गौरी परिवार चढ़ाता है झंडा, जानें क्या है परंपरा

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Published : Jan 6, 2023, 10:34 PM IST

ख्वाजा गरीब नवाज का 811वां उर्स
ख्वाजा गरीब नवाज का 811वां उर्स

ख्वाजा गरीब नवाज के 811वें उर्स को लेकर अजमेर दरगाह में तैयारियों (811th Urs of Khwaja Garib Nawaz) शुरू हो गईं हैं. ऐसे में 18 जनवरी को दरगाह में बुलंद दरवाजे पर भीलवाड़ा का गौरी परिवार हर साल की तरह झंडा चढ़ाने के लिए आएगा. 250 सालों से गौरी परिवार दरगाह पर झंडा चढ़ाता आया है. जाने इस परंपरा के पीछे की पूरी कहानी...

ख्वाजा गरीब नवाज का 811वां उर्स

अजमेर. अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 811वें उर्स की तैयारियां (811th Urs of Khwaja Garib Nawaz) जोरशोर से चल रही हैं. 18 जनवरी को दरगाह के बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ने के साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत हो जााएगी. दरगाह की सबसे बड़ी इमारत बुलंद दरवाजे पर भीलवाड़ा का गौरी परिवार झंडा चढ़ाता आया है. 22 जनवरी को रजब का चांद दिखने पर उर्स का आगाज होगा.

अजमेर में विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज का 811वां उर्स अब नजदीक ही है. ख्वाजा गरीब नवाज के चाहने वाले उर्स के मद्देनजर देश-दुनिया से अजमेर पहुंच रहे हैं. उर्स के मौके पर अजमेर आने वाले जायरीन की सहूलियत के लिए प्रशासनिक स्तर पर जोरशोर से तैयारियां की जा रही हैं. अजमेर में 18 जनवरी को दरगाह परिसर में सबसे ऊंची इमारत बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाया (flag offeres on buland darwaza on 18 January) जाएगा. हर साल उर्स पर शानो शौकत के साथ झंडा चढ़ाने की रस्म अदा की जाती है.

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गौरी परिवार चढ़ाएगा झंडा
इस दिन दरगाह गेस्ट हाउस से जुलूस के रूप में गौरी परिवार और उनके साथ दरगाह के खादिम बुलंद दरवाजे तक झंडा लेकर पहुंचते हैं. झंडे को चूमने के लिए जायरीन उतावले रहते हैं. बैंडबाजों के साथ जुलूस के रूप में झंडा बुलंद दरवाजे तक लाया जाता है. इसके बाद झंडे को बुलंद दरवाजे के शिखर पर चढ़ाया जाता है. इस दौरान दरगाह में हजारों की संख्या में जायरीन मौजूद रहते हैं. झंडे की रस्म के साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत भी हो जाती है और ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में शामिल होने के लिए जायरीनों के आने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है.

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250 वर्ष से अधिक समय से चढ़ाया जा रहा है झंडा
बताया जाता है कि अफगानिस्तान से सत्तार बादशाह नाम के एक फकीर दरवेश ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में अक्सर झंडा लेकर आया करते थे. उसके बाद उनके शिष्य लाल मोहम्मद उर्स से पहले झंडा लाने लगे और फिर उनके परिवार के लोग परंपरा के तौर पर झंडा लाते रहे हैं. तकरीबन 250 वर्षों से अधिक समय से उर्स से पहले बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाया जाता रहा है. दरगाह की सबसे ऊंची इमारत बुलंद दरवाजे पर झंडा हर साल चढ़ता आया है. हालांकि ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स की रस्मों से झंडा चढ़ाने की परंपरा का कोई ताल्लुक नहीं है. उर्स की रस्म को ख्वाजा गरीब नवाज के ख़ादिम और दरगाह दीवान ही अंजाम देते आए हैं.

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उर्स नजदीक आने का प्रतीक है झंडा
ख्वाजा गरीब नवाज के खादिम सैयद फखर चिश्ती बताते हैं कि दरगाह परिसर में कई प्राचीन इमारते हैं जिन्हें अलग-अलग समय में बादशाह, राजा-महाराजाओं व नवाबों ने बनवाया था. इनमे बुलंद दरवाजा भी शामिल है जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाया था. 70 फीट ऊंची इमारत का बुलंद दरवाजा उस वक्त दूर से ही नजर आता था. इस इमारत पर झंडा प्रतीक के रूप में चढ़ाया जाता था, ताकि दूर से ही देखकर लोग समझ जाएं कि ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स नजदीक है. लोग झंडा देखकर दरगाह तक पहुंचते थे.

उन्होंने बताया कि उर्स की पारंपरिक रस्मों से इसका कोई लेना देना नहीं है. ख्वाजा गरीब नवाज के खादिम ही दरगाह में खिदमत को अंजाम देते आएं हैं और उस मौके पर भी ख़ादिम ही रस्मों को निभाएंगे. उन्होंने यह भी बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स 6 दिन मनाया जाता है. इस दौरान दिन में होने वाली खिदमत का समय बदल जाता है. ख्वाजा गरीब नवाज ने भी आपसी भाईचारा और मोहब्बत का पैगाम दिया था. यही वजह है कि दरगाह में हर मजहब के लोग जियारत के लिए आते हैं. उर्स के मौके पर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में आस्था का सैलाब उमड़ता है. विश्व भर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल है.

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