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Exclusive: अंटार्कटिका मिशन में लगातार तीसरी बार शामिल होकर लौटे सीकर के राजीव बिरड़ा, 13 महीने बाद आए घर

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Published : Jan 24, 2020, 4:55 PM IST

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अंटार्कटिका मिशन से लौटे सीकर के राजीव बिरड़ा

अंटार्कटिका जिसके नाम से ही कंपकपी छूटने लगती है. माइनस 40 डिग्री तक तापमान और नश्तर सी चुभती हुई 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हवाएं. वहां रहना तो दूर कोई जाने की सोच तक नहीं है, लेकिन सीकर का एक शख्स 13 महीने अंटार्कटिका में रहने के बाद अभी वहां से लौट है. सीकर लौटने पर इस दौरान राजीव बिरड़ा से ईटीवी भारत ने बात की...

सीकर. जिले के रिणाऊ गांव के रहने वाले राजीव बिरड़ा लगातार तीसरी बार भारत सरकार के अंटार्कटिका मिशन में शामिल होकर वापस लौटे हैं. राजीव तीसरी बार अंटार्कटिका मिशन पर गए थे. इससे पहले वो 34वें और 36वें मिशन में भारतीय स्टेशन पर रहे. इस बार 38वें पर मिशन पर मैत्री स्टेशन मिला. अंटार्कटिका में शोध कर रही टीम में राजीव बिरड़ा शामिल है और 24 सदस्य दल में वह मेडिकल टीम में है. लगातार 13 महीने अंटार्कटिका में रहने के बाद 3 दिन पहले ही सीकर लौटे राजीव ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

ईटीवी भारत की राजीव बिरड़ा से बातचीत (पार्ट-1)

राजीव बिरड़ा की ईटीवी भारत से बातचीत
ईटीवी भारत से बात करते हुए राजीव बिरड़ा में बताया कि माइनस 40 डिग्री तापमान से सीधे प्लस 20 डिग्री तापमान में पहुंचे हैं यानी कि 60 डिग्री का अंतर आ गया है. राजीव ने बताया कि भारत सरकार के 2 मिशन वहां काम कर रहे हैं. जिनमें से एक में वो भी शामिल है और एक बार जाने के बाद वहां से 13 महीने बाद ही वापस आना होता है.

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सीकर के गांव रिणाऊ निवासी राजीव बिरड़ा

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उन्होंने बताया कि अंटार्कटिका में 3 महीने की रात और 3 महीने का दिन होता है तो कई बार 24 घंटे का दिन और रात भी होता है, इसलिए वहां रहना काफी मुश्किल है. इसके साथ ही बर्फीले तूफानों से भी सामना होता रहता है. खाने पीने का सामान एक साथ 1 साल का वह पहुंचता है, इसलिए उसका भी उसी तरीके से उपयोग करना होता है. राजीव बिरड़ा ने बताया कि वहां जाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है और दक्षिण अफ्रीका से विशेष विमान के तहत वहां पहुंचते हैं जहां बर्फ से बने रन-वे पर ही वायुयान उतरते हैं.

ईटीवी भारत की राजीव बिरड़ा से बातचीत (पार्ट-2)

राजीव बिरड़ा ने बताया क्या है अंटार्कटिका मिशन
ईटीवी भारत से बात करते हुए राजीव बिरड़ा ने बताया कि विश्व की सबसे ठंडी, शुष्क और तेज हवाओं वाली जगह अंटार्कटिका में वैज्ञानिकों की टीम जलवायु परिवर्तन समेत विभिन्न विषयों पर शोध करने के लिए जाती है. बता दें कि अंटार्कटिका पृथ्वी का दक्षिणतम महाद्वीप है. 54 लाख वर्ग मील क्षेत्रफल के लिहाज से यह पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है. यहां का 98 फीसदी हिस्सा औसतन 1.6 किलोमीटर मोटी बर्फ की चादर से ढका हुआ है. वहीं साल 2018 में भारत की ओर से अंटार्कटिका मिशन पर गई टीम में सीकर के गांव रिणाऊ निवासी राजीव बिरड़ा भी शामिल रहे.

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सीकर के गांव रिणाऊ निवासी राजीव बिरड़ा

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तीसरी बार अंटार्कटिका मिशन पर गए राजीव
बता दें कि सीकर के गांव रिणाऊ निवासी राजीव बिरड़ा तीसरी बार मिशन पर गए. अंटार्कटिका में भारत के मैत्री व भारती दो स्टेशन संचालित है. इससे पहले दक्षिण गंगौत्री स्टेशन था, जो बर्फ में दब गया. वर्ष दिसंबर 2018 में राजीव समेत 23 सदस्यों की टीम मैत्री स्टेशन पर गए. राजीव ने बताया कि इन स्टेशनों में टीम के रहने, भोजन और संचार के साधन हैं. वहीं उनका काम नर्सिंग ऑफिसर के रूप में होता है. अंटार्कटिका मिशन पर वैज्ञानिक समेत 23 लोगों की टीम की स्वास्थ्य का जिम्मा राजीव बिरड़ा का ही होता था.

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सीकर के गांव रिणाऊ निवासी राजीव बिरड़ा
Intro:सीकर
अंटार्कटिका जिसके नाम से ही कंपकपी छूटने लगती है। माइनस 40 डिग्री तक तापमान और नश्तर सी चुभती हुई 200 किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ्तार से चलती हवाएं। वहां रहना तो दूर कोई जाने की सोच ता तक नहीं है। लेकिन सीकर का एक शख्स 13 महीने अंटार्कटिका में रहने के बाद अभी वहां से लौट है।


Body:सीकर जिले के रिणाऊ गांव के रहने वाले राजीव बीरड़ा लगातार तीसरी बार भारत सरकार के अंटार्कटिका मिशन में शामिल होकर वापस लौटे हैं। अंटार्कटिका में शोध कर रही टीम में राजीव शामिल है और 24 सदस्य दल में वह मेडिकल टीम में है। लगातार 13 महीने अंटार्कटिका में रहने के बाद 3 दिन पहले ही सीकर लौटे राजीव ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि माइनस 40 डिग्री तापमान से सीधे प्लस 20 डिग्री तापमान में पहुंचे हैं यानी कि 60 डिग्री का अंतर आ गया है। राजीव ने बताया कि भारत सरकार के 2 मिशन वहां काम कर रहे हैं जिनमें से एक में भी शामिल है और एक बार जाने के बाद वहां से 13 महीने बाद ही वापस आना होता है। उन्होंने बताया कि अंटार्कटिका में 3 महीने की रात और 3 महीने का दिन होता है तो कई बार 24 घंटे का रात और दिन भी होता है इसलिए वहां रहना काफी मुश्किल है। इसके साथ ही बर्फीले तूफानों से भी सामना होता रहता है। खाने पीने का सामान एक साथ 1 साल का वह पहुंचता है इसलिए उसका भी उसी तरीके से उपयोग करना होता है। वहां जाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है और दक्षिण अफ्रीका से विशेष विमान के तहत वहां पहुंचते हैं जहां बर्फ से बने रनवे पर ही वायुयान उतरते हैं।


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